MP: निजी स्कूलों का 3 किमी का बस किराया 900 से 1900 रुपए तक, एक्ट में प्रावधान.. पर DEO-RTO बोले- हमें किराया तय करने का हक नहीं

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Rahul Sharma
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MP: निजी स्कूलों का 3 किमी का बस किराया 900 से 1900 रुपए तक, एक्ट में प्रावधान.. पर DEO-RTO बोले- हमें किराया तय करने का हक नहीं

Bhopal. राजधानी भोपाल में 6000 से ज्यादा बस और वैन बच्चों को स्कूल लाने ले जाने का काम कर रही है। इन बसों के लिए निजी स्कूल पेरेंट्स से मनमाफिक किराया वसूल कर रहे हैं। 3 किमी तक के लिए ट्रांसपोर्टेशन फी 900 से लेकर 1900 रूपए तक है। ऐसा नहीं है कि इनकी मनमानी पर लगाम लगाने के लिए कोई नियम कानून नहीं है, बल्कि जिम्मेदारों की उन्हें लागू करने की मंशा ही नहीं है। मध्यप्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) नियम जिसे सामान्य भाषा में फीस एक्ट कहा जा सकता है, प्रदेश में 2020 से लागू है। वैसे तो यह नियम 2017 में ही बन गया था पर लागू होने में ही इसे दो साल से अधिक समय लग गया। अब जब ये लागू हो गया है, तो जिम्मेदार अधिकारी इस एक्ट के तहत कार्रवाई ही नहीं कर रहे, जिससे निजी स्कूलों के हाथों पालक लुटने को मजबूर है।





फीस एक्ट में ट्रांसपोर्टेशन फीस निर्धारित करने का प्रावधान है, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी और आरटीओ का कहना है कि हमें निजी स्कूल की बसों का किराया तय करने का अधिकार नहीं। कुल मिलाकर पेरेंट्स न केवल स्कूल फीस बल्कि ट्रांसपोर्टेशन फी में भी लूटने को मजबूर है। जबकि कई बसों में सीसीटीवी कैमरे, पैनिक बटन जैसी फैसलिटी तक नहीं है।  





सुपर लग्जरी कोच से भी महंगा है स्कूल बस का किराया





मध्यप्रदेश परिवहन विभाग ने 20 अप्रैल 2021 यात्री किराया संबंधित एक अधिसूचना जारी की। जिसमें यात्रा की सबसे वीआईपी केटेगिरी यानी सुपर लग्जरी कोच (एसी) का यात्रा किराया प्रति किमी सामान्य वाहन किराया से 75 प्रतिशत अधिक रखा गया। सामान्य वाहन का किराया प्रति पैसेंजर प्रति किमी 1.25 रूपए है...मतलब सुपर लग्जरी कोच (एसी) में एक पैसेंजर का प्रति किमी किराया हुआ 2.18 रूपए। निजी स्कूल 3 किमी तक का किराया 900 से 1900 रूपए लेते हैं। हालांकि इस किराए में आना और जाना दोनो शामिल है, मतलब 6 किमी रोज। यदि स्कूल 1 महीने में 25 दिन लगे तो बस चली 150 किमी और इस हिसाब से प्रति किमी किराया पड़ा 6 रूपए से लेकर 12.6 रूपए तक। वहीं यदि प्रदेश में कोई पैसेंजर यही 150 किमी का सफर सुपर लग्जरी कोच (एसी) में करता है तो उसे महज 327 रूपए देने होंगे। कुल मिलाकर स्कूल बसों का किराया सबसे वीआईपी केटेगिरी यानी सुपर लग्जरी कोच (एसी) से भी महंगा है।





डीजल में 26 प्रतिशत का इजाफा तो किराए में 500 फीसदी की वृद्धि क्यों?





