Bhopal. भारतीय रेल को लेकर आप आए दिन खबरें सुनते और पढ़ते होंगे, इनमें अधिकतर यात्री ट्रेनों से संबंधित खबरें रहती हैं। कई बार आप तक रेलवे का नवाचार भी मीडिया के माध्यम से पहुंचा होगा, पर आज रेलवे का हम जो मुद्दा उठाने जा रहे हैं, वह थोड़ा अलग है और गंभीर भी। मामला है पश्चिम मध्य रेलवे के अंतर्गत भोपाल रेल मंडल के इटारसी जंक्शन का।
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मध्यप्रदेश के इस सबसे बड़े रेलवे जंक्शन की स्थापना बतौर स्टेशन 1900 में हुई। देश आजादी के बाद यहां मुंबई एंड की ओर एक माल गोदाम बनाया गया। यहां मालगाड़ियों के माध्यम से अनाज, खाद जैसी सामग्री आने लगी। जब ये माल गोदाम बनाया गया, तब इटारसी गांव जैसा था, पर अब 1.5 लाख आबादी का एक बड़ा शहर बन चुका है। इटारसी रेलवे माल गोदाम में जब रैक (मालगाड़ी से आने वाली सामग्री) आती है तो उससे होने वाले प्रदूषण से यहां रहने वाले लोगों की जान तक खतरे में पड़ रही है। लोग सांस और फेफड़े जैसे रोगों की चपेट में आ रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि रेलवे भी इस इटारसी में आ रही रैक और उसके खतरों से अंजान नहीं है, बावजूद इसके जिम्मेदार सालों से चुप बैठे हैं...खामियाजा यहां की जनता को उठाना पड़ रहा है।
25 हजार से अधिक लोग प्रभावित
इटारसी के रेलवे माल गोदाम के एक ओर नाला मोहल्ला वाला इलाका है तो दूसरी ओर नरेंद्र नगर वाला इलाका। माल गोदाम के दोनो साइड को ले लें तो करीब 25 हजार लोग यहां रहते हैं जो इस माल गोदाम से किसी ने किसी तरह से प्रभावित है। सबसे ज्यादा असर नाला मोहल्ला की ओर वाले इलाके में पड़ रहा है, क्योंकि रैक की यही लोडिंग—अनलोडिंग होती है। यह तो वह संख्या है जो स्थायी रूप से यहां रह रही है। इटारसी रेलवे जंक्शन पर हर दिन करीब 200 यात्री गाड़ियों का आना जाना है। बड़ी संख्या में यहां रेल यात्री आते हैं, इनमें से कुछ इन्ही रास्तों का इस्तेमाल करते हैं जो माल गोदाम के सामने से होकर गुजरता है। वहीं कई बार माल गोदाम के सामने ही आउटर पर यात्री ट्रेन खड़ी हो जाती है, इस दौरान यदि यहां सीमेंट, फर्टीलाइजर या डीओसी का रैक खाली हो रहा है तो इनके लिए भी परेशानी खड़ी हो जाती है।
रोगियों की संख्या में हर साल 30 फीसदी का इजाफा
नाला मोहल्ला से सटे हुए इलाके में ही क्लीनिक चलाने वाले डॉ. दीपक विश्वास कहते हैं कि स्थिति सिर्फ चिंताजनक नहीं बल्कि अलार्मिंग स्विचवेशन है। रैक से सीमेंट जब उतरती है तो चारों ओर सीमेंट का गुबार उड़ता है जो सीधे लोगों के मुंह में जाता है। इससे उन्हें सांस और फेफड़ों संबंधी बीमारियां हो रही है। मेरे क्लीनिक पर जो लोग आते हैं, उनमें से अधिकांश इन्हीं बीमारियों से पीड़ित होते हैं। हर साल करीब 25 से 30 फीसदी का इजाफा मरीजों की संख्या में हो रहा है जो काफी घातक है।
हम्मालों को नहीं दिए जाते ग्लब्स और मास्क
सीमेंट की रैक आने पर सबसे ज्यादा खतरा यहां काम करने वाले हम्मालों को ही होता है। सीमेंट या फर्टीलाइजर से संबंधी रैक आने पर नियम है कि हम्मालों को ग्लब्स और मास्क दिए जाए, ताकि लोडिंग—अनलोडिंग के समय इससे उड़ने वाली डस्ट से इनको बचाया जा सके, पर यहां हम्मालों को इस तरह की कोई सामग्री नहीं दी जाती। आप खुद सोच सकते हैं सीमेंट का शरीर के अंदर जाने का अर्थ क्या होता है...कुल मिलाकर हम्मालों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और किसी को कोई चिंता नहीं। बंजरंगपुरा के रहने वाले सतीश कैथवास कहते हैं कि जब यहां डीओसी की रैक आती है तो बारिश के समय पूरे इलाके में बदबू होती है। धुल उड़ती रहती है, जिससे परेशानी होती है।
