भोपाल. प्रदेश भर की बत्ती गुल है। गांवों में छह से आठ घंटे तक अघोषित कटौती हो रही है। लेकिन यदि जल्द ही हालात नहीं सुधरे तो सूबे में ब्लैक आउट के हालात बनने वाले है। जिस मुद्दे पर 2003 में बीजेपी सरकार में आई थी वही मुदृा अभी भी मुंह बाए खड़ा है। प्रदेश में महज चार दिन का कोयला ही बाकी है। यदि जल्द ही कोयला नहीं आया तो प्रदेश अंधकार में डूब जाएगा। हम आपको बताते है। प्रदेश में कहां कितना कोयला बचा है।
संजय गांधी थर्मल पॉवर प्लांट की क्षमता 1340 मेगावॉट है। ये प्लांट 56 फीसदी लोड फैक्टर पर चल रहा है। यानी कि इसमें से आधा उत्पादन हो रहा है। इसमें रोजाना 22.5 हजार टन कोयले की आवश्यकता है। प्लांट के पास 42.6 हजार टन कोयला उपलब्ध है यानी यहां दो दिनों का कोयला ही उपलब्ध है।
सतपुड़ा थर्मल प्लांट की क्षमा 1310 मेगावॉट है। इसका प्लांट लोड फैक्टर 29.6 है। इसमें तीस फीसदी बिजली का ही उत्पादन हो रहा है। इस प्लांट में रोजाना 18.2 हजार टन कोयले की आवश्यकता है। जबकि इसके पास 43.2 हजार टन कोयला उपलब्ध है। यानी यहां भी दो दिन का कोयला ही शेष है।
सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट की क्षमता 2520 मेगावॉट है। यह 42.7 प्लांट लोड फैक्टर पर चल रहा है। यानी यह आधी बिजली का उत्पादन भी नहीं कर रहा। इसके पास 97 हजार कोयला उपलब्ध है। इसको रोजाना 36 हजार टन कोयले की आवश्यकता होती है। यानी यहां पर ढाई से तीन दिन का कोयला उपलब्ध है।
सरकार भी मानती है कि उसके पास ढाई से तीन लाख टन कोयला ही उपलब्ध है। ये कोयला प्रदेश के थर्मल पॉवर प्लांट के हिसाब से तीन से चार दिन की खपत ही है। उर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर कोयले की उपलब्धता बढ़ाने के लिए अपनी कोशिशें तो गिना रहे हैं लेकिन दैवीय शक्ति की सहायता की उम्मीद भी कर रहे हैं।
कांग्रेस ने सरकार पर आर्टिफीशियल बिजली संकट का आरोप लगाया है। पूर्व उर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह ने कहा कि सरकार कोयला संकट की आड़ लेकर बड़ा स्कैम करने की तैयारी कर रही है। प्रियव्रत ने कहा कि कांग्रेस पर बिजली कटौती के आरोप लगाते हैं लेकिन बीजेपी सरकार ने प्रदेश को अंधेरे में ला दिया है। कांग्रेस कहती है कि सरकार ने बिजली के लिए 900 करोड़ के करार किए हुए हैं लेकिन उनसे एक यूनिट बिजली भी नहीं की जा रही है और सालाना इतना फंड चुकाया जा रहा है। प्रियव्रत ने कहा कि
इन हालातों के बाद भी मंत्री मानने को तैयार नही की कोयला संकट है।
प्रदेश में बिजली की मांग 12500 मेगावॉट है। जबकि प्रदेश में बीते दिनों 11171 मेगावॉट की उपलब्धता है। मांग के हिसाब से सरकार भले ही 500 से 1000 मेगावॉट बिजली की कमी मान रही हो लेकिन ये कमी 1 से 2 हजार मेगावॉट तक की है। कांग्रेस ने तथ्य उजागर करते हुए बताया है कि बीरसिंहपुर पॉवर प्लांट 20 दिनों से बंद है। खरगोन का पॉवर प्लांट 15 दिनों से बंद है। गाडरवाड़ा पॉवर प्लांट भी कई दिनों से बंद पड़ा है। सीपथ-हरियाणा का पॉवर प्लांट की दो यूनिट दो महीने से बंद हैं। जिसमें मप्र का हिस्सा 200 मेगावॉट है। विंध्याचल थर्मल पॉवर प्लांट 12 दिनों से बंद है। इसमें मध्यप्रदेश का हिस्सा 66 मेगावॉट है। यानी एनटीपीसी से मध्यप्रदेश को अपने हिस्से की 1000 मेगावॉट बिजली नहीं मिल रही है। लेकिन इन हालातों के बाद भी सरकार निश्चिंत है।
कांग्रेस कहती है कि सरकार एनर्जी एक्सचेंज का हिसाब नहीं दे रही है। एनर्जी एक्सचेंज की वजह से प्रदेश बड़ा घाटा खा रहा है। कोल इम्पोर्ट की बात कही जा रही है। सरकार ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण एशिया से कोल एम्पोर्ट करने की बात कर रही है। कांग्रेस ने कहा कि इसका मतलब है कि अडानी के बंदरगाहों से कोयला लाने की तैयारी में सरकार है।