BHOPAL: सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को प्रमोशन देने का रास्ता खोला, शिवराज का डैमेज कंट्रोल या 2023 की तैयारी, जानें सब

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Vivek Sharma
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BHOPAL: सरकार ने अधिकारी-कर्मचारियों को प्रमोशन देने का रास्ता खोला, शिवराज का डैमेज कंट्रोल या 2023 की तैयारी, जानें सब

Bhopal. मध्यप्रदेश के कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रदेश सरकार बड़ी सौगात देने वाली है। कर्मचारी हित से जुड़ा जो फैसला पिछले 6 साल से अटका था, अब सरकार उस फैसले पर आगे बढ़ने की तैयारी में है। हमारे विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि जल्द ही शिवराज सरकार इसका प्रस्ताव अगली कैबिनेट में रखेगी। ये फैसला सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के प्रमोशन से जुड़ा हुआ है। 6 साल से अधिकारी और कर्मचारियों के प्रमोशन पर लगी रोक को सरकार हटाने जा रही है। सरकार ने एक बार फिर अधिकारी और कर्मचारियों को प्रमोशन देने का तैयारी कर ली है। सरकार प्रमोशन के नए नियमों के तहत अधिकारी और कर्मचारियों को पदोन्नति देगी।



दरअसल, राज्य सरकार कर्मचारियों और अधिकारियों से जुड़े इस फैसले को लेने में अब जरा भी देर नहीं करना चाहती। हाल ही में हुए नगर सरकार के चुनाव में जिस तरह के नतीजे बीजेपी के सामने आए हैं। उसमें सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी और उदासीनता साफ दिखाई दी है, जिसे सरकार अब और हवा नहीं देना चाहती। यही वजह है कि अब सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता आसान होता दिखाई दे रहा है। मध्य प्रदेश में पिछले 6 साल से पदोन्नति पर रोक है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को पदोन्नति से जुड़े मप्र लोक सेवा नियम 2002 खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। 



सरकार के इस ताबड़तोड़ फैसले की वजह



सोचने वाली बात ये है कि अचानक ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी कि 18 साल से प्रदेश पर काबिज शिवराज सरकार को इतनी तेजी में इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा। ऐसा फैसला, जिसकी बीते 6 साल से सरकार ने कोई खास फिक्र नहीं की, वो अचानक इतना अहम कैसे हो गया। इसके पीछे वाकई कर्मचारी हित है या फिर सरकार और सत्ता की ऐसी मजबूरी कि बिना सोचे समझे दनादन ऐलान पर ऐलान कर दिए गए।



जानकारों के मुताबिक, सरकार का कोई फैसला यूं ही नहीं होता। खासतौर से जब चुनाव सिर पर हों। जब निकाय चुनाव के नतीजे चीख-चीख कर बता चुके हों कि सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी बढ़ चुकी है। नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों को बीजेपी भले ही अपनी जीत बता रही हो, पर इसका दूसरा पहलू ये है कि बीजेपी के हाथ से 7 सीटें (16 में से 9 निगमों में बीजेपी का मेयर) निकल चुकी हैं। इन नतीजों को देखकर संघ और इंटरनल इंटेलिजेंस अलर्ट मोड पर आ गया। हार के कारणों का आंकलन हुआ। हारे हुए स्थानों पर सर्वे हुआ और जो रिपोर्ट आई उसने शिवराज सरकार के होश फाख्ता कर दिए। लोगों की नाराजगी अलग-अलग मुद्दों पर हो सकती है, लेकिन सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की नाराजगी और उदासीनता सरकार पर भारी पड़ती नजर आई। संघ की इस इंटरनल रिपोर्ट ने शिवराज सिंह चौहान को डैमेज कंट्रोल करने पर मजबूर कर दिया। 



सरकारी कर्मचारियों की अनदेखी नहीं की जा सकती



प्रदेश की सत्ता में बने रहना हो या सत्ता में वापसी करना हो, सरकारी नौकरों की अनदेखी नहीं की जा सकती, ये बात बीजेपी समझ चुकी है। नगरीय निकाय चुनावों के नतीजों में बीजेपी का जो हाल है, उसे देखते हुए संघ ने ये चेता दिया है कि अब भी सरकारी कर्मचारियों को अनदेखा किया तो 2023 में वापसी की संभावनाओं को भूल जाएं। इस फटकार के बाद से शिवराज सिंह चौहान एक्शन मोड में है। पहले कर्मचारियों को महंगाई भत्ते को बढ़ाया और उसके बाद बिना आरक्षण के प्रमोशन को हरी झंडी दे दी है। वैसे ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, इसलिए सरकार ने ये भी क्लीयर कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही उसके अनुसार जरूरी कार्रवाई की जाएगी।