हैवी ट्रेफिक से रहता है दुर्घटना का खतरा भी
रेलवे जंक्शन होने से प्लेटफार्म 1 की ओर वाली सड़क पर हैवी ट्रेफिक रहता है। ऐसे में इसी सड़क से माल गोदाम की ओर आने जाने वाले ट्रकों के गुजरने से यहां जाम की स्थिति बन जाती है। इटारसी के रहवासी नफीस खान बताते हैं कि कई बार यहां दुर्घटनाएं भी हुई है। वैसे भी माल गोदाम शहर के बाहर होना चाहिए, बस यही बीच शहर में ये है, जिससे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इटारसी माल गोदाम में नहीं एक भी नियम का पालन
इटारसी का माल गोदाम अब बस नाम का माल गोदाम रह गया है, क्योंकि यहां एक छोटा सा हॉल है। अब इस जगह सिर्फ रैक ही लगती है...यहां से ट्रकों के माध्यम से आसपास के गोडाउन और वेयरहाउस में माल को भेजा जाता है। रैक प्वाइंट और माल गोदाम की वजह से किसी के स्वास्थ पर कोई बुरा असर नहीं पड़े इसके लिए सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने कुछ नियम बनाए है। पर इटारसी माल गोदाम इनमें से एक भी नियम को पूरा नहीं करता। इतनी अव्यवस्था के बाद भी यहां सालभर में 350 से अधिक रैक आ जाती है।
इटारसी और पीपीपी मॉडल के रैक प्वाइंट में अंतर...
1. इटारसी रेलवे माल गोदाम : नियमों के मुताबिक माल गोदाम जाने वाली सड़क कच्ची नहीं होना चाहिए। जहां सामान उतर रहा है, वह भी पक्का हो, ताकि सीमेंट, फर्टीलाइजर, डीओसी जब उतरे तो वह जमीन के संपर्क में न आए, ताकि पानी दूषित न हो। पर यहां अधिकतर जगह कच्ची है। नियम के मुताबिक न तो यहां बाउंड्रीवाल है और न ही धूल को रोकने के लिए डस्ट सेप्रेशन की कोई व्यवस्था। न ही कोई और इंतजाम। ताज्जबू की बात तो यह है कि डीआरम सौरभ बंधोपाध्याय खुद इन कमी को स्वीकार करते हैं, लेकिन जब जिम्मेदारी की बात आती है तो वही गोलमोल सरकारी बयान की दिखवाते है...प्रपोजल भेजा है...जल्द समस्या खत्म हो जाएगी। सवाल यह है कि यह समस्या 4—5 साल से नहीं बल्कि कई सालों से है तो क्या तब से अधिकारी सो रहे थे।
2. केशर मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक : टर्मिनल हेड सैय्यद सज्जाद अली ने बताया कि यहां 600 मीटर लंबी 3 फुल रैक लाइन है, मतलब पूरी रैक एक ही लाइन में खड़ी हो सकती है, यह सुविधा अन्य रैक प्वाइंट पर नहीं है। यहां 15 हजार मैट्रिक टन का सेपरेट गोडाउन है, जहां रैक से आई सामग्री को रखा जा सकता है। अस्थायी रूप से माल को रखने के लिए 10 हजार मैट्रिक टन का रेलवे गोडाउन और अनाज, सब्जी को रखने के लिए 2500 मैट्रिक टन का कोल्ड स्टोरेज के साथ—साथ कंटेनर लोड करने की भी व्यवस्था है। मतलब यदि यहां रैक आती है तो उसके भण्डारण की भी यही व्यवस्था है। डस्ट सेप्रेशन, ग्रीनरी के साथ—साथ पूरा एरिया पक्का है, मतलब यहां कोई भी हिस्सा कच्चा नहीं है, जिससे जमीन या भूजल प्रभावित हो।
प्रदेश के पहले पीपीपी मॉडल की फेल होने की स्थिति
एक आदर्श रैक प्वाइंट या मोल गोदाम में जो व्यवस्था होनी चाहिए उतनी जगह इटारसी में रेलवे के पास नहीं है। यही सब देखते हुए प्रदेश का पहला पीपीपी मॉडल के तहत इटारसी से 8 किमी दूर पवारखेड़ा के पास केशर मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक बनाया गया। 89 एकड़ में फैले इस लॉजिस्टिक को 800 करोड़ में 2015 में बनाया गया था, जिसका उद्घाटन तात्कालीन केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने किया था। पर अब यह मॉडल फैल होने की स्थिति में आ गया है। वजह से यहां रैक का नहीं आना। अधिकांश रैक को इटारसी माल गोदाम पर ही आती है। बीते साल यहां सिर्फ 200 रैक आई थी, जबकि इसकी क्षमता प्रतिवर्ष 900 रैक से ज्यादा है।