Ujjain. सिंहस्थ 2028 से पहले एक बार फिर से शिप्रा को खान के गंदे पानी से बचाने की मुहिम शुरु हो गई है। इसके लिए अफसरों ने 626.26 करोड़ के क्लोज डक्ट की डीपीआर तैयार कर भोपाल को भेजी है। हैरत यह कि इससे पहले भी जिम्मेदार अधिकारी शिप्रा को स्वच्छ व प्रवाहमान बनाने के नाम पर 21 साल में 650 करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा है।
क्लोज डक्ट की डीपीआर जल संसाधन विभाग ने तैयार की है। विभाग दावा कर रहा है कि इस प्रोजेक्ट पर काम होता है तो शिप्रा को खान के गंदे पानी से बचाया जा सकेगा। प्रोजेक्ट के तहत खान के गंदे पानी को गोठड़ा से शिप्रा में मिलने से रोकते हुए आरसीसी के पॉकेटनुमा पक्के बाक्स से डायवर्ट किया जाएगा। बाक्स का दूसरा सिरा कालियादेह पर रहेगा। जहां गंदा पानी बाहर निकलेगा।
बीच में पड़ने वाले शिप्रा के त्रिवेणी, सिद्धवट, रामघाट, मंगलनाथ सहित प्रमुख घाट गंदे पानी से बच सकेंगे। इससे पहले अफसरों ने 465 करोड़ से ओपन नहर का प्रस्ताव शासन को भेजा था। अब उसे रिवाइज करके क्लोज डक्ट डीपीआर तैयार की गई है।
यह आरसीसी का एक लंबा-चौड़ा पॉकेटनुमा बाक्स (बड़ा नाला) रहेगा। जो शिप्रा के पैरेलल त्रिवेणी के पास गोठड़ा से शुरू होकर कालियादेह महल तक 16.700 किमी लंबा बनेगा। शुरू में व आखिरी में 100-100 मीटर में यह डक्ट ओपन रहेगा। बाकी का हिस्सा पैक रहेगा। सफाई-मेंटेनेस के लिए बीच में चार जगह रास्ते रहेंगे। 7 से 8 हेक्टेयर जमीन स्थायी अधिग्रहित की जाएगी। बाकी अस्थायी रूप से अधिग्रहित करेंगे जिसको निर्माण के बाद पैक करेंगे। जमीन मुआवजे का प्रावधान भी डीपीआर में है।
डीपीआर में गोठड़ा में पक्का स्टापडेम बनाया जाना भी शामिल है। क्लोज डक्ट की डीपीआर जल संसाधन विभाग के भोपाल के मुख्यालय भेजी है। जहां विशेषज्ञ इसकी जांच कर रहे हैं। शासन से इस वर्ष स्वीकृत होती है तो काम जल्द शुरू होगा। 21 साल में शिप्रा को स्वच्छ रखने व प्रवाहमान बनाने के लिए किन-किन प्रोजेक्ट पर काम किया और उसके क्या नतीजे रहे
राघौ पिपलिया पर करोड़ों खर्च कर स्टॉपडेम बनाया। यह पूरी तरह से सफल नहीं हुआ। ओवर फ्लो होकर गंदा पानी आगे बढ़ता है। 2004 में 6 करोड़ की नदी संरक्षण योजना के तहत शहर के सभी बड़े नालों को पाइप लाइन व पंपिंग स्टेशनों से जोड़कर गंदे पानी को सदावल ट्रीटमेंट प्लांट पर छोड़ा जाने लगा। नगर निगम पर सालाना एक करोड़ बिजली खर्च आने लगा। बार-बार पंपिंग बंद होने से गंदा पानी शिप्रा में मिलता रहा है। 4 करोड़ से हरसिद्धि से लाइन डाली। जो रुद्रसागर में एकत्रित गंदे पानी को रामघाट पर मिलने से रोक कर नदी में आगे लेकर छोड़ती है।
2016 में राघौ पिपलिया से लेकर कालियादेह तक खान डायवर्शन के रूप में भूमिगत पाइप लाइन बिछाई गई। इसमें 80 करोड़ से अधिक खर्च हुए। बावजूद लाइन खान के गंदे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने में सफल नहीं रही। 500 करोड़ से अधिक लागत की नर्मदा-शिप्रा लिंक और उज्जैनी टू उज्जैन योजना लागू की। इससे समय-समय पर नर्मदा का पानी लिया जाता है, लेकिन प्रवाहमान की स्थिति बनना मुश्किल रहती है। इस तरह 21 साल में शिप्रा को स्वच्छ रखने व प्रवाहमान के नाम पर जिम्मेदारों ने करीब 650 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। बावजूद न तो शिप्रा स्वच्छ हो पाई न ही प्रवाहमान। प्रदूषण बोर्ड की स्टडी आती रहती है कि शिप्रा का पानी आचमन तो दूर, नहाने लायक भी नहीं।