Bhopal. शकील बदायूंनी 3 अगस्त 1916 में यूपी में बदायूं में पैदा हुए थे। बदायूं एक ऐतिहासिक और महाभारतकालीन शहर है। पांचाल जनपद वर्तमान बरेली, बदायूं, फर्रुखाबाद में था। बदायूं में कई हस्तियां पैदा हुईं। निजामुद्दीन औलिया, इस्मत चुगताई भी यहां पैदा हुईं। फानी बदायूंनी और बेखुद बदायूंनी का भी बदायूं से नाता रहा।
1940 में उनकी शादी हो गई
शकील साहब की कहानी इसलिए सुना रहा हूं कि 20 अप्रैल को उनका निधन हुआ था। हिंदी फिल्मों 50-60 के दशक में तब बड़े लोग, राइटर्स अपने नाम में शहर के नाम का तखल्लुस यानी लास्ट नेम जोड़ा करते थे। शकील, साहिर, हसरत सबके नाम में शहर का नाम मिलता है। शकील का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 3 अगस्त 1916 को हुआ था। पिता का नाम मोहम्मद जमाल अहमद था। शकील के पिता उनकी बेहतरीन शिक्षा चाहते थे तो घर में ही हिंदी, अरबी, फारसी, उर्दू पढ़ाने वाले का इंतजाम कर दिया। बदायूं में भी शेरो-शायरी का माहौल था तो शकील पर ये असर दिखाने लगा। 1936 में शकील अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गए और 1940 में उनकी शादी हो गई। बीए करने के बाद शकील की दिल्ली में नौकरी लग गई, लेकिन यहां वे मुशायरों में जाने लगे थे।
ऐसे मिला फिल्मों में मौका
अब लिखने, सुनाने का जो टैलेंट शकील के अंदर कुलांचें भर रहा था, उसे तो मुंबई जाकर ही मानना था। 1944 में शकील मुंबई आ जाते हैं। यहां उनकी मुलाकात प्रोड्यूसर एआर कारदार और म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद साहब से होती है। नौशाद साहब ने शकील से कुछ लिखने को कहा तो उन्होंने चंद लाइनें लिख भी दीं। नौशाद ने कारदार से कहा कि लड़के में दम है, इससे अपनी फिल्म दर्द के लिए लिखवाते हैं। शकील ने जादू बिखेरा और दर्द के गाने सुपरहिट हो गए। दर्द हिट होने के बाद नौशाद और शकील की जोड़ी बन गई। दोनों ने बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुगले आजम, दुलारी, गंगा-जमुना जैसी कई हिट फिल्मों में साथ काम किया।
चौदहवीं का चांद की दो कहानियां भी हैं। पिक्चर का पहला गाना रिकॉर्ड किया जाना था। गुरु दत्त बैचैन थे और उनसे भी ज़्यादा बैचेन थे स्टूडियो के कोने में कुर्सी पर बैठे हुए शकील बदायूंनी। फिल्म में म्यूजिक दे रहे थे रविशंकर शर्मा उर्फ़ ‘रवि’। रवि दोनों की बैचैनी को बड़ी अच्छी तरह से समझ रहे थे। दरअसल, गुरुदत्त की ‘कागज के फूल’ फ्लॉप हो चुकी थी। गुरुदत्त और सचिन देव बर्मन दा की जोड़ी टूट चुकी थी। वहीं, शकील भी पहली बार नौशाद के प्रभाव से बाहर निकलकर किसी नए संगीतकार से जुड़े थे।
-शकील ने कहा- ‘भाई रवि, सब ठीक तो रहेगा ना?’
-रवि- ‘फ़िक्र न करो, बस तुम धीरज रखो।’
-गुरुदत्त ने इन दोनों की बातचीत को सुना तो घबराकर कहा- ‘अरे शोंगीत जोदि भालो न होए, तो सिनेमा फ्लॉप कोरे जाबे। शोकील, तुमी बदायूं चोले जाओ। रोबी, तुमी दिल्ली चोले जाओ..ऑर, आमि डूबे मोरी।’
-रवि ने हंसकर कहा- ‘दादा, शोब भालो होबे, तुमी चिंता कोरो ना।’
ऐसे मिला पहला फिल्म फेयर
पिक्चर हिट हो जाती है, रवि को बेस्ट म्यूजिक कंपोजर का अवार्ड मिलता है और शकील के हिस्से में पहली कामयाबी आती है। शकील कई गानों में कमाल कर चुके थे, पर पहला फिल्म फेयर मिला 1961 में। गाना था- चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो...। शकील ने कितनी साफगोई से एक लाइन में बात रख दी है। 62 साल पहले लिखा गाना आज भी मौजूं है। आज भी असली इश्क करने वाले, भले ही थोड़े कम होंगे, लेकिन इस गाने से अपनी भावनाएं जाहिर करते मिल जाएंगे। इसके बाद लगातार दो साल 1962 में फिल्म घराना और 1963 में बीस साल बाद के लिए भी शकील को बेस्ट लिरिस्ट का फिल्म फेयर मिलता है।
शायर नातिक हुए थे शकील पर गुस्सा
एक बार ग्वालियर में मुशायरा था। कई दिग्गज शायर वहां पहुंचे थे। शकील भी गए। वहां कई शेर कहे। मुशायरे में नागपुर से मिर्जा दाग के शागिर्द हजरत नातिक गु़लाम भी गए थे। शकील ने नातिक गु़लाम का भी एक शेर पढ़ दिया। नातिक भड़क गए। कहा कि तुम्हारे वालिद और चचा दोनों शायर हैं और फिल्म लाइन में जाते ही तुम शायरी के नियम भूल गए। शकील ने कहा- आप गलती बता दीजिए, मैं दुरुस्त कर लूंगा। नातिक बोले- क्या खाक़ दुरुस्त कर लोगे। वो गाना तो रिकॉर्ड हो चुका और मैंने रेडियो पर सुन भी लिया।
शकील ने नातिक से उस गाने के बारे में पूछा तो नातिक ने कहा कि मियां तुमने चौदहवीं का चांद गाने में गलत लिखा है। पहली लाइन में तुमने एक शब्द कम लिखा है। शायरी के मीटर के हिसाब से ये गलत है। नातिक ने बताया- तुमने लिखा, चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम, लाजवाब हो। होना ये चाहिए था- चौदहवीं का चांद हो या तुम आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो। शकील उन्हें बताना चाहते थे कि संगीतकार, धुन में बैठाने के लिए गाने के शब्दों के घटा-बढ़ा देते हैं। लेकिन उन्हें सफाई में कुछ कहा नहीं। और इसलिए नहीं कहा कि नातिक का फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था। नातिक साहब ये समझ नहीं पाते।
शकील ने जब भजन लिखा
इसी तरह 1952 में रिलीज हुई बैजू बावरा का मन तड़पत हरि दर्शन को आज गाना अपने आप में कुछ खास है। इसे भजन ही कह लीजिए। आला दर्जे का गाना है। आप लोग सुनिएगा। इस गाने को लिखने वाले, गाने वाले और संगीत देने वाले तीनों मुस्लिम हैं। लिखा है शकील ने, गाया है मोहम्मद रफी साहब ने और संगीत दिया है नौशाद साहब ने। गाना हिट हुआ। बैजू बावरा के सभी गाने हिट थे। तो उस वक्त किसी ने रफी साहब को बेहतरीन गाने के लिए बधाई दी। रफी साहब ने बेहद सरल अंदाज में कहा- गाने के बोल बहुत अच्छे थे, राग मालकौंस है। इसे मेरी जगह कोई भी गाता तो गाना इतना ही अच्छा होता।