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अपनों ने तोड़ दिया खून का रिश्ता,जीवन की शाम गुजर रही वृद्धाश्रम में,10-11 आवेदन वृद्धाश्रम में रहने के लिए रहते हैं पेंडिंग

Rajeev Upadhyay
27,अक्तूबर 2022, (अपडेटेड 27,अक्तूबर 2022 04:18 PM IST)

Jabalpur. माता पिता अपने बच्चों को अपने हिस्से की रोटी खिलाकर पालते हैं और खुद भूखे रह जाते हैं।लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो अपने माता पिता को दो वक्त की रोटी नहीं खिला सकते उन्हें अपने साथ नहीं रख सकते। ऐसे बुजुर्ग वृद्धाश्रम की पनाह ले रहे हैं। कुछ बुजुर्ग ऐसे भी हैं जिनकी संतान नहीं है लेकिन अन्य परिजन हैं। वे अपने परिजन पर बोझ बनना नहीं चाहते और यहां आकर रह रहे हैं। परिवार समाज की एक इकाई है।लेकिन इसका अवमूल्यन हो रहा है।आखिर क्यों जरूरत पड़ रही है वृद्धाश्रम खोलने की। क्या संतान को अपने माता पिता को अपने साथ ही रखना चाहिए लेकिन परिवार टूट रहे हैं। हालात यह हैं कि बुर्जुगों को वृद्धाश्रम में रहने के लिए आवेदन देने के बाद इंतजार करना पड़ रहा है क्योंकि यहां करीब 10-11 आवेदन हर माह पेंडिंग होते हैं।यहां रहने वालों के लिए यही आश्रम परिवार है। दीपावली समेत हर त्योहार अच्छे से मनाते हैं। इस साल भी सभी ने मिलकर दीपावली मनाई।

बच्चे हैं,लेकिन मां वृद्धाश्रम मेंपैरों से लाचार गीता पांडे पिछले 5 वर्ष से वृद्धाश्रम में रह रही हैं।वे घरों में खाना बनाती थीं। पैरों में तकलीफ हुई तो खाना बनाना बंद कर दिया और बैसाखी उनका सहारा बन गई।घर में बच्चे हैं लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनी कि उन्हें वृद्धा श्रम में रहने आना पड़ा।गीता पांडे का कहना है कि यही उनका परिवार है। दीपावली सभी साथ मिलकर मनाते हैं।

बेटे गुजर गए,बेटी के साथ रहना ठीक नहीं समझापुष्पा पिल्लई के दो बेटे थे लेकिन वे गुजर गए। पुष्पा पिल्लई का कहना है कि उन्होंने बेटी के साथ रहना ठीक नहीं समझा।यह उनकी पहली दीपावली है।

परिजन हैं लेकिन सब पराए

वृद्धाश्रम में पिछले 10 वर्ष से रह रही सुमित्रा गुप्ता का कहना है कि हालांकि दो वर्ष पहले उनके  बेटे की डेथ हुई है। लेकिन वे यहां 10 वर्ष से रह रही हैं।घर में भाई भाभी हैं।लेकिन कोई मिलने भी नहीं आता। वृद्धाश्रम ही उनका घर है,यही उनका परिवार है।

पत्नी की डेथ के बाद,यहां आ गए


दिल्ली में निजी कम्पनी में काम करते थे अतुल यादव। कोई संतान नहीं है। पत्नी की डेथ के बाद भाई के घर रहना ठीक नहीं समझा और वे यहां रहने लगे।

कोई नहीं,इसलिए यहां रह रहे

20 वर्ष से वृद्धाश्रम में रह रहे सरोज कुमार ढोल का कहना है कि वे कोलकाता में प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। पैर में कोई समस्या होने के कारण शादी नहीं की।उनका जबलपुर आना हुआ और वे यहां वृद्धाश्रम में रहने लगे।यहां सभी मिलकर दीपावली और अन्य त्योहार मनाते हैं।

दीपावली पूजन में उत्साह

वृद्धाश्रम में दीपावली पूजन विधि विधान से किया गया। दीपावली के एक दिन पहले प्रशासन की ओर से यहां आयोजन हुआ।जिसमें यहां रहने वाले सभी बुजुर्गों के साथ कलेक्टर डॉ इलैयाराजा राजा टी ने पूजन किया। इस अवसर पर रेडक्रास सोसायटी के सभी पदाधिकारी सौरभ बड़ेरिया, डॉ जितेंद्र जामदार, डॉ पवन स्थापक, डॉ सुनील मिश्रा, आशीष दीक्षित ने कार्यक्रम में बुजुर्गों के साथ दीपावली पूजन किया और बुजुर्गों को मिठाई के साथ गिफ्ट भी दिए।बुजुर्गों का कहना है कि यहां सभी अपनेपन से मिलते हैं और मिलकर त्योहार मनाते हैं

थिरकने लगी दादीकार्यक्रम में प्रसन्नता से बुजुर्ग महिला जिन्हे दादी कहते हैं वे मंच पर आकर डांस करने लगी।

बच्चे जिम्मेदारी निभाएं

इंडियन रेडक्रास सोसायटी के उपाध्यक्ष सौरभ बड़ेरिया का कहना है कि बच्चों को अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहिए। हमारी सनातन संस्कृति में वृद्धाश्रम का जिक्र नहीं है। आज इसकी जरूरत क्यों पड़ रही है।आज 10-11 आवेदन यहां पेंडिंग रहते हैं। बुजुर्ग जीना चाहते हैं। रेडक्रास सोसायटी की ओर से उनके बेहतर जीवन यापन की व्यवस्था की जा रही है।लेकिन युवा वर्ग को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए।

बुजुर्गों के कानूनी अधिकार

रेडक्रास सोसायटी की प्रदेश कार्यकारिणी और जबलपुर शाखा के सदस्य डॉ सुनील मिश्रा का कहना है कि बुजुर्गों के भरण पोषण के कानूनी अधिकार हैं।वे अपने बेटे और बेटी को अपने भरण पोषण के लिए बाध्य कर सकते हैं।इसके लिए उन्हें एसडीएम को आवेदन देना होगा। यह जानकारी उन्हें होना चाहिए।

बुजुर्गों के बेहतर जीवन यापन के लिए प्रयास

रेडक्रास सोसायटी के अध्यक्ष और कलेक्टर डॉ इलैयाराजा राजा टी का कहना है कि इंडियन रेडक्रास सोसायटी की ओर से वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के बेहतर जीवन यापन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। नया भवन तैयार किया जा रहा है। दीपावली पर रेडक्रास सोसायटी की ओर से पूजन का आयोजन किया गया।इसमें सभी बुर्जुगों से हम सभी को आशीर्वाद मिला।

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