MP में हिजाब पॉलिटिक्स: क्या है हिजाब? कैसे हुई प्रथा शुरू; MLA-मंत्री के तर्क

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Aashish Vishwakarma
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MP में हिजाब पॉलिटिक्स: क्या है हिजाब? कैसे हुई प्रथा शुरू; MLA-मंत्री के तर्क

भोपाल. कर्नाटक में हिजाब पहनने का विवाद गरमाया हुआ है। मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में इस मसले पर सुनवाई हो रही थी और कॉलेजों में बवाल मचा हुआ था। हिजाब पहनकर कॉलेज पहुंची लड़की के सामने हिंदू संगठनों ने जय श्रीराम के नारे लगाए तो लड़की ने जवाब में अल्लाह हू अकबर के नारे लगाए। कर्नाटक में ये विवाद काफी बढ़ चुका है। लेकिन अब मप्र में भी हिजाब पॉलिटिक्स (Hijab Politics) शुरू हो गई है। स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने बयान दिया है कि स्कूलों में हिजाब (Hijab controversy) पहनने पर रोक लगेगी। वहीं, परमार के बयान के बाद विधायक आरिफ मसूद ने हिजाब पर काउंटर जवाब दिया।




— TheSootr (@TheSootr) February 8, 2022



परंपरा का घरों पर पालन करें: इंदर सिंह परमार ने हिजाब पर बयान देते हुए कहा है कि हिजाब यूनिफॉर्म कोड का हिस्सा नहीं है। फिर भी कोई हिजाब पहनकर स्कूल में आता है, तो हिजाब पहनने पर रोक लगेगी। वे आगे इस मामले पर कहते हैं कि भारत की मान्यता है कि जिस परंपरा में लोग रहते हैं, उसका वे अपने घरों तक पालन करें। स्कूलों में परंपरा का पालन नहीं हो सकता, इसलिए स्कूल के नियमों का पालन करें। स्कूल शिक्षा मंत्री के इस बयान के बाद सियासत गर्माई और बीजेपी और कांग्रेस में इसे लेकर बहस छिड़ गई।




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परमार पर मसूद का काउंटर: कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा कि परमार का ये बयान अफसोसजनक है। बच्चियां कवर्ड अच्छी लगती है। मैं अपनी बच्ची को अच्छे कपड़े पहनाना चाहता हूं। लेकिन उसके साथ ये भी ख्याल रखा जाए कि उनका जिस्म नहीं दिखे। मैं अपनी बेटी के लिए जैसा सोचता हूं। मुझे उम्मीद है कि इंदरसिंह परमार को भी दूसरों की बेटियों के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि 70 साल में आज तक हिजाब से दिक्कत नहीं हुई फिर आज क्यों हिजाब को लेकर विवाद हो रहा है। देश संविधान के हिसाब से चलेगा। परमार को नसीहत देते हुए मसूद ने कहा कि परमार पहले स्कूलों के बारे में सोचे, उसके लिए बजट जारी करे। फिर बाद में ऐसी बयानबाजी करें।



'मसूद की सोच तालिबानी': बीजेपी नेता हितेश वाजपेयी ने मसूद के बयान को तालीबानी सोच करार दिया है। वायेपयी ने कहा कि हिजाब और बेटियों पर दिया आरिफ मसूद का बयान तालीबानी सोच का उदाहरण है। आरिफ मसूद कहते हैं कि वो तय करते हैं कि बेटियां क्या पहनेगी? कैसी मानसिकता के साथ आप ये कह रहे हो। आज हमारी बेटियां कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, उन्हें तय करने देना चाहिए कि वो क्या करना चाहती है। 



कर्नाटक में हिजाब कैसे हुआ शुरू: कर्नाटक में हिजाब विवाद की शुरूआत 1 जनवरी को हुई थी। कुछ मुस्लिम स्टूडेंट्स ने आरोप लगाया कि हिजाब पहनने के कारण उन्हें क्लासरूम में आने नहीं दिया। देखते ही देखते कर्नाटक (Karnataka Hijab controversy) के और भी स्कूलों में हिजाब पहनकर लड़कियां पहुंचने लगी। मुस्लिम लड़कियों के कदम के विरोध में कुछ हिंदू छात्र भगवा शॉल ओढ़कर स्कूल पहुंच गए। यानी अब ये विवाद कर्नाटक से निकलकर एमपी पहुंचा है लेकिन कुल मिलाकर इस विवाद में सियासत ज्यादा है, क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव जो है।



मसला सियासी ज्यादा लगता है क्योंकि इस पर दो समुदाय और उससे जुड़ी पार्टियां आमने-सामने है। बहरहाल ये विवाद और ज्यादा इसलिए बढ़ा क्योंकि मुस्लिम महिलाओं ने पूरी दुनिया में जागरूकता पैदा करने और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए 1 फरवरी को विश्व हिजाब दिवस मनाया। इस विवाद के बीच सवाल ये है कि आखिर मुस्लिम लड़कियों में हिजाब क्यों जरूरी है।



क्या होता है हिजाब?: हिजाब का मतलब पर्दे से है। कुरान में पर्दे का मतलब किसी कपड़े के पर्दे से नहीं बल्कि पुरुषों और महिलाओं के बीच के पर्दे से होता है। हिजाब यानी किसी भी कपड़े से महिलाओं का सिर और गर्दन ढकी होना चाहिए। इसमें महिला का चेहरा दिखता रहता है। 



बुर्का से कैसे अलग होता है: बुर्का एक चोले की तरह होता है। जिसमें महिलाओं का शरीर पूरी तरह से ढका होता है। केवल आंखों के आगे जालीदार कपड़ा रहता है। इसमें महिला के शरीर का कोई भी अंग दिखाई नहीं देता। 



नकाब क्या होता है: नकाब एक तरह से कपड़े का पर्दा होता है, जो सिर और चेहरे पर लगा होता है। इसमें महिला का चेहरा भी नजर नहीं आता है। केवल आंखें नजर आती है। वहीं, दुपट्टा एक तरह से लंबा स्कार्फ होता है, जिससे सिर ढका होता है और यह कंधे पर रहता है। इसे हिजाब की तरह नहीं बांधा जाता है।



क्या है हिजाब की कहानी: हर धर्म में कुछ खास तरह के पहनावे के पीछे वैज्ञानिक तथ्य होते हैं। हिजाब के पीछे की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। सीएनएन की रिपोर्ट कहती है कि हिजाब की शुरुआत महिलाओं की जरूरत के आधार पर की गई थी। इसका इस्‍तेमाल मैसापोटामिया सभ्‍यता के लोग करते थे। शुरुआती दौर में तेज धूप, धूल और बारिश से सिर को बचाने लिनेन के कपड़े का इस्तेमाल होता था। 13वीं शताब्‍दी में लिखे गए प्राचीन एसिरियन लेख में भी इसका जिक्र किया गया है। हालांकि, बाद में इसे धर्म से जोड़ा गया। इसे महिलाओं, बच्चियों और विधवाओं के लिए पहनना जरूरी कर दिया गया। इसे धर्म के सम्‍मान के प्रतीक के तौर पर पहचाना जाने लगा। लेखन फेगेह शिराजी ने अपनी किताब ‘द वेल अनइविल्‍ड: द हिजाब इन मॉडर्न कल्‍चर’ में लिखा है कि सऊदी अरब में इस्‍लाम से पहले ही महिलाओं में सिर को ढंकने का चलन आम हो चुका था। इसकी वजह थी वहां की जलवायु। तेज गर्मी से बचने के लिए महिलाएं इसका इस्‍तेमाल करने लगी थीं।


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