Gwalior. सूबे की सियासत में गर्माहट आना शुरू हो गई है। पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों की रणभेरी बज चुकी है। चुनाव में जीत किसी भी प्रत्याशी के लिए उज्ज्वल भविष्य का मार्ग खोलती है, वहीं पराजय भविष्य की सफलता के सभी प्रयासों पर ताला जड़ सकती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे परिवार के अतीत की घटनाओं से परिचय कराने जा रहे जो देश की स्वतंत्रता के पहले तो अंचल की सत्ता संभाले ही हुए था लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी सत्ता के शिखर के आसपास है। इस परिवार में किसी को जीत की जगह हार भी मिली तो पराजय ने भी उसकी तरक्की के नए रास्ते खोले। ये परिवार है ग्वालियर का सिंधिया राज परिवार।
प्रतिष्ठा पर हार-जीत का प्रभाव नहीं
देश का एक ऐसा राजशाही परिवार है जिसकी प्रतिष्ठा पर हार-जीत का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया परिवार एक ऐसा परिवार है जिसका कोई भी सदस्य चुनाव में हारा तो वह सियासत में बढ़ता चला गया है। मतलब इस परिवार के सदस्यों ने हार से कभी हार नहीं मानी और बाजी पलट दी।
सिंधिया परिवार के सदस्यों का अलग ही रसूख
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया राज परिवार जो देश के साथ-साथ मध्य प्रदेश की राजनीति का गढ़ माना जाता है। यही वजह है कि प्रदेश से लेकर देश की सियासत में सिंधिया परिवार के सदस्यों का एक अलग ही रसूख है। हमेशा से इस परिवार के सदस्यों का प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में काफी अच्छा खासा वर्चस्व रहा है। लेकिन सिंधिया परिवार के सदस्यों ने अपनी हार का डर भी करीब से देखा है। कई सदस्य राजनीति की सियासत में बाजी हारे हैं लेकिन उन्होंने अपने हौसले को कभी भी हारने नहीं दिया। राजशाही परिवार के सदस्य राजनीति में बुरी तरह हारे, लेकिन उन्होंने इस हार से कभी हार नहीं मानी, बल्कि वो लगातार राजनीति की सियासत में आगे बढ़ते चले गए। अब हम बताएंगे राजनीति की सियासत में सिंधिया परिवार के कौन-कौन से ऐसे सदस्य हैं जो अपने राजनीतिक करियर में बुरी तरह हारे लेकिन उन्होंने अपनी इसी हार को अपनी कामयाबी का हार बना लिया और राजनीति में सबसे बड़े नेताओं में शुमार हो गए।
राजमाता विजय राजे सिंधिया
सबसे पहले हम बात की शुरुआत सिंधिया परिवार में राजनीति की शुरुआत करने वाली राजमाता विजय राजे सिंधिया से करते हैं। राजमाता जनसंघ की प्रमुख सदस्य रही और वो भारतीय जनता पार्टी की शीर्ष नेताओं में शुमार रहीं। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी आज भी राजमाता विजय राजे सिंधिया के आदर्शों का अनुसरण करती आ रही है। राजनीति में शुरुआत करने के बाद राजमाता विजय राजे सिंधिया ने सन 1972 में दतिया भिंड संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के दिग्गज नेता नरसिंह राव दीक्षित को बुरी तरह हराया। इस जीत के बाद राजमाता विजय राजे सिंधिया का कद लगातार बढ़ता गया। उसके बाद सन 1980 में पार्टी ने राजमाता विजय राजे सिंधिया को उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के खिलाफ उतारा, लेकिन इस चुनाव में राजमाता विजय राजे सिंधिया बुरी तरह हार गई। लेकिन राजमाता विजय राजे सिंधिया ने इस हार से हार नहीं मानी बल्कि वह अपनी इस हार के बाद राजनीतिक कद में तेजी से आगे बढ़ती चली गईं। राजमाता विजय राजे सिंधिया बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनीं, उसके बाद राज्यसभा सदस्य और वो आगे जाकर बीजेपी की निर्णायक सदस्य बनकर शीर्ष नेता के रूप में सामने आईं।
वसुंधरा राजे सिंधिया
