ये कैसी व्यवस्था: रैफरल अस्पताल बना हमीदिया, करोड़ों की मशीनें खा रहीं धूल

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ये कैसी व्यवस्था: रैफरल अस्पताल बना हमीदिया, करोड़ों की मशीनें खा रहीं धूल

भोपाल। मध्यप्रदेश (madhya pradesh) के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में से एक हमीदिया अ्स्पताल (hamidia hospital) में कैंसर मरीजों का हाल-बेहाल है। दरअसल यहां लगीं रेडियोथैरेपी (सिकाई) मशीनों पर धूल चढ़ रही है और मरीजों को दूसरे अस्पतालों में रैफर किया जा रहा है। मरीजों को दूसरे अस्पतालों में सिकाई का खर्च 50 हजार से 1.5 लाख उठाना पड़ रहा है। हमीदिया में करोड़ों की कोबाल्ट मशीन भी 2 साल से बंद है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि मशीन काफी पुरानी है, लिहाजा उसे दोबारा शुरु करना फिजूलखर्ची होगा। दूसरी तरफ लीनियर एक्सीलेटर लगाने की कवायद बीते पांच साल से चल रही है।

ऐसे समझें आंकड़े

-कैंसर का प्रायमरी स्टेज पर इलाज ऑपरेशन, रेडियोथैरेपी से किया जाता है। लास्ट स्टेज पर कीमोथैरेपी की जाती है।
-80 फीसदी कैंसर मरीजों का इलाज रेडियोथैरेपी से होता है।
-मरीज की 30-35 दिन तक  रेडियोथैरेपी की जाती है।
-निजी अस्पताल में  रेडियोथैरेपी का खर्च 50 हजार से डेढ़ लाख रुपये तक है।
-2 साल पहले हमीदिया में हर महीने होता था 200 मरीजों का इलाज।
-कोबाल्ट मशीन के बाद नई तकनीक लीनीयर एक्सीलेटर है। जिसे लगाने में 20 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
-हमीदिया में अब पीपीपी मोड में लीनियर एक्सीलेटर लगाने की कवायद चल रही है।

दो साल में फ्री हो जाती मशीन

रेडियोथैरेपी विभाग के एचओडी ओपी सिंह ने बताया कि हमीदिया में हर साल करीब 1 हजार मरीजों की रेडियोथैरेपी की जा सकती है। इस हिसाब से यदि 20 करोड़ रुपये की लीनीयर एक्सीलेटर मशीन लगाई जाती है तो हर साल 10 करोड़ रुपये की बचत होगी। 2 साल में ही मशीन फ्री हो जाएगी, जबकि मशीन पर गारंटी 5 साल की मिलती है। 

पीजी कोर्स पर संकट

गांधी मेडिकल कॉलेज में रेडियोथैरेपी से पीजी की 4 सीटे हैं। लेकिन कोबाल्ट मशीन बंद होने और लीनीयर एक्सीलेटर न होने की वजह से स्टूडेंट प्रेक्टिकल नहीं कर पा रहे। ऐसे में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का निरीक्षण हुआ तो कोर्स बंद हो जाएगा। 

ताले में बंद है 5.5 करोड़ का गामा कैमरा

हमीदिया में 2015 में गामा कैमरा मशीन लगाई गई थी। 5.5 करोड़ की इस मशीन की खासियत है कि कैंसर की जांच के साथ इससे सीटी स्कैन भी किया जा सकता है। लेकिन हमीदिया अस्पताल में सीटी स्कैन के लिए इस मशीन का उपयोग नहीं किया जा रहा। पीपीपी मोड पर खड़गपुर की फाल्गुनी निर्मल प्रायवेट लिमिटेड को दे दिया गया। अब कंपनी मरीजों से सीटी स्कैन की एवज में हजारों रुपये वसूल रही है। 

10 महीने में 10 हजार सीटी स्कैन

-10 महीने में गामा कैमरा मशीने से किए गए 10 हजार सीटी स्कैन
-2017 में फाल्गुनी निर्मल प्रायवेट लिमिटेड से एग्रीमेंट के बाद बंद कर दिया गया गामा कैमरा।
-2020 में खत्म हो गया गारंटी पीरियड। अब लाखों खर्च कर मशीन शुरु करने की तैयारी।
-डीन जितेन शुक्ला ने बताया कि गामा कैमरा तो शुरु हो जाएगा लेकिन सीटी स्कैन नहीं करेंगे। 

प्रायवेट लिमिटेड को कर रहे भुगतान

बीपीएल और आयुष्मान कार्ड वाले मरीजों का सीटी स्कैन फ्री किया जाता है। इसके बदले में हमीदिया अस्पताल प्रबंधन फाल्गुनी निर्मल प्रायवेट लिमिटेड को 40 लाख रुपये महीने तक भुगतान कर रहा है। अन्य मरीजों को 900 रुपये से 1200 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे है।

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