किसी भी आर्गेनाइजेशन के लिए बेहद जरूरी होती है गाइडलाइन.. आप सूत्रधार रात साढ़े आठ बजे देखते हैं तो द सूत्र ने ये गाइडलाइन बनाई है कि अपने दर्शकों तक इस समय तक पहुंचना है.. गाइडलाइन सहूलियत के हिसाब से नहीं टूटती.. गाइडलाइन है तो है... लेकिन राजनीतिक दलों के साथ अमूमन ऐसा होता नहीं है.. राजनीतिक दल अपनी सहूलियत के हिसाब से गाइडलाइन बदलते हैं.. गाइडलाइन तोड़ने की कई सारी दलीलें दे देते हैं.. लेकिन बीजेपी इस मामले में अलग है या यूं कहें कि बीजेपी इसबार नगर निगम चुनाव में गाइडलाइन पर अडिग रही लेकिन कांग्रेस में ऐसा नजर नहीं आया.. कांग्रेस अपनी गाइडलाइन को तोड़ती गई.. क्या बीजेपी को गाइडलाइन फॉलो करना भारी पड़ने वाला है या फिर बीजेपी उस रास्ते पर हैं कि बड़ी जंग जीतने के लिए दो कदम पीछे हटना भी पड़े तो हटना चाहिए..