Indore. इंदौर में पिछले 30 साल से संघर्ष कर रहे हैं ये लोग, अपने प्लॉट के लिए। तीस साल में एक इंसान जवान से बूढ़ा हो जाता है। जिंदगी के तीस साल में वो खुद का आशियाना बना लेता है। वैल सेटल्ड हो जाता है लेकिन ये लोग केवल भटक रहे हैं। ये सभी लोग इंदौर की नवभारत गृहनिर्माण सोसाइटी के सदस्य है और अपने जायज हक के लिए लड़ रहे हैं। कई लोग जवान से बूढ़े हो गए। कई स्वर्ग सिधार गए लेकिन उन्हें प्लॉट नहीं मिला। आखिरकार क्या है अड़चन। कहां फंसा है पेंच और किस तरह से उलझ गए ये सभी लोग।
संस्था में हुई एंट्री भू-माफिया की
बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें, कमर्शियल कॉम्पलेक्स ये नवभारत गृहनिर्माण सहकारी संस्था की जमीन पर बने है। 1990 में जब गृहनिर्माण संस्थाओं को जमीन देने की शुरूआत हुई थी, तब यहां कई लोगों ने पैसा जमाकर प्लॉट लिए। किसी ने 1990 में तो किसी ने 1991 में, साल 2000 तक सब कुछ ठीक था। ये संस्था के सदस्य भी मानते हैं। लेकिन साल 2000 के बाद इस संस्था में एंट्री हुई भू माफिया से जुड़े लोगों की।
संस्था में 4 हजार सदस्य बना दिए गए
ये बॉबी छाबड़ा है, इंदौर का भूमाफिया। बॉबी छाबड़ा पर आरोप है कि उसने नवभारत गृहनिर्माण संस्था में फर्जी सदस्य बना दिए। जमीन का घपला किया। सहकारी नियम के मुताबिक किसी भी संस्था में 1600 से ज्यादा सदस्य नहीं होने चाहिए लेकिन इस संस्था में 4 हजार सदस्य बना दिए गए। 2 हजार सदस्य फर्जी बताए जा रहे हैं। बताया जाता है कि इनमें से कई सदस्य नंदानगर, सर्वहारा नगर और जनता क्वार्टर के हैं। इनमें कुछ सदस्य तो ऐसे बना लिए हैं जो एक ही गली के हैं। ऐसा लगता है कि नगर निगम या विधानसभा की मतदाता सूची उठाकर लाइन से सदस्य बना दिए गए। संस्था की वर्ष 2003-04 की आडिट रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 2190 सदस्य ही थे।
आवासीय भूमि को गैर आवासीय बताते हुए इसे बेच दिया
सदस्य बनाए जाने के बाद संस्था पर भूमाफिया बाबी छाबड़ा का एकाधिकार हो गया। और कहा जाता है कि छाबड़ा के ही कहने पर चिराग शाह और उसके साथियों ने दो हजार नए सदस्य बना दिए। इससे पुराने और वरिष्ठ सदस्यों का अहित हुआ। कई लोग तो प्लॉट के इंतजार में दुनिया से विदा हो गए। जब संस्था पर बाबी छाबड़ा का एकाधिकार हो गया तो संस्था की आवासीय भूमि को गैर आवासीय बताते हुए इसे बेच दिया। नवभारत गृहनिर्माण संस्था के सदस्यों ने प्रशासन से कई बार गुहार लगाई कि इस तरह की जमीन को चिन्हित कर उनकी रजिस्ट्री निरस्त करवाई जाए। लेकिन उनकी बात तक नहीं सुनी गई।
कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया
साल 2017 में तत्कालीन कलेक्टर पी नरहरि ने प्रशासन की निगरानी में संस्था के चुनाव कराने की तैयारी की थी। तब किसी सहकारिता अधिकारी को चुनाव अधिकारी नियुक्त करने के बजाय तत्कालीन एसडीएम शालिनी श्रीवास्तव को चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया था। रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के तौर पर एसडीएम को पहले संस्था की मतदाता सूची के शुद्धीकरण का काम सौंपा गया। पर संस्था में बड़े पैमाने पर फर्जी सदस्यों की मौजूदगी को देखते हुए एसडीएम शालिनी चुनाव से खुद ही हट गईं। इसके बाद ये प्रक्रिया ठप हो गई। इसी बीच संस्था के कई सदस्यों ने कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया। उन्हें कोर्ट से प्लाट देने के आदेश भी हुए लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस पूरे मामले में सहकारिता विभाग के अधिकारियों की भी मिलीभगत रही। भूमाफियाओं से सहकारिता विभाग के अधिकारियों के गठजोड़ ने सैकड़ों लोगों को भटकने के लिए मजबूर कर दिया। इन लोगों ने भी कई जगह शिकायतें की लेकिन कोई हल नहीं निकला है।
कुछ लोगों को ही प्लॉट मिला
मध्यप्रदेश में गृह निर्माण संस्थाओं का जाल ऐसा है कि इसमें, जो उलझा वो कभी बाहर नहीं निकल पाया। 10-11 साल पहले सरकार ने ऐसी 55 संस्थाओं की सूची तैयार की थी, जिसमें सबसे ज्यादा परिवार अपनी जमीन के लिए परेशान हैं। इन संस्थाओं पर कार्रवाई करते हुए अधिकांश के संचालक मंडल को भंग कर दिया गया। कई संचालकों के खिलाफ कोर्ट में केस भी दायर हुए। साथ ही प्लॉट देने में जो कानूनी दिक्कतें थीं, उनको दूर करने का काम शुरू किया गया। लेकिन, इसमें से महज दो संस्थाओं जनकल्याण और सुविधा गृह निर्माण संस्था के कुछ ही सदस्यों ही प्लॉट मिल पाया। आज भी दो दर्जन से ज्यादा संस्थाएं ऐसी हैं, जिनकी जमीनों का कोई हल नहीं निकल पाया। इस संस्था को लेकर अधिकारियों का कहना है कि जबतक चुनाव नहीं होते तबतक कोई हल नहीं निकल पाएगा।
इन्हें इंसाफ मिलेगा?
नेताओं और अधिकारियों के वादे सुनते-सुनते कई के बाल सफेद हो गए, कई गुजर गए लेकिन आज तक नहीं इन्हें प्लाट नहीं मिला है। इतनी कानून पेचिदगियों में मामले उलझे है कि अधिकारी भी एक समय के बाद दिलचस्पी नहीं लेते। लेकिन इसमें इन लोगों का क्या कसूर है। इन्हें जो दुख दिया है वो तो सिस्टम में बैठे ही अधिकारियों ने दिया है। बहरहाल अब सहकारिता समितियों के चुनाव का ऐलान हुआ है तो उम्मीद की जा सकती है कि नए संचालक मंडल का गठन होगा और इन्हें इंसाफ मिलेगा। बहरहाल आप भी परेशान है और सिस्टम से नाउम्मीद हो चुके हैं, तो आप अपनी शिकायत सीएम हेल्पलाइन यानी कॉमन मैन हेल्पलाइन में कर सकते हैं। हमारा वाट्सएप नंबर है। 7000024141 और ईमेल आईडी है official@gmail.com अगली बार एक और मामले को लेकर आपसे रूबरू होंगे।