Bhopal. ओबीसी आरक्षण के बगैर चुनाव करवाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब साफ हो गया है कि अब चुनाव टलना मुश्किल है। चुनाव तो होकर ही रहेंगे। क्योंकि जिस तरीके से बीजेपी और कांग्रेस ने तय कर लिया है कि वो राजनीतिक स्तर पर ओबीसी के उम्मीदवारों को आरक्षण देंगे। अब इसमें ज्यादा कुछ कहने और करने की गुंजाइश बची नजर नहीं आती है। राज्य निर्वाचन आयोग भी तैयार है। चुनाव के लिए और निर्वाचन आयोग ने कह दिया है कि 12 जून तक पंचायत और 30 जून तक नगरीय निकाय चुनाव करवा दिए जाएंगे। अब राजनीतिक दलों के पास क्या बचता है केवल खुद को ओबीसी हितैषी बताना और इसलिए दोनों ही राजनीतिक दलों ने इसमें कसर नहीं छोड़ी। 11 मई को राजनीतिक दांव पेंच का दौर चलता रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने आधी अधूरी रिपोर्ट मानते हुए खारिज की
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 14 मई को विदेश दौरे पर निकलने वाले थे। 11 मई को सीएम विदेश दौरे से संबंधित अधिकारियों की बैठक भी लेने वाले थे। कार्यक्रम यही तय था। इसके कुछ ही देर बाद मुख्यमंत्री ने ट्वीट किए। लिखा कि वो विदेश दौरा कैंसिल कर रहे हैं। उसकी वजह बताई कि सुप्रीम कोर्ट का ओबीसी आरक्षण को लेकर जो फैसला आया है। उसे देखते हुए ये फैसला लिया है। जानकारों की माने तो ये एक राजनीतिक दांव है। दरअसल ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जिस ट्रिपल लेयर टेस्ट करवाने के लिए कहा था वो सरकार समय रहते कर नहीं पाई। सुप्रीम कोर्ट ने भी आधी अधूरी रिपोर्ट मानते हुए इसे खारिज कर दिया। कांग्रेस को मौका मिला बीजेपी पर निशाना साधने का। कांग्रेस के हमले की धार को बोथरा करने की नीयत से और खुद को ओबीसी का हितैषी बताने के लिए बीजेपी की तरफ ये दांव चला गया ऐसा कहा जा रहा है। इसके बाद बीजेपी नेताओं ने भी इस दांव को भुनाने में कसर बाकी नहीं छोड़ी।
कमलनाथ ने अपने इस ट्वीट के जरिए हमले की धार को तेज किया
हालांकि कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ ने ट्वीट कर ये जरूर लिखा कि अब पूछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। यानी जब बीजेपी सरकार को जिस समय एक्शन लेना था उस समय तो लिया नहीं। कमलनाथ ने अपने इस ट्वीट के जरिए हमले की धार को तेज करने की कोशिश की। इसके बाद शुरू हुआ खुद को ओबीसी हितैषी बताने का असली खेल। क्योंकि राज्य निर्वाचन ने तो साफ कर दिया है कि वो चुनाव के लिए तैयार है। आयोग की कलेक्टर्स के साथ हुई बैठक के बाद साफ किया गया कि 12 जून तक पंचायत के और 30 जून तक नगरीय निकाय के चुनाव करवा दिए जाएंगे।
अब राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारी पूरी है। इधर रिव्यू पिटीशन की बात की जा रही है लेकिन संविधान के जानकारों की माने तो रिव्यू पिटीशन से आगे कुछ हो सकता है। इसकी संभावना बेहद कम है। ऐसे में अब चुनाव टलना मुश्किल है इसलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने साफ कर दिया कि राजनीतिक तौर पर टिकटों में आरक्षण दिया जाएगा। कांग्रेस ने तो कह दिया कि 27 फीसदी ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देंगे और बीजेपी ने कहा कि 27 फीसदी क्या जरूरत पड़ी तो उससे ज्यादा आरक्षण देंगे।
बीजेपी कांग्रेस में आरोप प्रत्यारोप जारी
