/sootr/media/post_banners/e629dc3718a7acd35c4e0af974520b613d91b6eed7b70723c94a0754297d925c.jpeg)
Indore, सोचा तो यही था कि इंदौर आकर खूब काम करूंगा, थोड़ा पैसा इकट्ठा करके गांव की सेवा करूंगा। सरपंच बनूंगा। तभी जिंदगी में ऐसी दुर्घटना हुई कि लगा जो सोचा था वो तो होगा ही नहीं बल्कि जो कभी नहीं सोचा था वो हो गया। गांव से दो पैरों पर चलकर आए थे, लौटे तो आधा पैर शरीर से जुदा हो चुका था। हालांकि वो सपना जुदा नहीं हुआ था, जो दिल में दबा बैठा था..। और...वो अभी-अभी पूरा भी हो गया। हालांकि माध्यम पत्नी बनीं।
अपाहिज सपना पूरा हुआ
ये कहानी है संजय लाल वर्मा की। सीधी जिले के खैरा गांव के रहने वाले संजय चार तीन महीने पहले तक इंदौर में थे। निजी कंपनी में जेसीबी चलाते थे। ऐसे ही अप्रैल के शुरुआती दिनों की बात है, सुबह-सुबह उन्हें फरमान मिला, इंदौर की ग्रेटर ब्रजेश्वरी कॉलोनी में एक बिल्डिंग का अवैध निर्माण गिराने का। मौके पर पहुंचे तब तक पता नहीं था जिंदगी क्या रूप दिखाने वाली है। काम करते हुए बिल्डिंग की पूरी मंजिल ही जेसीबी पार आ गिरी। ड्राइविंग सीट पर बैठे संजय आधे मलबे के नीचे और आधे बाहर थे। गंभीर घायल हालत में बांबे हॉस्पिटल पहुंचे तो पता चला अब दो पैरों पर नहीं चल पाएंगे। एक पैर आधा काटा जाएगा और दूसरे के हिस्से में कुछ स्क्रू लगाना पड़ेंगे। हॉस्पिटल के पलंग पर आधा पैर लिए बैठे संजय ने तब द सूत्र से कहा था-भैया, गांव जाकर सेवा करने का सपना था। सरपंच बनता, गांव के लिए कुछ करता। यहां पैसा इकट्ठा कर रहा था, कुछ गांव भेजता था, ताकि गांव वालों के कुछ काम आ सके। अब लगता है, बिस्तर पर पड़े-पड़े ही सपना देखते रहूंगा। शरीर के साथ सपना भी अपाहिज हो गया।
बदली जिंदगी की कहानी
करीब एक महीने की जद्दोजहद और इलाज के बाद संजय गांव पहुंच गए। उसी सपने के साथ। पंचायत चुनावों की घोषणा हुई तो खैरा गांव की सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई। पहले तो लगा कुदरत ने शायद ये दूसरा मजाक किया है, सीट ही महिला कर दी। गांव वालों को अपनी मन की बात बताई तो तय हुआ आप नहीं तो पत्नी को चुनाव लड़वाएं। मान-मनुव्वल के बाद आखिर संजय की पत्नी ने मैदान पकड़ा। नतीजा आया तो पूरे गांव में संजय के लिए रंग-गुलाल उड़ने लगे। 1600 वोटों की पंचायत में 1450 वोट पड़े उसमें से करीब पचास प्रतिशत ( 750 वोट) तो उनकी पत्नी को ही मिल गए। बाकी वोट सात अन्य उम्मीदवारों में बंट गए। न बीजेपी, न कांग्रेस। संजय गांव वालों के उम्मीदवार थे और उनका सपना गांव वालों का सपना था। अब वे तैयार हैं। डेढ़ पैर से ही उड़ान भरने के लिए। गांव वालों का हौंसला जो साथ है।