राजमाता विजय राजे सिंधिया ने अपनी बड़ी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया को राजनीति में एंट्री कराई। 1984 में वसुंधरा राजे सिंधिया भिंड-दतिया लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकिट पर चुनाव लड़ी लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार कृष्ण सिंह जूदेव से बुरी तरह हार गईं। मायके में बुरी तरह हार का सामना करने के बाद वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपनी ससुराल को राजनीतिक केंद्र बनाया और उसके बाद ससुराल यानी राजस्थान में एक पावरफुल नेता के रूप में उभरीं। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रही हैं और इस समय राजस्थान की शीर्ष नेता के रूप में शामिल हैं।
माधवराव सिंधिया
सिंधिया परिवार के सदस्य माधवराव सिंधिया की बात करें तो माधवराव सिंधिया कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता माने जाते थे और वो राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बेहद करीब थे। लेकिन माधव सिंधिया के राजनीतिक करियर में भी एक बड़ा बदलाव सामने आया था। महाराज का हवाला कांड में नाम आने के बाद उनकी राजनीति पर प्रश्न चिन्ह लग गया और हालत ये हो चुकी थी कि कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन हार की बाजी को पलटने में माहिर सिंधिया परिवार के मुखिया रहे महाराज सिंधिया ने मध्यप्रदेश विकास पार्टी का निर्माण किया और उन्होंने जीत हासिल की। उसके बाद कांग्रेस में शामिल हुए और एक बड़े दिग्गज नेता के रूप में उनका कार्यकाल रहा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया
अब बात करते हैं वर्तमान में सिंधिया परिवार के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया की। ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में हार का स्वाद चखा है लेकिन हार की बाजी को पलटना सिंधिया परिवार बखूबी जनता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया परिवार की पैतृक सीट गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़े, उनके समर्थक कार्यकर्ता डॉ. केपी यादव ने उन्हें करारी हार दे दी। 2019 के लोकसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के हारने के बाद पूरे देश भर की राजनीति में हलचल पैदा हो गई। इसका सबसे बड़ा कारण है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया उस व्यक्ति से हारे थे वो उनका कार्य करता था और उनके साथ सेल्फी लेता था। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक छोटे से कार्यकर्ता केपी यादव को ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने उतारा था लेकिन हालात ऐसे बने कि ज्योतिरादित्य सिंधिया उसी से हार गए। ये चुनाव हारने के बाद सिंधिया की राजनीतिक करियर का ग्राफ काफी नीचे आ गया और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया हार से उबर नहीं पा रहे थे। लेकिन कहते हैं कि सिंधिया परिवार हारी हुई बाजी को पलटना जानता है। एक झटके में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बाजी को पलटकर रख दिया। कमलनाथ सरकार बनने के बाद कांग्रेस पार्टी में असहज महसूस कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं बाजी पलटकर अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी में शामिल होने के बाद सिंधिया का कद लगातार तेजी से बढ़ता गया। बीजेपी में पहले राज्यसभा सांसद और उसके बाद केंद्रीय मंत्री। अब हालात ये हैं कि लगातार प्रदेश से लेकर देश की राजनीति में सिंधिया का ग्राफ लगातार तेजी से बढ़ रहा है।
लगातार बढ़ रहा है सिंधिया का कद
2019 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में लगातार कद बढ़ता जा रहा है। हालात ये हो चुके हैं कि बीजेपी में अब भी देश की राजनीति में उनका अच्छा खासा वर्चस्व है और बताया जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें सीएम पद की जिम्मेदारी मिल सकती है। इसलिए कहा जा सकता है कि पूरे देश भर में सिंधिया परिवार है ऐसा एक परिवार है जो हारे या जीते, लेकिन उनका राजनीतिक ग्राफ लगातार बढ़ता जाता है।