भोपाल के सबसे पुराने राम मंदिर में मनाई राम नवमीं, जय श्री राम के जयकारे गूंजे

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Rahul Garhwal
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भोपाल के सबसे पुराने राम मंदिर में मनाई राम नवमीं, जय श्री राम के जयकारे गूंजे

भोपाल. राजधानी में रामनवमी के मौके पर हमीदिया रोड के गुरबख्श की तलैया राम मंदिर में राम नवमी के अवसर पर विशेष आयोजन हुआ। इस मौके पर मंदिर में हवन-पूजन के साथ राम, लक्ष्मण सहित सीता का विशेष श्रृंगार किया गया। सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा दिखा। हवन-पूजन के बाद श्रद्धालुओं में प्रसाद वितरण किया गया और भंडारे का भी आयोजन किया गया। इस दौरान विश्व हिंदू परिसर के जिला संगठन मंत्री और कार्यकर्ताओं ने रामनवमीं के अवसर पर मंदिर में भगवा राम ध्वज चढ़ाया। यहां हजारों की संख्या में पहुंचे रामभक्तों ने देश में सुख, शांति और मंगल की कामना की। कोरोना के कारण दो साल बाद राम नवमी का उत्सव धूमधाम से मनाया गया।



राम मंदिर का इतिहास



अयोध्या की तरह भोपाल के हमीदिया रोड स्थित राम मंदिर का निर्माण भी जमीन विवाद से जुड़ा रहा है। 300 साल पुराने इस मंदिर में रामनवमी के अवसर पर हिंदू जागृति केंद्र विशेष आयोजन कराता है। इस मंदिर की जमीन वापस पाने को लेकर हिंदू संगठनों ने 70 के दशक में चरणबद्ध आंदोलन और प्रदर्शन किए, तब जाकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो पाया था। ये मंदिर भोपाल का सबसे भव्य और पुराना राम मंदिर है।



जमीन को लेकर हुआ था विवाद



गुरबख्श की तलैया में राम मंदिर की जमीन को लेकर काफी विवाद हुआ था। मंदिर के पास 40 बीघा जमीन थी, जिस पर सिख समाज ने गुरुद्वारा बना दिया था। आधे से ज्यादा हिस्सा गुरुद्वारे के निर्माण में चला गया। 1972 में इस मंदिर के रेनोवेशन के समय जमीन को लेकर काफी विवाद हुआ। सुंदरलाल पटवा की सरकार आने पर यहां की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया गया था। अभी भी मंदिर के सामने की जमीन को लेकर विवाद बना हुआ है। इस पर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है।



पूर्व मुख्यमंत्री के आदेश के बाद बना मंदिर



लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस जमीन को मंदिर को देने को लेकर सार्वजनिक तौर पर घोषणा की थी। इस जमीन के आसपास सैकड़ों लोगों ने अवैध कब्जे कर रखे हैं। पंजाबी और सरदारों के बीच राम मंदिर की जमीन को लेकर आपसी मतभेद उभरे थे। पंजाबी जहां राम मंदिर को जमीन देने के पक्ष में थे, तो वहीं सरदार इसके खिलाफ थे। जिसके बाद मंदिर की जमीन को कब्जे से मुक्त कराने के लिए 1972 में चरणबद्ध आंदोलन और धरना प्रदर्शन किया गया था।


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