भोपाल। तारीख 2 जनवरी 2022 साल का दूसरा दिन और इस दिन राजधानी भोपाल (capital Bhopal) में एमपी की सियासत (politics of MP) में एक नया और अलग नजारा देखने को मिल सकता है। 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) के मुद्दे पर ओबीसी महासभा अधिकार (obeesee mahaasabha adhikaar) एवं जन महाआंदोलन (jan mahaaandolan) का आयोजन कर रही है। ओबीसी के इस आंदोलन (agitation) को साथ मिला है भीम आर्मी (bhim army), जयस (Jai Yuva Adivasi Sangathan) और कांशीराम (Kanshi Ram) की आजाद समाज पार्टी (Azad Samaj Party) का। इस आंदोलन में तीनों वर्गों के नेता इकट्ठा होंगे और अपने अधिकारों की मांग को लेकर सीएम हाउस (CM House) का घेराव करेंगे। सोशल मीडिया (social media) पर इस कार्यक्रम का जमकर प्रचार किया जा रहा है। लेकिन जानकारों की माने तो इस आंदोलन के पीछे एक बड़ी सियासी रणनीति है।
OBC महासभा को मिला जयस और भीम आर्मी का साथ : मप्र की राजनीति में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग (SC, ST and OBC classes) का अहम रोल रहता है। एमपी में 52 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग की है। एसटी 21.2 फीसदी और एससी की 16 फीसदी की भागीदारी है। ऐसे में हर चुनाव में ये तीनों वर्ग राजनीतिक दलों के लिए मायने रखते हैं। लेकिन अभी समाज के ये तीनों वर्ग एकजुट नहीं हैं। राजनीतिक दलों के हिसाब से बंटे हुए हैं। ऐसे में इस आंदोलन के मंच पर तीनों वर्गों का एक साथ आना प्रदेश में नए सियासी समीकरणों को जन्म देने वाला है। ओबीसी आरक्षण को लेकर जिस तरीके से बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच रस्साकशी हुई है उससे इन दोनों ही पार्टियों के लेकर ओबीसी वर्ग का मोहभंग हुआ है।
अब एमपी में तीसरी ताकत की बारी : ओबीसी महासभा की इस पंचायत के जरिए जयस जो कि मालवा- निमाड़ क्षेत्र के आदिवासी इलाकों में बड़ी पैठ बना चुका है। हाल ही में पंचायत के चुनाव में जयस ने अपने कई उम्मीदवार भी मैदान में उतारे थे वो भी खुद को एक राजनीतिक संगठन के रूप में तैयार करने में जुटा है। उधर भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण भी एमपी में एससी वर्ग को एकजुट करने की कवायद में जुटे हैं। बता दें कि चंद्रशेखर रावण ने नेमावर हत्याकांड के बाद हुए आंदोलन में जयस का साथ दिया था। नीमच में एक आदिवासी युवक को चोरी करने के आरोप में गाड़ी के पीछे बांधकर घसीटे जाने और बाद में उसकी मौत हो जाने की घटना के बाद भी रावण ने एमपी दौरा किया था। यदि ये तीनों वर्ग मैदान में साथ आते हैं तो राजनीतिक रूप से इन वर्गों की सीटों पर भी काफी असर पड़ेगा।
तीनों वर्गों की साझा पंचायत को लेकर अलर्ट हुई सरकार : एमपी में एसटी वर्ग के लिए विधानसभा की 47 सीटें आरक्षित हैं । इनके अलावा दूसरी 35 सीटें पर भी एसटी वर्ग के वोटर का प्रभाव है। इस तरह से विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 82 सीटें एसटी वर्ग के प्रभाव वाली है। एससी वर्ग की बात करें तो विधानसभा की 35 सीटें इसके लिए आरक्षित हैं। इनके अलावा अन्य 25 सीटों पर भी इसी वर्ग का प्रभाव है। वहीं ओबीसी वर्ग का 120 सीटों पर प्रभाव है। यानी पूरी 230 सीटों की बात की जाए तो हर सीट पर कहीं ना कहीं तीनों वर्ग असर डालते हैं। शायद इसलिए इन तीनों वर्गों की महापंचायत को लेकर सरकार अलर्ट है और इसके आंदोलन के लिए पुलिस- प्रशासन ने अनुमति देने से इंकार कर दिया है। प्रदेश में ये भी अफवाह फैलाई गई कि आयोजन रद्द हो गया है। लेकिन इन तीनों वर्गों के नेताओं ने साफ कहा है कि आंदोलन रद्द नहीं हुआ है।
आंदोलन से कांग्रेस उत्साहित, बीजेपी 27 फीसदी आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध : इस आंदोलन को लेकर कांग्रेस जरूर उत्साहित है। उसके नेताओं को लगता है कि तीनों वर्ग आपस में एकजुट होंगे तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है। इसलिए सरकार की तरफ से अनुमति ना दिए जाने पर राज्यसभा सांसद विवेक तनखा ने भी ट्वीट किया और कमलनाथ ने भी। दोनों नेताओं ने सरकार के कदम को अनुचित और दमनकारी ठहराया है। वहीं बीजेपी सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि बीजेपी 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। उसकी सरकार का हर मंत्री और नेता इसी बात को दोहरा रहे हैं।
एमपी की सियासत पर पड़ेगा असर : दोनों राजनीतिक दल सभी वर्गों को साधने की कवायद में जुटे हैं। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस से इतर तीनों वर्ग आपस में एकजुट होते हैं और कोई तीसरा दल बनता है तो फिर राजनीतिक (political) समीकरण कुछ और होंगे। मप्र में 2023 के आखिर में चुनाव है और चुनाव से डेढ़ साल पहले ये समीकरण संकेत दे रहे हैं कि एमपी की सियासत में आने वाले दिनों में बहुत कुछ उठापटक देखने को मिल सकती है।