यानी दोनों राजनीतिक दलों के बयान ही बता रहे हैं कि अब वो भी मान चुके हैं कि चुनाव दंगल में उतरना ही होगा। इसलिए अब खुद को ओबीसी हितैषी बताने का खेल शुरू हो गया है। बीजेपी नेता कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं कि यदि कांग्रेस के लोग कोर्ट नहीं जाते तो ऐसी नौबत नहीं आती तो कांग्रेस नेताओं की दलील है कि कोर्ट ने तो सरकार को स्थितियां सुधारने के लिए कहा था। लेकिन सरकार की मंशा ही नजर नहीं आती। और अब खुद को ओबीसी हितैषी बताने का ये सियासी खेल तबतक चलेगा जबतक की चुनाव नहीं जो जाते।
नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने ये भी मांग कर दी है कि ओबीसी आरक्षण को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए और इस पर चर्चा की जाए कि आखिरकार चूक कहां हुई। खैर ये तो बात हुई सियासत की। दोनों ही पार्टियों ने फैसला किया है कि ओबीसी के 27 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिया जाएगा। बीजेपी ने आंकड़ा साफ नहीं किया लेकिन कांग्रेस के 27 फीसदी से कम आरक्षण तो बीजेपी देने से रही। तो अब यदि दोनों ही पार्टियां 27 फीसदी के हिसाब से आरक्षण देती है, तो कितने पद सामान्य के खाते में आएंगे कितने पिछड़ों के।
नगरीय निकाय चुनाव में पार्टियों के आरक्षण का फॉर्मूला
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब चुनाव 36 फीसदी आरक्षण के हिसाब होंगे यानी 20 फीसदी आरक्षण एससी को और 16 फीसदी आरक्षण एसटी को। अब तक जो 25 फीसदी आरक्षण ओबीसी को दिया जाता रहा वो नहीं होगा। यानी बाकी सारी सीटें फ्री फॉर ऑल हो जाएंगी। अब राजनीतिक दलों ने कह दिया है कि 27 फीसदी आरक्षण देंगे तो पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में पार्टियों के आरक्षण का फॉर्मूला अलग अलग लागू होगा। क्योंकि पंचायत चुनाव तो राजनीतिक पार्टी के सिंबल पर नहीं लड़ा जाता। राजनीतिक दलों का समर्थन रहता है इसलिए पंचायत चुनाव में 27 फीसदी आरक्षण देने में ज्यादा मशक्कत करना पड़ेगी। पंचायत चुनाव में वैसे भी बेहद तनातनी के हालात बनते है और ग्रामीण इलाकों में ही ओबीसी का ज्यादा प्रभाव है। अब किसी तरह राजनीतिक दलों ने ये गुणा भाग मैनेज कर भी लिया तो पंचायत के त्रिस्तरीय चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्क्ष और जनपद अध्यक्षों को किस तरह से 27 फीसदी आरक्षण का लाभ देंगे और कितने पद ओबीसी के खाते में जा सकते हैं।
जिला पंचायत अध्यक्ष : 52
एससी-एसटी को 36 फीसदी आरक्षण के बाद - 19 पद मिल सकते हैं। अब राजनीतिक दलों ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का ऐलान किया है तो 9 पद ओबीसी को दिए जा सकते हैं और फ्री फॉर ऑल होंगे 24 पद। इन 24 में से भी ओबीसी को पद दिए जा सकते हैं।
जनपद पंचायत अध्यक्ष : 313
- 36 फीसदी एससी,एसटी आरक्षित पद- 113
महापौर- 16
- 36 फीसदी एससी,एसटी आरक्षित पद— 6
नगर पालिका अध्यक्ष— 99
- 36 फीसदी एससी, एसटी आरक्षित पद— 36
नगर परिषद अध्यक्ष— 298
- 36 फीसदी एससी,एसटी आरक्षित पद— 107
यानी कुल मिलाकर जो फ्री फॉर ऑल बचेंगे उसमें से ही पद एडजस्ट किए जाएंगे, तो क्या सामान्य वर्ग का हक मारा जाएगा। अब ये इतनी जल्दी नहीं कहा जा सकता लेकिन ओबीसी को खुश करने में राजनीतिक दल ऐसा कर भी सकते हैं और ये दलील भी दे सकते हैं कि जहां उन्हें जो उम्मीदवार दमदार दिखाई दिया उसी हिसाब से टिकट दिया गया है। यानी अब नगरीय निकाय जो सिंबोल पर लड़े जाएंगे वहां दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त का सामना दोनों ही दलों को करना पड़ सकता है।