भोपाल. अगर आपके विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक है। ऐसी स्थिति में आपके शहर और विधानसभा को अगले दो साल तक जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ सकता है। आपके यहां किसी तरह के विकास कार्य नहीं होंगे। इसका ऐलान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj) ने किया है। पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट.... आखिर क्यों अगले दो साल कांग्रेस विधायकों के इलाके में सडकें, नाली, स्कूल या दूसरे कोई विकास के काम नहीं होंगे?
बीजेपी विधायकों से मांगी जानकारी: सीएम शिवराज के निर्देशों पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने बीजेपी के 127 विधायकों (Budget for Bjp mla) से जानकारी मांगी है। इसमें विधानसभा क्षेत्र के 5 मेगा प्रोजेक्ट (assembly area mega project) भेजने के लिए कहा गया है। इस रिपोर्ट के आधार पर 15 करोड़ की सीमा तक के प्रोजेक्ट सेंक्शन होंगे। कुछ विधायकों ने जानकारी भेजना शुरू भी कर दिया है। बीजेपी विधायक महेंद्र हार्डिया (Mahendra hardiya) ने बताया कि सीएम हाउस से 15 करोड़ के विकासकार्यों के प्रस्ताव मांगे हैं। ताकि इन्हें बजट में जोड़ा जा सके। सड़क, कम्युनिटी हॉल समेत प्रस्ताव बनाकर भेज दिए हैं।
बजट भी हो चुका: इन कामों के लिए सरकार ने 1905 करोड़ रुपए का बजट भी तय किया है। ये बजट इस बार के बजट सेशन (mp budget session) में रखा जाएगा। इन कामों को चुनाव से पहले दो सालों के अंदर पूरा करना है। जाहिर है कि बीजेपी ये सारी कवायद 2023 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कर रही है। इसीलिए विकास के काम सिर्फ और सिर्फ बीजेपी के 127 विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में ही होंगे। सबसे आश्चर्य और दुख की बात ये भी है कि विपक्ष को तो होश ही नहीं है कि सरकार उनके साथ ऐसा कोई अन्याय और भेदभाव कर रही है। कांग्रेस के विधायकों को तो सरकार के इस कदम की कोई जानकारी तक नहीं है।
कांग्रेस विधायक के तर्क: पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा (Sajjan singh verma) ने कहा कि ये दोगले लोग है। ऐसी ही इनकी नीति है। कांग्रेस विधायक अपने बाजुओं में विश्वास रखते हैं, जनसंपर्क में विश्वास रखते हैं। अब इससे तो लगता है कि कांग्रेस (Congress) ने मान लिया है कि उन्हें विधायकों को कुछ नहीं मिलेगा। सारे इंतजाम उन्हें करने पड़ेंगे। यानी कांग्रेस इस आधार पर जनता से वोट मांगेंगी कि कुछ नहीं मिला। इसलिए इस बार फिर जिताओ और जब सरकार बनेगी तो सारे काम होंगे। बीजेपी वाले कहते हैं कि जब कांग्रेस की सरकार थी। तब बीजेपी विधायकों के काम रोक दिए गए थे यानी बदले की ये राजनीति दोनों तरफ है। मगर इसमें जनता का क्या कसूर? क्या जनता के साथ इस तरह से राजनीतिक भेदभाव किया जाना चाहिए?
चुनाव खत्म, 'भगवान' खत्म: अब यहां पर सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकार जनता के जनादेश का अपमान कर रही है। क्या मोटे तौर पर मध्यप्रदेश की लगभग साढे तीन करोड जनता बुनियादी ढांचे के लिए तरसते रहेगी, क्योंकि लगता तो यही है। 2018 के चुनाव में मप्र की जनता ने किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया था। लेकिन कमलनाथ की जोड़तोड़ की सरकार बनी। 15 महीने चली और गिर गई, फिर सरकार बनी बीजेपी की। जिस समय जनता के वोट लेने होते हैं तो चुनावी रैलियों में ये नेता जनता को भगवान कहने से नहीं चूकते। चुनाव खत्म होते हैं तो भगवान याद नहीं आते। भगवान के साथ भेदभाव होने लगता है। भेदभाव कैसा वो हमने आपको बता दिया कि केवल बीजेपी विधायकों से विकास कामों के प्रपोजल मांगे गए। कांग्रेस विधायकों से नहीं।
ये कैसी समानता: संविधान हर नागरिक को समानता के अधिकार (right to equality) की बात करता है। संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के बीच समानता के अधिकार का जिक्र है कि किसी भी सूरत में राज्य सरकारें लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगी। लेकिन इसमें राजनीतिक भेदभाव का जिक्र नहीं है, और ये राजनीतिक भेदभाव बढ़ता जा रहा है। यानी आपने वोट नहीं दिया तो आपको विकास से कोसो दूर रखा जाएगा। ताकि अगली बार आप उस पार्टी को वोट दे जो सरकार बना सकती है। क्या सरकार उन लोगों से बदला ले रही है, जिन्होंने बीजेपी को वोट नहीं दिया।
बचपन में पढ़ी हुई प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर का अमर वाक्य है कि क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?’ लेकिन इस फैसले को देखकर लगता है कि ईमान की बात तो बेमानी है। कहां बचा ईमान, जो वोट देगा उसी के साथ ईमान रहेगा। बाकी वोट ना देने वाले तो बेईमान हो गए। क्या कसूर है उस साढे तीन करोड़ की आबादी का जिसने अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मन मुताबिक वोट दिया। यानी आपको मन की भी करने की अब आजादी नहीं है। बीजेपी किस लोकतंत्र को गढ़ रही है। क्या नेता जनता को जनार्दन कहने का केवल न ढोंग भर करते हैं? ये बड़ा सवाल है।