डिंडौरी के दो आदिवासी कलाकारों को पद्मश्री: गांव में नेट नहीं, ऐसे मिली पहचान

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डिंडौरी के दो आदिवासी कलाकारों को पद्मश्री: गांव में नेट नहीं, ऐसे मिली पहचान

डिंडौरी. जिले के दो आदिवासी कलाकारों (tribal artist) को पद्मश्री (Padmashree) से सम्मानित किए जाने का ऐलान हुआ है। बैगाचक क्षेत्र धुरकुटा निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक अर्जुन सिंह धुर्वे (Arjun Singh Dhurve) और पाटनगढ़ निवासी दुर्गा बाई (Durga Bai) को कला की फील्ड में उत्कृष्ट काम के लिए सम्मानित किया जाएगा। दोनों कलाकारों के घर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। अर्जुन सिंह के गांव में इंटरनेट नहीं है। उन्हें टीवी से सम्मान मिलने की जानकारी मिली। जबकि कला बाई एक समय अपने घर का खर्च चलाने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा करती थी। 



अर्जन सिंह को बैगा नृत्य के लिए मिला: अर्जुन सिंह धुर्वे ने बताया कि वो अवॉर्ड मिलने से गौरांवित महसूस कर रहे हैं। अर्जुन सिंह ने बताया की उन्हें बचपन से ही बैगा संस्कृति लोककला (Baiga culture folk art) को जानने और समझने की ललक थी और पिछले कई सालों से वे इसपर काम कर रहे हैं। अर्जुन सिंह साल 2005 में नई दिल्ली, इंडिया गेट परेड में बैगा प्रधानी नृत्य के साथ राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और पीएम मनमोहन सिंह के निवास में भी कार्यक्रम की प्रस्तुति दे चुके हैं। इसके अलावा उज्जैन के सिंहस्थ में लोक उत्सव और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला समेत अनेकों कार्यक्रमों में अपना जलवा बिखेर चुके हैं। उन्होंने बताया कि साल 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति संजीव रेड्डी के कार्यकाल में दिल्ली में प्रस्तुति दी थी। यहीं से उन्हें पहचान मिली।  



इस नृत्य के लिए मिला सम्मान: बैगा प्रधानी नृत्य बैगा जनजाति का मुख्य नृत्य है। जिसमें बैल, मोर, हाथी और घोड़ा आदि का मुखौटा लगाकर लोकगीतों पर नृत्य किया जाता है। अर्जुन सिंह पुराने दिनों को याद करके बतलाते हैं कि वो शिक्षक की नौकरी करते हुए समय निकालकर अपने काम में भिड़ जाते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस धुरकुटा गांव में अर्जुन सिंह रहते हैं वह गांव चारों तरफ घने जंगलों से घिरा हुआ है। लिहाजा गांव में मोबाइल नेटवर्क तक नहीं पहुंच पाया है। उन्हें टीवी से अवॉर्ड मिलने की जानकारी मिली थी। 



दुर्गा बाई मिट्टी से कृति बताती है: दुर्गा बाई साल 1976 में भोपाल आई। यहां उन्होंने कला की बारीकियां सीखीं। दुर्गा बाई ने बताया कि मुझे ठिगना और मिट्टी से कृति बनाना बचपन से ही पसंद था। शुरूआत में पैसे कमाने की ही बात दिमाग में थी। हम मजदूरी के बाद कुछ पैसे इकठ्ठा कर गांव वापस जाना चाहते थे। लेकिन देखते ही देखते पेंटिंग ही जिंदगी का हिस्सा बन गई। संघर्ष के दिनों में दुर्गा बाई अपना घर चलाने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा करने का काम करती थी।


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