विदिशा (अविनाश नामदेव). मध्यप्रदेश सरकार युवाओं को रोजगार देने के तमाम वादें कर रही है। लेकिन रोजगार के लिए उपलब्ध संसाधनों और जनता के पैसों को कैसे बर्बाद किया जाता है, इसकी बानगी विदिशा में देखने को मिली। यहां युवाओं को रोजगार देने के मकसद से रेलवे का एक बड़ा कारखाना लगाया गया। तत्कालीन सांसद और विदेश मंत्री रही सुषमा स्वराज के प्रयासों से इसकी आधारशिला रखी गई। 60 करोड़ का बजट कारखाने के लिए तय हुआ। 30 करोड़ रुपए में कारखाने का स्ट्रक्चर तैयार हुआ। लेकिन अब इसे कारखाना बनाने की जगह अनाज गोदाम बना दिया है। खास बात ये है कि कारखाने में ट्रैक्शन अल्टरनेटर का निर्माण किया जाना था। भारत इसे विदेश से खरीदता है। कारखाने से मैक इन इंडिया प्रमोट होता तो विदेशों पर निर्भरता कुछ कम होती।
तीन साल पहले कारखाने का काम पूरा: विदिशा के गेहूंखेड़ा के पठार पर रेलवे का कारखाना तैयार किया गया। यहां ज्वाइंट वेंचर कंपनी के सहयोग से हाई स्पीड डीजल इंजन के ट्रैक्शन अल्टरनेटर और एसी ट्रैक्शन मोटर की ओवरहॉलिंग का काम किया जाना था। देश की तत्कालीन विदेश मंत्री और विदिशा की सांसद सुषमा स्वराज के प्रयासों से इसे विदिशा में स्थापित किया गया। 2012 में कारखाने को लेकर रेल बजट में घोषणा हुई। 2015 में काम होना शुरू हुआ और 2018 में कारखाने को तैयार करने वाली कंपनी राइट्स ने इसे पूरा कर लिया। लेकिन तीन साल बाद भी कारखाना शुरू नहीं हो सका। जिस समय कारखाने का ऐलान किया गया था तब विदिशा के रहने वाले लोगों को रोजगार की आस बंधी थी क्योंकि इस कारखाने के जरिए 200 लोगों को रोजगार मिलना था।
स्ट्रक्चर बनकर तैयार: गेंहूखेड़ी के पहाड़ी इलाके में करीब 22 एकड़ में ये कारखाना बनाया गया। कारखाने को बनाने के लिए कंपनी ने 5 करोड़ रुपए केवल जगह को समतल करने में खर्च कर दिया। जबकि 10 करोड़ की लागत से कारखाने का शेड और 13 करोड़ से भवन और बाकी सिविल वर्क किया गया। अल्टीनेटर का कारखाना खोलने के पीछे मकसद मेक इन इंडिया को बढ़ावा देना था। भारत अल्टरनेटर विदेशों से खरीदता है। कारखाना बनने की बाद उम्मीद की जा रही थी कि देश में ही अल्टरनेटर बनाए जाएगे।
रेलवे को इतनी कमाई हुई: विदिशा के युवा मोहित रघुवंशी ने बताया कि रोजगार देने के लिए इसे विदिशा में बनाया गया था। यहां करोड़ों की लागत से इसका स्ट्रक्चर खड़ा किया गया है। इतनी लागत से बने कारखाने में केंद्र और प्रदेश सरकार गेहूं का भंडारण कर रही है। जिला प्रशासन इसे वेयरहाउस की तरह इस्तेमाल कर रहा है। रेलवे को इससे 15 रु. प्रति टन के हिसाब से कमाई हो रही है। 2020 में प्रशासन ने यहां 25 हजार टन गेहूं और चने के भंडारण का एस्टिमेट तैयार किया था। अब 25 हजार टन गेहूं चना रखा या नहीं ये अलग बात है लेकिन मान लीजिए कि रखा तो रेलवे को कमाई हुई 3 लाख 75 हजार रु। 2021 में भी इतनी ही कमाई होने का अनुमान है। यानी रेलवे ने करीब साढ़े सात लाख रु. कमाए। 60 करोड़ रु. की रिकवरी के लिए तो बरसों लग जाएंगे। सवाल ये है कि जनता का 60 करोड़ रु. बर्बाद क्यों किया गया? जब इसका इस्तेमाल नहीं करना था।