मामला अभी विचाराधीन है



6 साल से प्रमोशन पर रोक होने के कारण कर्मचारियों में नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। इन छह सालों में अब तक 70 हजार से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। जिनमें से करीब 39 हजार कर्मचारी रिटायरमेंट तक पदोन्नति का इंतजार करते रह गए, लेकिन प्रमोशन नहीं मिला इसे देखते हुए अब सरकार ने नए पदोन्नति नियम बनाने जा रही है, जिससे न्यायालय की अवमानना भी न हो ओर राज्य के अधिकारी-कर्मचारियों को प्रमोशन भी हो जाए।



इस फैसले को चुनावी कहना गलत नहीं होगा



प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उसमें कर्मचारियों की नाराजगी सरकार पर भारी ना पड़े इसलिए ये  फैसला बहुत तेजी में लेने की तैयारी की जा रही है। हालांकि फैसला लेने के बावजूद सरकार को प्रमोशन में आरक्षण पर आने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ध्यान रखना पड़ेगा। इसलिए नए पदोन्नति नियमों का खाका कुछ इस तरह तैयार किया गया है कि कोर्ट के आदेश पर भी अमल करने में कोई चूक ना हो।



पदोन्नति में आरक्षण पर रोक



प्रदेश में फिलहाल 2016 से सरकारी विभागों में प्रमोशन नहीं हो रह, यह इंतजार कब खत्म होगा यह कोई नहीं जानता। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति ) नियम 2002" खारिज कर दिया है। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मई 2016 में यथास्थिति (स्टेटस-को) रखने के निर्देश दिए हैं। तब से प्रदेश में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की पदोन्न्ति पर रोक लगी है। दूसरी ओर जिम्मेदार लोग सिर्फ बैठकों में व्यस्त हैं और भरोसा दिलाया जा रहा है कि सब ठीक होगा, लेकिन कर्मचारियों का सब्र अब टूटने लगा है क्योंकि प्रमोशन का इंतजार करते-करते 70,000 से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है। 



हाईकोर्ट ने किया था निरस्त



प्रदेश में 2016 से सरकारी विभागों में प्रमोशन नहीं हो रहा है। इसका प्रमुख कारण हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) द्वारा 2002 में बनाए गए प्रमोशन नियम निरस्त किया जाना है, तर्क दिया गया है कि सेवा में अवसर का लाभ सिर्फ एक बार दिया जाना चाहिए। नौकरी में आते समय आरक्षण का लाभ मिल जाता है फिर पदोन्नति में भी आरक्षण का लाभ मिल रहा था। इसे लेकर सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को आपत्ति थी। इसलिए हाईकोर्ट ने पदोन्नति का नियम ही खारिज कर दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरक्षण रोस्टर के हिसाब से जो पदोन्नति हुई, उन्हें रिवर्ट किया जाए. जबसे इस निर्णय को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तभी से मामला उलझा हुआ है।



विधानसभा में भी उठा था मामला



प्रमोशन का फार्मूला तय करने के लिए गठित कैबिनेट कमेटी की कई बैठकें हुईं लेकिन रास्ता नहीं निकल सका। सरकारी आकलन के तहत यदि कर्मचारियों को प्रमोशन मिलता है तो खजाने पर सालाना 2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आएगा। उधर कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हो रहे हैं लेकिन आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों सहित राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के प्रमोशन हो रहे हैं। कमलनाथ सरकार के समय में यह मामला विधानसभा में भी उठा था। तत्कालीन स्पीकर एनपी प्रजापति ने निर्देश दिए थे कि जबतक प्रमोशन का निर्णय नहीं हो जाता तबतक अफसरों को भी प्रमोशन नहीं दिया जाए। सत्ता बदलने के साथ ही निर्देश फाइलों में कैद हो गए।



नए नियमों में प्रमोशन की केटेगरी के अनुसार ये हैं सीआर के अंक



लोक  सेवा पदोन्नति के नए नियमों के मुताबिक प्रमोशन की केटेगरी के अनुसार सीआर के अंक तय किए गए हैं, जिसके तहत




