मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिग्विजय सिंह की पक्की दोस्ती का राजफाश

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिग्विजय सिंह की पक्की दोस्ती का राजफाश

हरीश दिवेकर, भोपाल. आज यानी 9 मार्च के न्यूज स्ट्राईक में हम आपको बताएंगे पर्दे के पीछे की वो खबर, जो सियासी गलियारों से दूर कही छिपी है। आज हम बात करेंगे मध्यप्रदेश के ऐसे दो नेताओं की, जो राजनितिक तौर पर तो धुर-विरोधी हैं लेकिन असल में एक दूसरे के शुभचिंतक हैं। ये नेता मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं।



 आपको एक किस्सा तो याद ही होगा, जब सीएम शिवराज सिंह चौहान से मिलने के लिए पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह सीएम हाउस के बाहर धरने तक पर बैठ गए थे। करीब डेढ महीने से दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह से मिलने के लिए वक्त मांग रहे थे लेकिन शिवराज सिंह ने व्यस्थता के चलते मिलने का समय नहीं दिया। 



अंदरखानों के सूत्रों की माने तो कुछ दिनों पहले सीएम और पूर्व सीएम की गुप्त मुलाकात भोपाल में हुई थी। ये मुलाकात बंद कमरे में हुई। मुलाकात न तो सौजन्य भेंट थी और न ही राजनीतिक। लेकिन शिवराज सिंह चौहान जो पर्दे के आगे दिग्विजय सिंह से मिलने के लिए वक्त नहीं दे रहे थे तो आखिर पर्दे के पीछे इस मुलाकात के क्या मायनें थे।



इसके पीछे छिपी है पूरी कहानी: कहानी की पटकथा शुरू होती है, दिग्विजय सिंह से, तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर क्या था, पूरा माजरा। पन्ना में दिग्विजय सिंह ने प्रदर्शन किया। अवैध खनन के आरोप बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष  वीडी शर्मा और खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह पर लगाए।



मामला यहीं नहीं रुका: दिग्विजय सिंह, वीडी शर्मा और बृजेंद्र सिंह के पीछे हाथ धो कर पड़ गए। राजनीतिक पंडितों का तो ये तक कहना है कि वीडी शर्मा के बढ़ते कद को रोकने के लिए बीजेपी के अंदरखाने से ही दिग्विजय सिंह को हथियार बनाया गया। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि बीजेपी हाईकमान तक जा पहुंचा। आनन-फानन में ऊपर से फरमान आया कि दिग्विजय सिंह को घेरा जाए, इसके बाद स्मार्ट सिटी की समीक्षा बैठक में कांग्रेस सरकार के घोटालों की जांच करने का ऐलान भी हो गया।

इस दौरान आरोप प्रत्यारोप का दौर भी चला। ये लड़ाई अब यहां तक आ पहुंची कि वीडी शर्मा ने दिग्विजय सिंह पर पलटवार करते हुए यह तक कह दिया कि उनके जीन में ही खराबी है।



ऐसे में सत्ता में कबिज बीजेपी और प्रदेश में बीजेपी के मुखिया वीडी शर्मा ने दिग्विजय सिंह को घेरने की कूटनीति पर काम शुरु कर दिया। लेकिन इस बार सीधा वार दिग्विजय सिंह पर नहीं किया गया। वार किया गया, उनके बेटे जयवर्धन सिंह पर और हथियार बनाया गया स्मार्ट सिटी घोटाले को। 



शिवराज सरकार ने 15 महीने की कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में हुए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के टेंडर की फायलें खंगालनी शुरु कर दीं। आपको बताना यहां जरूरी होगा कि 15 महीने की कांग्रेस सरकार में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह नगरीय प्रशासन मंत्री थे। 



और इन्हीं के कार्यकाल में ये टेंडर दिए गए। बीजेपी ने आरोप लगाए कि अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए कोरोड़ों रूपए के टेंडर निकाले गए और फायदा पहुंचाया गया। मामले में जयवर्धन को घेरने के लिए शिवराज सरकार ने कैबिनेट की बैठक में इसके जांच के आदेश भी दे दिए।



बेटे जयवर्धन को घिरता देख दिग्विजय सिंह के तेवर भी कुछ ठंडे पड़े: मामले में एक जांच कमेटी प्रस्तावित की गई। नगरीय  प्रशासन के प्रमुख सचिव मनीष सिंह ने कमेटी बनाकर चीफ सेक्रेटरी इकबाल सिंह को भेजी।  इस कमेटी में सीएम सचिवालय में पदस्थ छवि भारद्वाज और नगरीय प्रशासन के विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी तरुण राठी का नाम प्रस्तावित किया गया लेकिन इस कमेटी का आगे क्या हुआ ये बड़ा सवाल है, स्मार्ट सिटी घोटाले की जांच भी ठंडे बस्ते में चली गई। 



कहते हैं हमाम में सब नंगे, कुछ ऐसा ही दिख रहा है, इस मामले में। दिग्विजय सिंह ने अवैध उत्खनन मामले में वीडी शर्मा के खिलाफ बोलना बंद कर दिया। सरकार ने दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन के कार्यकाल के दौरान हुए स्मार्ट सिटी घोटाले की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दी। सूत्र कहते हैं कि इसकी पटकथा भोपाल में लिखी गई, जो सीएम और पूर्व सीएम की उस गोपनीय बैठक में बनी थी। अब यह राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। अब दोनों एक दूसरे के राजदार है। इसलिए इन हालातों पर असरार-उल-हक मजाज साहब का एक शेर मौजूं है-

दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को ।

और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं ।।


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