MP के 2 पूर्व IAS की वैचारिक जंग, अंग्रेजों के जमाने के कागज ढूंढे, एक ने की सावरकर की तरफदारी; दूसरे ने की गांधी की वकालत

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Sunil Shukla
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MP के 2 पूर्व IAS की वैचारिक जंग, अंग्रेजों के जमाने के कागज ढूंढे, एक ने की सावरकर की तरफदारी; दूसरे ने की गांधी की वकालत

BHOPAL. मध्यप्रदेश के दो पूर्व आईएएस अधिकारियों ने महात्मा गांधी और वीर सावरकर को लेकर सोशल मीडिया पर एक नई बौद्धिक बहस छेड़ दी है। एडिशनल चीफ सेक्रेटरी के पद से रिटायर मनोज श्रीवास्तव ने मंगलवार (4 अक्टूबर) को अपने फेसबुक अकाउंट पर एक ऐतिहासिक दस्तावेज शेयर करते हुए लिखा कि वे जो सावरकर की पेंशन पर बहुत कुछ बोलते हैं, तनिक इस पर नोश फरमाएं..। इस दस्तावेज में एमके गांधी (मोहनदास करमचंद गांधी) को येरवडा की जेल में नजरबंद किए जाने के दौरान देखभाल के लिए हर महीने 100 रुपए का भत्ता मंजूर किए जाने का उल्लेख है। इसके जवाब में पूर्व सचिव राजेश बहुगुणा ने भी एक प्रामाणिक दस्तावेज शेयर करते हुए स्पष्ट किया कि भत्ते के रूप में मंजूर किए 100 रुपए गांधी जी को नहीं दिए गए बल्कि उनकी देखभाल के लिए जेल प्रबंधन को स्वीकृत किए गए थे। उन्होंने ये भी लिखा कि सावरकर और गांधी के बीच में बहुत बड़ा अंतर है जो सदैव रहेगा।



जेल में गांधी की देखभाल के लिए हर महीने 100 रुपए भत्ता



पूर्व एसीएस मनोज श्रीवास्तव ने फेसबुक पर अपने कमेंट के साथ राष्ट्रीय अभिलेखागार का देश की आजादी से पहले 16 जून 1930 को तत्कालीन बॉम्बे सरकार के गृह विभाग के सचिव का वो गोपनीय पत्र भी अटैच किया है जो तत्कालीन भारत सरकार के गृह विभाग के सचिव को लिखा गया था। इस पत्र में बॉम्बे सरकार के गृह सचिव ने लिखा है कि सरकार के संकल्प पत्र (एस.डी. 1361 दिनांक 5 मई 1930) के अनुसार येरवडा की सेंट्रल जेल में हिरासत में रखे गए एमके गांधी की देखभाल के लिए 100 रुपए प्रतिमाह भत्ता मंजूर किया गया है। उन्हें ये भत्ता भारत सरकार द्वारा राजनैतिक शरणार्थियों और राजनैतिक बंदियों के लिए निर्धारित नियम के तहत स्वीकृत किया गया है। इस पत्र में तत्कालीन बॉम्बे सरकार के उस पत्र (1353/2.0 दिनांक 7 जून 1927) का भी हवाला दिया गया है जिसमें एमके गांधी को बंगाल राज्य के कैदी सतीश चंद्र प्रकाशी के समान ही जेल में देखभाल के लिए भत्ता मंजूर किया गया है।




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पूर्व एसीएस मनोज श्रीवास्तव की फेसबुक पोस्ट (बॉम्बे सरकार के गृह सचिव का भारत सरकार को 16 जून 1930 को लिखा पत्र)




बहुगुणा का रिप्लाई.. सावरकर की तरह गांधी जी की जेब में नहीं आते थे रुपए



सावरकर की जेब में 60 रुपए प्रतिमाह आते रहे और यह 100 रुपए प्रतिमाह गांधी को नहीं दिए गए बल्कि जेल में गांधी पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए जेल के लिए स्वीकृत किए गए थे। यह दस्तावेज खिदमत में हाजिर है जो स्पष्ट कह रहा है कि खर्च इस सीमा से अधिक न हो। सावरकर और गांधी के बीच में बहुत बड़ा अंतर है जो सदैव रहेगा। रिटायर्ड आईएएस राजेश बहुगुणा ने इस कमेंट के साथ गांधी जी को उनकी नजरबंदी की अवधि के दौरान भत्ता दिए जाने के संबंध में तत्कालीन भारत सरकार के फाइनेंस डिपार्टमेंट का 18 जुलाई 1930 का पत्र भी चस्पा किया है।




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रिटायर्ड आईएएस राजेश बहुगुणा का रिप्लाई





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भारत सरकार के वित्त सचिव का 18 जुलाई 1930 का पत्र




वित्त विभाग ने लिखा था बजट के भीतर हो देखभाल का खर्च



वित्त विभाग के अंडर सेक्रेटरी के हवाले से जारी किया गया यह पत्र नजरबंद किए गए गांधी जी की देखभाल के लिए भत्ता राशि के संबंध में गृह विभाग के प्रस्ताव (U.O. No. 3502/30 P.V. दिनांक 6 जून 1930) के संदर्भ में लिखा गया है। अंडर सेक्रेटरी फाइनेंस ने गृह विभाग के प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए लिखा है कि देखभाल पर खर्च मौजूदा अनुदान के भीतर पूरा किया जाएगा। किसी भी हालत में ये खर्च स्वीकृत बजट राशि से ज्यादा नहीं होना चाहिए। हालांकि राजेश बहुगुणा के कमेंट के साथ लगाए गए राष्ट्रीय अभिलेखागार के दस्तावेज के बाद मनोज श्रीवास्तव ने यह लिखकर बहस को विराम देने का प्रयास किया कि अंतिम बात से पूरी तरह सहमत हूं।



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