SIDHI. तीसरे चरण के मतदान (third phase polling) के बाद हुई गणना से जिला पंचायत (Zila Panchayat) पहुंचने वाले सदस्यों की तस्वीर साफ हो गई है। पुराने चेहरों में बघोर वार्ड (Baghor Ward) से जीते अकेले श्रीमान सिंह (shreemaan sinh) ही जिला पंचायत में दिखेंगे। दूसरे सदस्य या तो चुनाव हार गए हैं या फिर किन्ही कारणों से लड़े ही नहीं। इस बार अधिकांश नए चेहरे चुनाव जीते हैं । पुराने सदस्यों में जिन्होंने खुद चुनाव नहीं लड़ा उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन वे नहीं जीत सके।
चौथी बार जिला पंचायत सदस्य बने श्रीमान
पूर्व मंत्री स्व. इंद्रजीत कुमार (Inderjit Kumar) के पुत्र श्रीमान चौथी बार जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए हैं। पिछली दफा वे जनपद सदस्य चुने गए थे फिर सिहावल के अध्यक्ष बने थे। इसके पहले जिला पंचायत सदस्य चुने गए थे। जिला पंचायत पहुंचने वाले सदस्यों में देखा जाए तो तजुर्वेदार अकेले श्रीमान ही रहेंगे। इसका कारण यह है कि दूसरे सदस्य पहली दफा चुनकर पहुंच रहे हैं। इसमें से एकाध को जनपद का अनुभव है। लेकिन अधिकांश तो पहली बार चुनाव ही जीते हैं। बता दें कि इस चुनाव में पिछले जिला पंचायत के सदस्य रहे मनोज भारती, श्रीमती शशिप्रभा तिवारी चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए। इसी तरह जिला पंचायत उपाध्यक्ष राजमणि साहू और पूर्व सदस्य प्रेमशीला सिंह ने अपनी-अपनी पुत्रवधु को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन वह जीत नहीं सकीं।
कौन बनेगा अध्यक्ष पता नहीं
तीसरे चरण के मतदान और गणना के बाद जिला पंचायत की स्थिति साफ जरूर हो गई है लेकिन किस पार्टी का अध्यक्ष बनेगा कहा नहीं जा सकता। पहले और दूसरे चरण की गणना में कांग्रेस के सदस्य संख्या ज्यादा थे। पर दूसरे और तीसरे चरण के घोषित परिणाम ने बीजेपी को बराबरी पर ला दिया है। खैर, पिछले चुनावों को देखा जाए तो दलीय संख्या ज्यादा होने के बाद भी बीजेपी और कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बन पाए थे। पिछली दफा निर्दलीय अभ्युदय सिंह अध्यक्ष चुने गए तो 2010 में गोंगपा की रीती पाठक अध्यक्ष बनी, जबकि गोंगपा के अन्य सदस्य नहीं थे। कुल मिलाकर पार्टियों के सदस्य संख्या गिनने को भले हों पर अध्यक्ष वही बनता है जो जुगाड़, तिकड़म से बाजी मार ले।
अध्यक्ष बने और फिर बीजेपी के हो गए
जिला पंचायत में इसके पहले तक कांग्रेस का ही दबदबा रहा है लेकिन जैसे ही सत्ता बदली बीजेपी के अध्यक्ष कुर्सी सभालने लगे। पिछले दो पंचवर्षीय से चुनाव के समय बीजेपी अपना अध्यक्ष तो नहीं जिता पाई पर जीतने के दो, चार साल बाद चुने गए अध्यक्षों को अपना जरूर बना लिया । इस चुनाव में चाहे जो हो पर पिछ्ला इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है।