आमीन हुसैन, RATLAM. यहां दिवाली के एक दिन पहले (नरक चतुर्दशी को) श्मशान में जलती चिताओं के बीच दिवाली मनाने की अनोखी परंपरा की काफी चर्चा रहती है। बीते 16 साल से ये परंपरा निभाई जा रही है। नरक चतुर्दशी के दिन एक श्मशान में गजब नजारा होता है। एक तरफ जलती चिताएं तो दूसरी तरफ बच्चे, बूढ़े, महिलाएं दीए जलाकर आतिशबाजी करते नजर आते हैं।
श्मशान में पूर्वजों को याद करने पहुंचते हैं लोग
रतलाम के त्रिवेणी मुक्तिधाम में अनोखी दिवाली मनाई जाती है। यहां दीपावली के मौके पर रूप चौदस के दिन इस मुक्तिधाम में महिलाएं और बच्चे दीपावली मनाते हुए नजर आते हैं। प्रेरणा संस्था से जुड़े सैकड़ों लोग यहां दीपदान करने और पूर्वजों को याद करने पहुंचते हैं। यहां लोग दीप जलाते है और रंगोली बनाकर ढोल-बाजे और आतिशबाजी के साथ दीपावली मनाई जाती है।
बच्चे बूढ़े परिवार के साथ श्मशान घाट में मनाते हैं दिवाली
वैसे तो श्मशान घाट में महिलाओं और बच्चों को नहीं लाया जाता, लेकिन नरक चौदस को रतलाम के त्रिवेणी मुक्तिधाम का नजारा जरा अलग होता है। गमजदा माहौल और रोते-बिलखते परिजन के दृश्य के उलट मुक्तिधाम में मुक्तिधाम में लोग उत्साह के साथ महिलाएं और छोटे बच्चे भी दीप जलाकर आतिशबाजी करने आते हैं।
प्रेरणा संस्था के सदस्य गोपाल सोनी का कहना है कि नरक चतुर्दशी यम का दिन है। श्मशान हमारे पूर्वजों का अंतिम स्थल माना जाता है। यहां दीप जलाकर, पटाखे फोड़कर हम उनकी आत्मा शांति के लिए यम देवता को दीप दान करते हैं। पूर्वजों का हम पर आशीर्वाद बना रहे, इसलिए यहां पर दीये जलाते हैं, आतिशबाजी करते हैं और रंगोली डालते हैं। 2006 से सिर्फ 5 लोगों के साथ श्मशान स्थल में दिवाली मनाना शुरू किया था। आज तो इसमें काफी लोग जुड़ चुके हैं। अब तो महिलाएं, बच्चे सभी यहां आते हैं और दिवाली मनाते हैं।
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