जबलपुर/नई दिल्ली. मध्य प्रदेश कॉन्स्टेबल भर्ती में पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च को आदेश दिया कि कैंडिडेट आरक्षित वर्ग (रिजर्व कैटगरी) की मेरिट मे टॉपर हैं, उन्हें वरीयता के उच्च क्रम मे पदस्थापना दी जाए।
ये है मामला: मध्य प्रदेश के पुलिस विभाग ने 2017-18 में कॉन्स्टेबल के 14 हजार 88 पदों पर भर्तियां की थीं। इनमें आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान कैंडिडेट्स को अनारक्षित में स्थान देते हुए प्रदेश की कई बटालियनों में नियुक्ति दी गई, जबकि उन्हें प्रथम वरीयता (फर्स्ट प्रायोरिटी) के आधार पर जिला पुलिस बल या विशेष पुलिस बल मे पदस्थापना मिलनी थी।
पहले हाईकोर्ट में याचिका लगाई: कई कैंडिडेट्स ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं, जिसमें वरीयता क्रम में पोस्टिंग ना करने को चुनौती दी गई थी। याचिकाओं पर हाईकोर्ट बेंच में तत्कालीन चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला ने 20 अप्रैल 2018 ने सुनवाई की थी। इसमें याचिकाओं को निरस्त कर दिया गया और विभाग द्वारा की गई नियुक्तियों को मान्य ठहराया गया।
फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा: एक कैंडिडेट प्रवीण कुमार कुर्मी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने सुनवाई की। 22 फरवरी 2022 को बेंच ने जबलपुर हाईकोर्ट के 2018 के फैसले को कानून के उलट बताया। कोर्ट ने इंद्रा शहनी vs भारत संघ (1992) समेत कई मामलों का जिक्र किया। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि जो अभ्यर्थी आरक्षित वर्ग की मेरिट मे टॉप पर हैं, उन्हें वरीयता के उच्च क्रम मे पदस्थापना दी जाए !
क्या बोले वकील: आरक्षण के मामले में मप्र शासन के विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एमपीपीएससी द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में भी हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया था। इसमें आरक्षित वर्ग की 91 महिलाओं को हॉरिजॉन्टल आरक्षण की विसंगति को स्पष्ट करते हुए अनारक्षित वर्ग में चयन करने के निर्देश दिए गए थे। ठीक इसी तरह कॉन्स्टेबल्स की भर्ती में भी सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के निर्णयों का हवाला देकर शासन को स्पष्ट निर्देश दिए हैं। आरक्षण से संबंधित नियमो को लेटर-इन-स्प्रिट लागू नहीं करना आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 6 के तहत आपराधिक कृत्य है।