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panna. रसायनिक खेती (chemical farming) के दुष्परिणामों को देखते हुए बड़ी संख्या में किसान अब जैविक खेती को अपनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। प्रदेश सरकार भी जैविक खेती (organic farming) को बढ़ावा दे रही है। पन्ना (Panna) जिले के कई किसान जैविक तरीके से सब्जियां उगाकर खुशहाल जीवन जी रहे हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का विल्हा गांव तो जैविक गांव बनने की तैयारी में है। गांव के किसान सुदामा पटेल कहते हैं कि इतने सालों में मैंने यह सबक लिया है कि रसायनिक खादों और कीटनाशकों का अधाधुंध उपयोग कर न सिर्फ हम खेतों को ऊसर बना रहे हैं, अपितु अपनी सेहत व पर्यावरण से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। रसायनिक खेती घाटे की खेती है क्यों कि इसमें लागत ज्यादा और फायदा कम है। वे आगे कहते हैं कि मैंने अब यह संकल्प किया है कि जैविक ढंग से खेती करूंगा और फसलों में रसायनिक खाद नहीं डालूंगा।
रसायनिक खेती करनी छोड़ दी
सुदामा पटेल (Sudama Patel) बताते हैं कि उन्होंने निजी भूमि के अलावा बटाई पर खेत लेकर वर्षों खेती की है। अटूट मेहनत के बावजूद खर्चा काटने के बाद दो-ढाई लाख से ज्यादा आय नहीं होती। यदि मौसम ने साथ नहीं दिया अथवा कोई आपदा आ गई तो इतना भी नहीं बच पाता। लेकिन जैविक ढंग से यदि खेती की जाय तो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति जहां बढती है, वहीं लागत बहुत ही कम आती है। इसलिए अब बटाई पर खेत लेकर रसायनिक खेती करना छोड़ अपनी 20-22 एकड़ जमीन में जैविक तरीके से खेती करना शुरू किया है। इसमें सालाना कम से कम 8-10 लाख रुपये की आय हो रही है। श्री पटेल कहते हैं कि कम क्षेत्र में खेती करके ज्यादा मुनाफा कमा लेंगे लेकिन रसायनिक खेती अब नहीं करेंगे।
महिला कृषक इस कार्य में विशेष रुचि ले रहीं
जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 15 किमी. दूर ग्राम विल्हा में किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे स्वयं सेवी संस्था समर्थन के रीजनल क्वार्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि गांव में 159 परिवार खेती के कार्य में लगे हैं। ग्राम पंचायत ने निर्णय लिया है कि ग्राम पंचायत को जैविक ग्राम पंचायत के रूप में विकसित करना है। स्वयंसेवी संस्था समर्थन द्वारा इस दिशा में कृषि, उद्यानिकी व कृविके के सहयोग से विल्हा को जैविक ग्राम बनाने की पहल की जा रही है। गांव के किसान वर्मी कंपोस्ट के वेड तैयार करना सीख गए हैं, महिला कृषक इस कार्य में विशेष रुचि ले रहीं हैं। विल्हा गांव की रूकमन बाई कहती हैं कि हम रसायनिक खाद से खेती कर चुके हैं, अब हम जैविक खेती ही करेंगे। जैविक खेती से कम क्षेत्र में भी खेती करके ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। गांव के सभी किसान खुश हैं कि हमारी मिटटी स्वस्थ्य रहेगी, ऊसर नहीं बनेगी।
अधिकांश किसानों के घरों में पोषण वाटिका
मवेशियों से प्राप्त होने वाले गोबर और जैविक कचरे से गांव के किसान वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) तैयार कर रहे हैं जिसका उपयोग वे फसलों की अधिक पैदावार के लिए करेंगे। ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं कि गांव में 113 किसानों के घरों में पोषण वाटिका स्थापित है, जहां बैगन, मिर्ची, टमाटर, पालक, मूली एवं धनिया तथा कुछ घरों में लहसुन, प्याज के साथ मौसमी सब्जी लगाई गई है। अभी तक ग्राम बिल्हा में लोग गोबर की खाद के साथ रसायनिक खाद व दवाओ का भी उपयोग करते रहे हैं, लेकिन अब वे जैविक तरीके से सब्जी उगाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। उद्यान विभाग से कृषि यंत्र हेतु 52 किसानों का पंजियन करवाया गया है तथा 42 किसानों ने मवेशियों से प्राप्त होने वाले गोबर और जैविक कचरे से केचुआ खाद बनाना शुरू कर दिया है। इस अभिनव पहल से विल्हा गांव स्वच्छता की ओर अग्रसर हुआ है। गोबर से जहाँ-तहाँ फैलने वाली गंदगी से निजात मिली है।
ग्रामीणों ने गांव को पानीदार बनाने की ली है शपथ
भीषण तपिश भरी गर्मी में जब हर तरफ पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है, ऐसे समय पर ग्रामीणों ने संगठित होकर जल संरक्षण की न सिर्फ सपथ ली है बल्कि गांव की तलैया के गहरीकरण का कार्य भी श्रमदान (Shramdan) करके शुरू कर दिया है। विल्हा गांव के लोगों की इस अभिनव पहल की हर कोई सराहना कर रहा है। ग्रामीणो ने बताया कि हमारा गांव पानीदार था, लेकिन आज जल संकट से जूझ रहा है। लगभग 30 वर्ष पहले सुखरानी दास ने सरपंच रहते जलसंरक्षण (Water Conservation) के तहत तलैया का निमार्ण कराया था। इस तलैया का जीर्णोद्धार और गहरीकरण अब जरूरी था। गांव को भविष्य में इस तरह जल संकट का सामना न करना पड़े इसलिए ग्रामीणों ने एकजुट होकर पुरानी तलैया के गहरीकरण का बीड़ा उठाया है ताकि विल्हा गांव पहले की तरह पानीदार रहे।