NEEMUCH : RSS के गढ़ में पीएफआई की एंट्री, भाजपा कांग्रेस को शिकस्त देकर बने 3 पार्षद, एसडीपीआई ने दर्ज की जीत

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Kamlesh Sarda
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NEEMUCH : RSS के गढ़ में पीएफआई की एंट्री, भाजपा कांग्रेस को शिकस्त देकर बने 3 पार्षद, एसडीपीआई ने दर्ज की जीत

NEEMUCH. हाल ही में मप्र में नगरीय निकाय चुनाव संपंन्न हुए हैं। कई जिलों में चौकाने वाले रिजल्ट सामने आए हैं। सत्ताधारी बीजेपी को इन चुनावों में बड़ा झटका लगा है। नीमच जिले  में इस बार जो कमाल आम आदमी पार्टी भी नहीं दिखा सकी वो कमाल भारत सरकार के निशाने पर रही एसडीपीआई ने दिखा दिया। पूरे मध्यप्रदेश मे सबसे बेहतर प्रदर्शन नीमच के वार्ड 10 में अरबिना बी, वार्ड 11 में जाफर शाह और मनासा के वार्ड 14 से आमना बी ने किया और कांग्रेस भाजपा को शिकस्त देते हुए जीत दर्ज की।









जांच एजेंसियों के निशाने है पीएफआई





पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(Popular Front of India) हमेशा भारत सरकार और देश की बड़ी जांच एजेंसियों के निशाने पर रहा है। केरल में आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वमं सेवक संघ के कई बड़े नेताओ की हत्या के आरोप भी पीएफआई पर लगे है। अपने मजबूत कैडर और विशेष रणनीति के लिए पीएफआई जाना जाता है। पीएफआई की पॉलिटिकल विंग एसडीपीआई(PFI political wing SDPI), छात्र विंग सीएफआई(Student Wing CFI), महिला विंग डब्ल्यूएफआई(Women Wing WFI) सहित कई क्षेत्रों में कार्य वाला संगठन है। इस संघटन की नीमच में एंट्री बदलते राजनीति के संकेत तो नहीं है





क्या है PFI?





पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टर इस्लामिक संगठन(hardline islamic organization) है। यह खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के अधिकार के लिए आवाज उठाने वाला बताता है, लेकिन देश के कई राज्यों में हुए दंगों में इस संगठन का कनेक्शन पाया गया है। पीएफआई को लेकर कहा जाता है कि इस संगठन का केरल मॉड्यूल ISIS के लिए काम करता था। केरल से इसके कई मेंबरों ने सीरिया और इराक में ISIS को ज्वॉइन किया था।  ये वो चरमपंथी इस्लामिक संगठन है, जिसकी भूमिका नागरिकता संसोधन कानून के विरोध-प्रदर्शन में सामने आ चुकी है। अब कानपुर हिंसा की जांच के तार पीएफआई से जुड़ रहे हैं।





कैसे बना 





पीएफआई की स्थापना 1993 में बने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट से ही हुई है। 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक संगठन बना था। इसके बाद 2006 में नेशनल डेमाक्रेटिक फ्रंट का विलय पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) में हो गया। हालांकि, ऑफिशियल इस संगठन की शुरुआत 17 फरवरी, 2007 में हुई। यह संगठन केरल से ही संचालित होता है लेकिन पूरे देश में इसके लोग फैले हुए हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के मुताबिक पीएफआई देश के 23 राज्यों में सक्रिय है। 





सिमी पर बैन के बाद उभरा PFI 





पीएफआई को स्‍टूडेंट्स इस्‍लामिक मूवमेट ऑफ इंडिया यानी सिमी का ही विकल्प माना जाता है। 1977 में बने सिमी को 2006 में बैन कर दिया गया। उसके बाद मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के हक की बात करने के लिए इस संगठन की स्थापना हुई, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। ये एक कट्टर इस्लामिक संगठन है, जिसका नाम देशभर में हुए कई दंगों में सामने आ चुका है। इसकी संदिग्ध गतिविधियों के चलते कई बार इसे बैन करने की मांग उठ चुकी है। 





PFI पर लगे ये आरोप 





- पीएफआई पर देशभर में दंगे फैलाने का आरोप है। इसके साथ ही इस संगठन का नाम कई राजनीतिक हत्याएं कराने के अलावा लव जिहाद में भी सामने आ चुका है। इसके अलावा पीएफआई पर और भी कई आरोप हैं। 



- 2016 में बेंगलुरु के आरएसएस नेता रुद्रेश की हत्या दो अज्ञात बाइक सवारों ने की थी। शहर के शिवाजीनगर में हुए इस मर्डर में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया था और ये चारों पीएफआई से जुड़े थे।



- इसके अलावा पीएफआई पर उत्तरी कन्नूर में एक ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप भी लग चुका है। 2013 में कन्नूर पुलिस ने बताया था कि इस कैंप से तलवार, बम, देसी पिस्टल और आईईडी ब्लास्ट में काम आने वाली चीजें बरामद हुई थीं। 





पटना में बड़ी साजिश का पर्दाफाश





हाल ही में पटना में इस संगठन की बड़ी साजिश का पर्दाफाश हुआ है। 13 जुलाई को राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ (Phulwari Shari) इलाके से बिहार पुलिस (Bihar Police) ने एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी मोहम्मद जल्लाउद्दीन और अतहर परवेज को गिरफ्तार किया था। एक अन्य आरोपी नूरुद्दीन जंगी को तीन दिन बाद उत्तर प्रदेश एटीएस ने बिहार पुलिस के अनुरोध पर लखनऊ से गिरफ्तार किया था।  इन सभी का संबंध पीएफआई से बताया जा रहा हैा





लोगों को सिखा रहे थे तलवार और चाकुओं का इस्तेमाल





पटना पुलिस ने 'आतंकी मॉड्यूल' का खुलासा करते हुए दावा किया था कि जल्लाउद्दीन और परवेज स्थानीय लोगों को तलवार और चाकुओं का इस्तेमाल करना सिखा रहे थे। वे सांप्रदायिक हिंसा के लिए उकसा रहे थे। तीनों आरोपियों के संबंध पीएफआई से है। उनके पास इस्लामी चरमपंथ से जुड़े कई आपत्तिजनक दस्तावेज जब्त किए गए हैं। 





झारखंड में बैन है 





झारखंड सरकार ने PFI को पहली बार 21 फरवरी 2018 को प्रतिबंधित किया था। इसके खिलाफ इस संगठन के सदस्य हाइकोर्ट गए थे। 27 अगस्त 2018 को प्रतिबंध हटा दिया गया था। हालांकि कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि सरकार त्रुटियों को दूर कर पीएफआई को दोबारा प्रतिबंधित कर सकती है। सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर सकती है। बाद में तकनीकी त्रुटियों को दूर कर सरकार ने मार्च 2019 में पीएफआई पर फिर प्रतिबंध लगा दिया था। पीएफआई बिहार से देश के खिलाफ बड़ी साजिश रचने की तैयारी कर रहा था। PFI का ही पॉलिटिकल विंग है। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI)। PFI के प्रतिबंधित होने के बाद भी SDPI झारखंड में एक्टिव है। केंद्र सरकार की खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में हुए पंचायत चुनाव में PFI ने संगठन से जुड़े 48 लोगों को पंचायत चुनाव में जीत दिलवाई। साथ ही, जेल जाने वाले अपने बड़े नेता को जिला परिषद सदस्य का चुनाव भी जितवाया। 



 



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