BHOPAL. रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव-विश्वरंग में देश के प्रतिष्ठित लेखक अमीश त्रिपाठी के साथ इंटरेक्टिव सेशन हुआ। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने अमीश त्रिपाठी को मेमेंटो दिया। विश्वरंग की सह-निदेशक अदिति चतुर्वेदी ने रबीन्द्रनाथ टैगोर की एक अनूठी पेंटिंग कैटेलॉग भी उन्हें भेंट की। कार्यक्रम में टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव का पोस्टर लॉन्च किया गया। विश्वरंग 14 से 20 नवंबर तक चलेगा। मशहूर लेखक अमीश त्रिपाठी ने विश्वरंग की सराहना करते हुए कहा कि ये आयोजन भारतीय साहित्य और संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है। विश्वरंग के स्वप्नदृष्टा संतोष चौबे के प्रयासों से भारतीय सहित्य और संस्कृति की झलक वैश्विक स्तर पर दिखाई दे रही है और अब ऐसे ही ढेरों प्रयासों के कारण विदेशों में भारत की पुरानी छवि में बदलाव आ रहा है।
इतिहास में सुधार की आवश्यकता-अमीश त्रिपाठी
अमीश ने बताया कि भारत में हमारे प्रबुद्ध वर्ग को अपने माइंड को डिकॉलोनाइज करने की आवश्यकता है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हम भारत में कांच की बिल्डिंग बना रहे हैं जबकि हमारे देश का मौसम इसके अनुकूल नहीं है। ये पश्चिमी माइंडसेट के कारण है। हमारे माइंडसेट का कॉलोनाइजेशन कई जगहों पर दिखाई देता है। हम अपने इतिहास के बाजीराव, कान्होजी आंग्रे, सुहेलदेव आदि जैसे कई ऐसे नायकों को नहीं जानते जो बहुत अद्भुत थे, जिनकी कहानियां हमें पता होनी चाहिए लेकिन हमारी जनरेशन उनसे परिचित नहीं है। इसी प्रकार हमें अक्सर बताया जाता है कि हम 1947 में राष्ट्र बने और ब्रिटिशर्स ने हमें एक राष्ट्र के रूप में खड़ा किया। बल्कि ये सच नहीं है, हजारों साल पहले हमारे विष्णुपुराण में भारत को परिभाषित किया गया है एक ऐसे स्थान के रूप में जो हिमालय के दक्षिण और हिंद महासागर के उत्तर में है जहां भरत की संतति निवास करती है। इस कारण अमीश त्रिपाठी कहते हैं कि इतिहास में सुधार की आवश्यकता है।
हमारी कहानियों पर वैज्ञानिक शोध किया जाए-अमीश त्रिपाठी
अपनी नई वेब सीरीज पर बात करते हुए अमीश ने कहा कि इसकी तैयारी के दौरान हमने कई नए तथ्यों की भी खोज की है। पहले हमारा अधिकांश नॉलेज बुकिश था। इसकी रिसर्च के दौरान जब हम देशभर में घूमे तो हम रामायण में वर्णित कई तथ्यों से रूबरू हो पाए जिनसे दुनिया पहले अनजान थी। ऐसे ही एक तथ्य पर बात करते हुए अमीश कहते हैं कि रामायण चित्रकूट में गुप्त गोदावरी नदी का वर्णन करती है। असल में इस नदी के बारे में कोई नहीं जानता लेकिन हम जब चित्रकूट पहुंचे और वहां काफी रिसर्च की तो हमारे जियोलॉजिस्ट ने एक ऐसी नदी को खोज निकाला। इसलिए आज बड़ी आवश्यकता है कि हमारी कहानियों का वैज्ञानिक शोध किया जाए और उन्हें दुनिया के सामने रखा जाए।