बढ़ते किराए को लेकर अक्सर पेट्रोल—डीजल की बढ़ती कीमतों का सहारा लिया जाता है...तो चलिए अब हम आपको इसका गणित भी समझा दें। चूंकि निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा चलाई जाने में करीब—करीब सभी वाहन डीजल ही होते हैं, इसलिए हम यहां आंकलन पूरा डीजल से ही कर लेते हैं। जनवरी 2020 में मध्यप्रदेश में डीजल की कीमत 75.17 रूपए प्रति लीटर थी जो आज 26 प्रतिशत बढ़कर 94.83 रूपए प्रति लीटर हो गया है। 2020 में स्कूल बस—वैन का किराया 3 किमी तक 300 रूपए था जो अब बढ़कर 900 से 1900 तक हो गया है...मतलब किराए में 200 प्रतिशत से लेकर 533 फीसदी तक का इजाफा कर दिया गया। यह स्थिति तब जब इनमें से कई वाहनों में बच्चों की सुरक्षा का भी कोई इंतजाम नहीं है। अधिकांश वैन का इंश्योरेंस, फिटनेस से लेकर माॅनिटरिंग तक नहीं है।





अब जान लीजिए...किस स्कूल की है कितनी बस फीस







  • 0.1 से 5 किमी तक : ज्ञानगंगा इंटरनेशनल एकेडमी में 900 रूपए, सेज इंटरनेशल स्कूल में 950 रूपए, महर्षि विद्या मंदिर में 1190 रूपए और सागर पब्लिक स्कूल में 1900 रूपए तक ट्रांसपोर्टेशन फीस है।



  • 5.1 से 10 किमी तक : ज्ञानगंगा इंटरनेशनल एकेडमी में 1100 रूपए, महर्षि विद्या मंदिर में 1250 रूपए, सेज इंटरनेशनल स्कूल में 1400 रूपए और सागर पब्लिक स्कूल में 2100 रूपए तक ट्रांसपोर्टेशन फीस है।


  • 10 किमी से उपर तक : ज्ञानगंगा इंटरनेशनल एकेडमी में 1250 रूपए, महर्षि विद्या मंदिर में 1500 रूपए, सेज इंटरनेशनल स्कूल में 1800 रूपए और सागर पब्लिक स्कूल में 2200 रूपए तक ट्रांसपोर्टेशन फीस है।






  • फीस को वेबसाइट पर प्रदर्शित नहीं करना भी एक्ट का उल्लंघन





    जिन निजी स्कूलों की फीस की हमने तुलना की यह तो वह स्कूल है जिनकी ट्रांसपोर्ट फीस किमी के हिसाब से वेबसाइट पर दिख रही है। कई स्कूल इनसे भी दो कदम आगे हैं। भास्कर समूह के संस्कार वैली स्कूल की वेबसाइट पर ट्रांसपोर्ट फीस प्रदर्शित तो है, लेकिन वह एक ही दिख रही है। यानी 1 किमी से लेकर 20 किमी तक एक जैसी जो संभव नहीं है। जागरण ग्रुप के दिल्ली पब्लिक स्कूल समेत बिलाबोंग हाई, इंटनरेशनल पब्लिक स्कूल जैसे नामचीन संस्थानों ने अपनी आफीशियल वेबसाइट पर इसे प्रदर्शित ही नहीं किया है। वहीं सेंट माउंटफोर्ट, बाल भवन जैसे स्कूलों ने रूट वन और टू के हिसाब से ट्रांसपोर्ट फीस प्रदर्शित की है, जिससे यह पता ही नहीं लगाया जा सकता है कि कितने किमी पर स्कूल कितनी फीस वसूल रहा है। जबकि निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) नियम यानी फीस एक्ट की धारा—6 के बिंदु—क में स्पष्ट कहा गया है कि स्कूल अपनी वेबसाइट पर सभी फीस प्रदर्शित करेंगे, जिनमें ट्रांसपोर्ट फी भी शामिल है।   





    अब बात नियम... कानून और कायदे की...





