शाजापुर: जमीन पाने की जंग, खुद की जमीन के लिए किसान की सिस्टम से लड़ाई

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Shivasheesh Tiwari
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शाजापुर: जमीन पाने की जंग, खुद की जमीन के लिए किसान की सिस्टम से लड़ाई

आफताब अहमद, Shajapur. सरकारी सिस्टम में कागज के टुकड़े की बहुत अहमियत होती है। अक्सर सरकारी दफ्तरों में जब आम आदमी अपनी परेशानी लेकर जाता है तो उससे बाबू, कर्मचारी पूछते हैं कागज है। सरकारी सील ठप्पो वाला ये कागज आपके पास है तो माना जाता है कि आपका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। लेकिन आज सीएम हेल्पलाइन में आपको एक ऐसे किसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके पास उसकी जमीन का सरकारी कागज का टुकड़ा है, बावजूद उसकी जमीन उसकी नहीं है। वो जमीन के लिए संघर्ष कर रहा है। कौन है ये शख्स और आखिरकार क्यों वो जमीन पाने के लिए जंग लड़ रहा है। 



गांव के कुछ दबंगों ने जमीन पर कब्जा किया



इस आदमी का नाम है घासीराम, शाजापुर जिले के पोलाय कला तहसील की मोरटा केवड़ी गांव का रहने वाला है। घासीराम जिस जमीन पर काम कर रहा है दरअसल ये सरकारी दस्तावेजों में ये जमीन उसकी है और नहीं भी। भला आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है। दरअसल घासीराम के परिवार को ये सरकारी पट्टा मिला था। दादा के निधन के बाद पट्टा वारिसों के नाम सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हो गया। घासीराम के पास पट्टे का कागज मौजूद है। सरकारी पट्टा सात बीघा का है। जिस पर घासीराम खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। एक बेटा है, जो नौकरी करता है। जिंदगी सामान्य थी लेकिन एक दिन अचानक गांव के कुछ दबंगो ने जिनके नाम अशोक, कमल चंदू बता जा रहे हैं। घासीराम की जमीन पर पहुंचे और सात में करीब 5 बीघा कब्जा जमा लिया ये कहते हुए कि वो जमीन उन्हें बेच चुका है।  



सीएम हेल्पलाइन में अधिकारियों ने झूठा जवाब दिया



घासीराम को तो कुछ समझ नहीं आया कि आखिरकार उसने कब और कैसे जमीन बेच दी। जबकि सारे दस्तावेज तो उसके पास है। घासीराम ने थाने से लेकर तहसीलदार और पटवारी तक शिकायत की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। आखिरकार सीएम हेल्पलाइन में शिकायत की गई। लेकिन आरोप है कि सीएम हेल्पलाइन में अधिकारियों ने जो जवाब पेश किया वो झूठा जवाब दिया कि दस हजार प्रति बीघा में घासीराम ने जमीन दूसरी पार्टी को बेच दी है। लेकिन सरकारी जमीन का पट्टा तो बेचा ही नहीं जा सकता। घासीराम और उसके परिवार को पूरा यकीन है कि अधिकारियों की इस पूरे मामले में मिलीभगत है। 



अब बताइए कि सरकारी जमीन है जिसके पट्टे का कागज घासीराम के पास है। सरकारी रिकॉर्ड में घासीराम का नाम दर्ज है, तो फिर कैसे जमीन सामने वाले की हो गई। सीएम हेल्पलाइन की टीम ने इस मामले में पटवारी सारिका श्रीवास्तव और तहसीलदार से बात की। पटवारी का कहना है कि रिकॉर्ड में उनके परिवार का नाम लिखा है। दादा के निधन के बाद उनके वारिसों का नाम आ गया। कागजी कार्रवाई कर दी गई है। कागज तहसीदार के पास पहुंच गए हैं। वहीं, तहसीलदार का कहना है कि एक-डेढ़ महीना में सारी कार्रवाई हो जाएगी।



अधिकारी इस तरह करते हैं जमीन का खेल



यहां पर सवाल उठता है कि जब पट्टा घासीराम के नाम पर है तो बटांकन और सीमांकन की बात कहां से आ गई। तहसीलदार साहब को भू राजस्व संहिता 1959 के नियम पढ़ना चाहिए। दरअसल बटांकन निजी जमीन का होता है और इसी की आड़ में अधिकारी जमीनों का खेल करते हैं। मान लीजिए किसी सरकारी जमीन के पास किसी की प्राइवेट जमीन है तो वो बटांकन के लिए आवेदन देता है और इसी दौरान अधिकारी सरकारी जमीन का कुछ हिस्सा प्राइवेट जमीन में मिला देते है और इस तरह से जमीन का खेल कर दिया जाता है।  घासीदास की जो जमीन है उससे लगी हुई जमीन दबंगों की है। ऐसे में इसी आधार पर ये खेल खेला जा रहा है इस संभावना से इंकार नहीं है।



घासीराम की आवाज द सूत्र उठाएगा



अधिकारियों के बयान से ही साफ समझ आ रहा है कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। अब घासीराम के सामने मुश्किल ये है कि जिस सिस्टम से वो इंसाफ की गुहार लगा रहा है सिस्टम में बैठे ही अधिकारी यदि गलत का साथ देने लगे तो फिर इंसाफ कहां से मिलेगा। अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। घासीराम की सुनवाई सरकारी की सीएम हेल्पलाइन नहीं कर रही लेकिन द सूत्र की कॉमन मैन हेल्पलाइन ने घासीराम के साथ हुए वाकये की पूरी कहानी आपको बताई है और जबतक घासीराम की परेशानी दूर नहीं होती, तब तक सीएम हेल्पलाइन उसकी आवाज उठाता रहेगा। यदि आप भी सिस्टम से परेशान है और कोई सुनवाई नहीं हो रही तो आप द सूत्र की सीएम हेल्पलाइन यानी कॉमन मैन हेल्पलाइन पर शिकायत कर सकते हैं। हमारा वाट्सऐप नंबर है 7000024141.. official@thesootr.com पर भी आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।  

 


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