  • प्रथम श्रेणी से प्रथम श्रेणी में पदोन्नति के लिए 15 अंक


  • सेकंड क्लास से फर्स्ट क्लास में प्रमोशन के लिए 14 अंक

  • सेकंड क्लास से सेकंड क्लास में हाई पे-स्केल में प्रमोशन के लिए 13 अंक

  • थर्ड क्लास से सेकंड क्लास में प्रमोशन के लिए 12 अंक

  • थर्ड क्लास से थर्ड क्लास में प्रमोशन के लिए 12 अंक

  • फोर्थ से थर्ड क्लास के प्रमोशन के लिए 10 अंक



  • फोर्थ से फोर्थ क्लास में हाई पे-स्केल में प्रमोशन के लिए 09 अंक तय किए गए हैं. अंकों में ऊंच नीच होने पर प्रमोशन पर असर पड़ सकता है। प्रस्तावित पदोन्नति नियम के हिसाब से अधिकारी-कर्मचारियों के 5 साल के गोपनीय प्रतिवेदन यानि सीआर की ग्रेडिंग को नंबर से जोड़ा जाएगा। सीआर में मिलने वाले एक्सीलेंस (क$) ग्रेड के लिए 4 नंबर, वेरी गुड (क) ग्रेड के लिए हेतु 3 नंबर,  गुड (ख) ग्रेड के लिए 2 नंबर,  एवरेज (ग) ग्रेड के लिए 1 नंबर, एवं पुअर (घ) ग्रेड के लिए 0 नंबर दिए जाएंगे। प्रमोशन के हकदार अधिकारी और कर्मचारियों को सिर्फ सीआर के अंक ही नहीं मिलेंगे, बल्कि उनकी पूरी ग्रेडिंग भी काउंट की जाएगी। जो एक्सीलेंट, वेरीगुड, गुड, एवरेज और पुअर ग्रेड में डिवाइड होगी। जाहिर है जिस अधिकारी-कर्मचारी को एक्सीलेंट ग्रेडिंग मिली होगी. वो प्रमोशन का सबसे पहला हकदार होगा। एक से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारियों को एक्सीलेंस सीआर मिलने पर सीनियरिटी के अनुसार प्रमोशन दिया जाएगा। एक्सीलेंट ग्रेडिंग वाले सभी अधिकारी कर्मचारियों के प्रमोशन के बाद पद खाली रहते हैं तो उन्हें वेरी गुड ग्रेडिंग वाले अधिकारियों को प्रमोशन देकर भरा जाएगा।



    इस तरह तैयार होगी अधिकारी-कर्मचारियों की फाइनल लिस्ट 



    डिपार्टमेंट प्रमोशन कमेटी प्रमोशन के लिए कुल रिक्त पदों से 3 गुना ज्यादा नामों को जोन ऑफ कंसिडरेशन में लेगी। जो अधिकारी-कर्मचारी प्रमोशन के लिए फिट पाए जाएंगे उनकी फाइनल लिस्ट इस प्रकार तैयार होगी। 




    •  जनरल एडमिनेस्ट्रेशन डिपार्टमेंट हर साल की पहली जनवरी को पदोन्नति से भरे जाने वाले पदों की गणना करेगा। 


  •  रिक्त पदों के हिसाब से एससी-एसटी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व तय कर इन पर पदोन्नति की जाएगी।

  • प्रदेश के हर विभाग में रिक्त पदों के आधार पर पहले एससी-एसटी बेंचमार्क ग्रेड की अलग-अलग लिस्ट बनेगी। हर लिस्ट में समान ग्रेड वाले अधिकारी-कर्मचारिचों के नाम उनकी सिनियरिटी के हिसाब से रखे जाएंगे। 

  •  इसके बाद एससी-एसटी और अनारक्षित अधिकारी-कर्मचारियों की ज्वाईंट लिस्ट तैयार की जाएगी। 

  •  सबसे पहले इस लिस्ट में एसटी के पदों पर पदोन्नति की जाएगी। इसके बाद एससी के अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत होंगे। शेष बचे पदों पर अनारक्षित वर्ग के लोगों को पदोन्नत किया जाएगा। 

  •  यदि किसी चयन वर्ष में ऐसी स्थिति बनती है कि आरक्षित वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक संख्या के पदोन्नति वाले पद पहले से भरे हुए हैं तो सभी रिक्त पदों के लिए संयुक्त चयन सूची में सम्मिलित किये गये शेष अधिकारी-कर्मचारियों को सिनियरिटी के साथ प्रमोट किया जाएगा। -  यदि किसी चयन वर्ष में आरक्षित वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक संख्या में अधिकारी-कर्मचारी नहीं मिलते हैं तो उतने पद खाली रखे जाएंगे। जब तक कि आरक्षित वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए अधिकारी-कर्मचारी नहीं मिल जाते।



  • नियमों के नए खाके में ये भी तय है कि किस तरह के अधिकारी और कर्मचारियों को छह साल के लंबे इंतजार के बाद भी प्रमोशन नहीं मिलेगा। इन अधिकारी और कर्मचारियों में वो लोग शामिल  होंगे जिन्हें किसी कारण से निलंबित किया गया हो. या उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई चल रही हो। इसके अलावा जिन अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक आरोप दर्ज हैं और कोर्ट में चालान पेश हो चुका है, उन्हें भी प्रमोशन नहीं मिल सकेगा। ये नियम तब तक लागू रहेंगे जब तक प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट को कोई  फैसला नहीं आ जाता. इस फैसले के इसी माह आने की उम्मीद जताई जा रही है। नए नियम नोटिफाइड होने के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अधीन ही अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन करेगी। यानि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा वो तत्काल प्रभाव से लागू होगा।  फैसला विपरित आने पर प्रमोट हुए अधिकारी-कर्मचारियों को डिमोट भी किया जा सकता है।


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