Mandla. मध्य प्रदेश की सरकार भले ही आदिवासी इलाकों (Aboriginal localities) में सुविधाओं और योजनाओं (Features and plans) का अंबार लगाने का दावा करती हो, लेकिन हालात बदतर हैं। मंडला (mandla) जिले में घर तक पहुंच मार्ग के ना होने की कीमत एक गर्भवती महिला (pregnant woman) को चुकानी पड़ी। सड़क (road) न होने पर एंबुलेंस (ambulance) ने गांव जाने से ही इंकार कर दिया। जिसके बाद मजबूरन गर्भवती महिला को खाट (cot) पर रखकर परिजनों ने 3 किमी का रास्ता पैदल ही तय कर एंबुलेंस तक पहुंचाय। कड़ी मशक्कत के बाद बड़ी मेहनत के बाद जैसे ही महिला अस्पताल (hospital) पहुंची और बच्चे को जन्म दिया तो शिशु की मौत पेट में ही हो चुकी थी।
सड़क न होने से नहीं आई जननी एक्सप्रेस
मध्यप्रदेश में सरकारी सिस्टम ने एक गर्भवती से मां बनने की खुशी छीन ली। अपनी कोख में 9 महीने तक पाले बच्चे का इंतजार (wait) खत्म ही होने वाला था लेकिन ये खुशियां मातम में बदल गईं और सिस्टम (system) ने कभी ना भुलाने वाली पीड़ा महिला को दे दी। मामला मंडला के बेहरा टोला (Behra Tola) गांव का है। सुनिया मरकाम नामक महिला को प्रसव पीड़ा (pregnancy pain) हो रही थी। परिजनों ने सरकारी एंबुलेंस सेवा (government ambulance service) को 108 पर फोन लगाकर बुलवाया। लेकिन, सड़क न होने की वजह से एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंची और 3 किमी दूर जाकर रुक गई। जिसके बाद परिजनों ने एक खाट पर महिला को लिटाया और उसे लेकर पैदल (on foot) ही एंबुलेंस तक ले गए।
जिम्मेदारों ने झाड़ा पल्ला
सुनिया को जिला अस्पताल (district hospital) में भर्ती (admit) किया गया। हालत बिगड़ने पर जबलपुर (jabalpur) रेफर (refer) किया गया। वहां उसने मृत बच्चे (dead child) को जन्म (birth) दिया। बताया जाता है कि सुनिया की प्रेग्नेंसी हाई-रिस्क (high risk pragnency) वाली थी। इस दौरान कलेक्टर (collector) हर्षिका सिंह ने मीडिया से कहा कि गर्भवती जिस गांव में रहती है, वह पहाड़ के ऊपर बसा एक टोला है। खड़ी चढ़ाई (steep climb) होने से वाहन ऊपर नहीं चढ़ पाते। 2017 में ग्रेवल सड़क (gravel road) बनी थी, लेकिन उस पर वाहन नहीं चलाए जा सकते। हमने टीम को बोला है कि आप तकनीकी रूप से समझ लीजिए, अगर वहां सड़क बनाने की संभावना है तो हम स्पेशल प्रस्ताव (special offer) भेज सकते है।