    निजी स्कूल फीस के नाम पर पेरेंट्स का न लूट सके इसलिए काफी मशक्कत के बाद मध्यप्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) नियम यानी फीस एक्ट का मसौदा तैयार हुआ और उसे लागू किया गया। ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर मोटी—मोटी स्कूल फीस वसूली के मामले में भोपाल के जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) नितिन सक्सेना और क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) संजय तिवारी का कहना है कि निजी स्कूल बसों की फीस तय करना हमारा काम नहीं। तो अब जरा इस नियम पर भी गौर कर लीजिए...फीस एक्ट की धारा—6 के बिंदु—छ में स्पष्ट उल्लेख है कि निजी स्कूल प्रबंधन परिवहन सुविधाओं के संबंध में परिवहन विभाग और स्कूल शिक्षा विभाग के निर्देशों का पालन करेगा। वहीं धारा—9 के बिंदु—2 में भी उल्लेख है कि कमेटी मामला सामने आने पर स्वयं संज्ञान लेते हुए जांच कर सकती है...तो फिर कैसे डीईओ और आरटीओ पेरेंट्स को निजी स्कूलों के हाथों लूटने के लिए खुला छोड़ सकते हैं।   





    2 से 6 लाख तक का है जुर्माने का प्रावधान





    फीस एक्ट में स्पष्ट लिखा है कि नियमों का पालन नहीं करने पर जिला कमेटी संबंधित निजी स्कूल की मान्यता रद्द करने की अनुशंसा कर सकती है। बढ़ी हुई फीस स्टूडेंट को लौटाए जाने का आदेश दे सकती है और फीस एक्ट के प्रावधानों को नहीं मानने पर पहले नोटिस में 2 लाख, दूसरी बार 4 लाख और तीसरी बार 6 लाख रूपए तक का जुर्माना लगा सकती है। पालक महासंघ के सचिव प्रबांध पांडे ने कहा कि एक्ट में आरटीओ और डीईओ को सम्मलित रूप से यह अधिकार दिया गया है कि वह फीस निर्धारित करें, वह नहीं कर रहे हैं, इसलिए निर्धारित दूरी के लिए निजी स्कूल अलग—अलग फीस वसूल कर रहे हैं। वहीं अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष विनिराज मोदी ने कहा कि बस की कंडीशन, उससे जुड़ी सुविधा जैसे...सीसीटीवी, जीपीएस, आनलाइन ट्रेकिंग सिस्टम से भी बसों के किराए में अंतर आता है। जो अच्छे स्कूल हैं वह ओवरलोडिंग नहीं करते तो कुछ करते हैं। ऐसे में बस किराए में तो अंतर रहेगा ही।  





    जबलपुर में डीईओ के उदासीन रवैये से लोगों ने शिकायतें ही करना कर दी बंद





    अभिभावक संघ मध्यप्रदेश के अध्यक्ष हेमंत पटेल ने इसके लिए डीईओ के रवैये को जिम्मेदार बताया। हेमंत पटेल ने कहा कि डीईओ इतने उदासीन रहते हैं कि लोग अब उनके पास शिकायत करने ही नहीं जाते। फीस वृद्धि की शिकायत 6 महीने पहले की थी, आज तक उस शिकायत का कुछ नहीं हुआ। जबलपुर के डीईओ कार्यालय में योजना अधिकारी के रूप में पदस्थ रामअनुज तिवारी का कहना है कि उनके पास ट्रांसपोर्ट फीस बढ़ने संबंधी कोई शिकायत नहीं आई है, यदि ऐसी कोई शिकायत आती है तो वह कार्रवाई करेंगे। वहीं पालक संघ इंदौर के सचिन माहेश्वरी ने कहा कि इसके लिए कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी और शासन की नीति जिम्मेदार है। तत्काल फीस एक्ट के नियमों का पालन कर ट्रांसपोर्ट फीस कम की जाना चाहिए।



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