rewa. हम आपको एक ऐसे सख्श से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जो आम आदमी की तरह जिंदगी जी आ रहा है। घर परिवार, पेशे की जिम्मेदारी इमानदारी और शिद्दत से निभाने के बावजूद एक सन्यासी की भांति साधक बन गया। कहते हैं कि जब मकसद जग कल्याण हो तो दैवीय कृपा स्वयं आत्मदीप बन जाती है। हम बात कर रहे हैं रीवा शहर के वार्ड 29 के निवासी दीपक तिवारी (Deepak Tiwar) की, जिन्होंने सिद्धि के लिए नौतपा में नंगे बदन अग्नि की लपटों के बीच साधना की। पेशे से वकील दीपक जन कल्याण की खातिर 30 सालों से साधना में लिप्त हैं। पंचाग्नि हठ योग (Panchagni Hatha Yoga) की ऐसी साधना सनातन परंपरा का हिस्सा रही है, जो अब साधु संतों तक ही सीमित है।
जनकल्याण (public welfare) को लेकर वकील दीपक तिवारी पिछले 25 मई नौतपा के प्रथम दिन से लक्ष्मणबाग संस्थान परिसर (Laxmanbagh Institute Campus) में धुनी जमाए बैठे हैं। उनके चारों तरफ आग प्रज्वलित है, जिनसे भयंकर लपटें निकलती हैं। लपलपाती लपटों के बीच दीपक तिवारी (48) दैवीय साधना में लिप्त हैं।
काली, कामाख्या और मुब्रा देवी की है विषेश कृपा
दीपक तिवारी बचपन से ही साधक के रूप में जीवन जी रहे हैं। बताया जाता है कि इसके पहले वे साधना करने कलकत्ता में काली देवी और असम (Assam) में कामाख्या (Kamakhya) को सिद्ध करने के लिए तप कर चुके हैं। यही नहीं सिद्धि की प्राप्ति के लिए दीपक तिवारी दो साल पहले रीवा से पैदल मुंबई में मुब्रा माता तक की यात्रा कर चुके हैं।
देवी की विषेश सिद्धि
नौ दिनों से पंचाग्नि हठ योग साधना में जुटे दीपक तिवारी के छोटे भाई रामप्रकाष तिवारी बताते हैं कि वे बचपन से ही दुर्गा सप्तशती का पाठ और योग साधना में लग गए थे। करीब 3 साल से वे अनवरत साधना कर रहे हैं। पहली बार जब उन्होंने 46-47 डिग्री के तापमान के बीच खुले वातावरण में चारों तरफ अग्नि प्रज्वलित कर साधना कर रहे हैं। बकौल रामप्रकाश तिवारी (Ramprakash Tiwari) उनकी साधना का मकसद जन और विश्व कल्याण है। खास बात यह है कि दीपक तिवारी गृहस्थ जीवन और वकालत के पेशे को साथ-साथ जी रहे हैं। उनका एक बेटा और एक बेटी है। दीपक को मां दुर्गा काली और कामख्या की सिद्धि प्राप्त है।