PANNA. देश के कई हिस्सों में अतिवृष्टि (excess rain) ने तबाही मचाई है। वहीं बुंदेलखंड (Bundelkhand) और बघेलखंड (Baghelkhand) अल्प वर्षा (scanty rain) से ग्रसित हैं। जुलाई का महीना गुजर गया फिर भी खेत और तालाब सब खाली पड़े हैं। बारिश न होने से फसलें सूख रही हैं। किसानों को अब अच्छी बारिश का इंतजार है, ताकि मुरझाई फसलों को जीवन मिल सके। आषाढ़ का पूरा महीना सूखा (Drought) निकल गया और सावन के महीने ने भी किसानों को निराश ही किया है। अच्छी बारिश न होने से धान (paddy crop) सूख रही है। इस साल अल्प बारिश को देखते हुए ज्यादातर किसानों (farmer) ने छीटा धान बोया था, जो ठीक से जमा (अंकुरित) नहीं। जो निकला भी है, वह सूख रहा है। यदि ठीक-ठाक बारिश नहीं होती तो पूरा सूख जाएगा।
पर्याप्त बारिश न होने से खेती सूखी
जिला मुख्यालय पन्ना से 15 किलोमीटर दूर रक्सेहा पंचायत के ग्राम बिल्हा (village Bilha) निवासी वंशगोपाल पटेल ने बताया कि उनके गांव में लगभग डेढ़ सौ एकड़ में धान की खेती होती है। कुछ किसान रोपा लगाते हैं तो ज्यादातर लोग छीटा पद्धति से धान की बोनी करते हैं। पर्याप्त बारिश न होने से खेत सूखे पड़े हैं जिससे धान का रोपा नहीं लग पाया। छीटा वाला धान भी सूखने लगा है। ग्राम बिल्हा के ही किसान सोनेलाल पटेल ने बताया कि उसने 2 एकड़ में छीटा धान बोया था। एक खेत में तो जमा ही नहीं, दूसरे वाले खेत में जमा था, जो सूख रहा है।
धान की पूरी फसल बर्बाद हुई
कुंआ से पानी लगा के किसी तरह फसल को जिंदा कर रहे हैं। पर कोई सार नहीं। यदि जल्दी बारिश नहीं हुई तो धान की पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। बिल्हा गांव के ही प्रगतिशील युवा किसान साहब पटेल ने बताया कि उसे 3 एकड़ में धान लगानी थी। रोपा भी तैयार किया लेकिन पानी न गिरने से रोपा नहीं लगा पाए। साहब पटेल के पास 6 एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें तीन कुंआ बने हैं। कुंआ के पास ही क्यारी में तैयार धान की रोपा दिखाते हुए इस युवा कृषक ने बताया कि विलंब होने के बावजूद अब रोपा लगा रहे हैं। किसान वंशगोपाल पटेल व सोनेलाल पटेल ने बताया कि विलम्ब तो बहुत हुआ है पर मन नहीं मान रहा। इसलिए अब मन की मानकर भगवान भरोसे रोपाई कर रहे हैं। बीज ख़रीदकर बेड तैयार की है तो रोपाई भी कर रहे हैं, कुछ न कुछ हो ही जाएगा। देरी से उत्पादन पर तो असर पड़ना ही है लेकिन न कुछ से तो कुछ ही बेहतर है।
उड़द, मूंग व तिल की फसल भी प्रभावित
धान के अलावा खरीफ सीजन में उड़द, मूंग, तिल और अरहर की भी बोनी किसान करते हैं। सोनेलाल पटेल बताते हैं कि पूरी किसानी बारिश पर ही निर्भर है। बारिश हुई तो ठीक नहीं तो घाटा लग जाता है। प्री मानसून बारिश से उत्साहित किसानों ने इस साल उडद, मूंग, तिल व अरहर की बड़े पैमाने पर बोनी कर दी थी। लेकिन अषाढ़ के महीने ने किसानों को बुरी तरह से निराश किया। सावन के महीने में जब रिमझिम बारिश होती है, उस समय तेज धूप निकल रही है। इससे फसल झुलस रही है। पन्ना जिले के ग्रामों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्था समर्थन के रीजनल कोऑर्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि बारिश कम होने से उड़द, मूंग व तिल की फसल भी प्रभावित हो रही है। जिन किसानों ने तिल बोई थी, उसमें बहुत कम अंकुरण हुआ है। यही स्थिति उड़द, मूंग व अरहर की फसल का है। श्री तिवारी बताते हैं कि यदि दो-चार दिन के अंतराल में बारिश का सिलसिला शुरू हो गया, तो उत्पादन भले कम हो लेकिन उड़द, मूंग, तिल व अरहर की फसल हो जाएगी। लेकिन यदि पानी न गिरा तो कोमल पौधे मुरझाकर सूख जाएंगे। यह स्थित बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ और बघेलखंड के सतना, रीवा, सीधी और सिंगरौली हर कहीं एक जैसी है।
पन्ना जिले में औसत से 45 फ़ीसदी कम बारिश
कृषि विज्ञान केंद्र पन्ना के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. पी.एन. त्रिपाठी ने बताया कि पन्ना जिले में औसत से 45 फ़ीसदी कम बारिश हुई है। खरीफ फसल को लेकर जिले की स्थिति चिंताजनक है, बहुत कम बोनी हुई है। आपने बताया कि खरीफ में यहां धान की फसल सबसे ज्यादा लगभग एक लाख हेक्टेयर में होती है। धान के बाद उड़द, मूंग व तिल का रकबा भी यहां रहता है। डॉक्टर त्रिपाठी का कहना है कि बारिश न होने से रोपा बहुत ही कम हो पाया है। मूंग, उड़द व तिल कम पानी में भी हो सकती है। किसानों को सलाह दी गई है कि वे कम दिन की व कम पानी वाली फसल लें। धान को छोड़कर अन्य फसलें कम पानी में भी हो जाएंगी।
पन्ना जिले में अब तक हुई बारिश के संबंध में मिली अधिकृत जानकारी के मुताबिक पन्ना जिले में 7 अगस्त तक 463.9 मिमी औसत वर्षा दर्ज की गई है। पन्ना जिले की औसत वर्षा 1176.4 मिलीमीटर है। जिले के देवेंद्रनगर में सर्वाधिक 782.2 मिमी व सबसे कम शाहनगर में 292.2 मिमी वर्षा दर्ज की गई है। पन्ना में अब तक सिर्फ 422.5 मिलीमीटर वर्षा हुई है।
उप संचालक कृषि कार्यालय पन्ना द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक वर्ष 2022 के लिए धान की
बोनी का लक्ष्य 1 लाख 10 हजार हेक्टेयर निर्धारित किया गया था, जिसके मुकाबले अब तक 40.63 हजार हेक्टेयर में धान की बोनी हुई है। खरीफ फसल के लिए लक्ष्य 2 लाख 46 हजार हेक्टेयर का था, जिसके मुकाबले 1 लाख एक हजार हेक्टेयर में बोनी हुई है, जो लक्ष्य का 41 फ़ीसदी है।