BHOPAL. एमपी में मेयर के प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के फैसले से बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। 16 सीटों पर काबिज रही बीजेपी के पाले से इस बार 7 नगर निगम खिसक गए हैं। वहीं दो निगम तो जैसे—तैसे ही बीजेपी जीती है। बड़े शहरों में डायरेक्ट चुनाव कराना बीजेपी को बड़ा भारी पड़ा है। हालांकि अगर बीजेपी यह चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली या इनडायरेक्ट कराती तो नतीजे बिल्कुल अलग होते। इससे बीजेपी 16 में से 14 निगमों में अपना मेयर बैठा सकती थी, क्योंकि बीजेपी को 14 सीटों पर साफतौर पर मेजोरिटी हासिल हुई है। ये सभी मिलकर आसानी के साथ अपना महापौर चुन सकते थे। लेकिन डायरेक्ट चुनाव के कारण 5 सीटें कांग्रेस, 1 निर्दलीय और 1 आप जीत गई है।
शिवराज ने नहीं मानी कमलनाथ की ये बात
तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने महापौर, नगर पालिका के साथ नगर परिषद अध्यक्ष के चुनाव इनडायरेक्ट कराने का फैसला लिया था। इसके लिए कमलनाथ सरकार अध्यादेश भी लेकर आई थी। लेकिन शिवराज सरकार ने जब कमलनाथ सरकार का तख्तापलट किया, तो उनके इस फैसले को भी पलट दिया। इसके बाद शिवराज सरकार मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से कराने का अध्यादेश लेकर आई। दरअसल, शिवराज सरकार चाहती थी कि सीधे जनता ही मेयर चुने। उसी रास्ते से बीजेपी ने चुनाव भी लड़ा। नतीजतन 16 में बीजेपी के 7 महापौर प्रत्याशी चुनाव हार गए। वहीं हारे हुए इन शहरों में पार्षदों का बहुमत बीजेपी का है। यदि अप्रत्यक्ष तरीके से यह चुनाव हुए होते तो इन सभी शहरों में बीजेपी अपना महापौर बना सकती थी।
संगठन ने शिवराज की एक नहीं चलने दी
प्रत्यक्ष तरीके से चुनाव कराने के लिए शिवराज सरकार और भाजपा संगठन शुरूआत से ही कशमकश में थी। पहले कमलनाथ का फैसला पलट दिया, इसके बाद फैसला किया कि चुनाव डायरेक्ट ही कराए जाएंगे। वहीं चुनाव होने से ठीक पहले एक बार फिर फैसला लिया कि पहले वाला फैसला ही ठीक था, सीधे जनता के जरिए ही महापौर चुने जाएंगे। हालांकि शिवराज ने यहीं फैसला किया था कि एमपी में नगरीय निकाय चुनाव कमलनाथ वाले सिस्टम से ही होंगे। लेकिन संगठन के दबाव के बाद उन्हें अपना फैसला पलटना पड़ा।
बीजेपी ने इनडायरेक्ट चुनाव को बताया था लोकतंत्र की हत्या
मेयर व निकाय अध्यक्षों का इलेक्शन इनडायरेक्ट कराने के फैसले को बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या करार दिया था। बीजेपी ने इस फैसले का जमकर विरोध किया था। इसके खिलाफ बीजेपी के सभी पुराने महापौर राज्यपाल लालजी टंडन से मिले थे। वहीं चुनाव होने से पहले संगठन स्तर पर लगातार बैठकें चलीं। यह मामला दिल्ली तक पहुंचा। इसके बाद निर्णय लिया गया कि महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से होगा, यानी जनता अपना मेयर खुद चुनेगी।
विधायक भी नहीं चाहते थे इनडायरेक्ट चुनाव
चर्चा ये भी है कि बीजेपी के MLA भी नहीं चाहते कि महापौर-नपा अध्यक्ष, जनता के वोट से चुने जाएं। दरअसल, विधायको का ये मत था कि जनता अगर महापौर-अध्यक्ष चुनती है, तो सियासी तौर पर सांसद-विधायकों से ज्यादा ताकतवर हो जाते हैं, जबकि पार्षदों द्वारा चुने गए मेयर का सियासी कद विधायकों की अपेक्षा हमेशा कम रहता है।