GWALIOR :चम्बल- ग्वालियर में अफसरों को साथ लेकर गाँव - गाँव घूमती थी एम गीता ,गले में पहन ली थी साँपों की माला

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Dev Shrimali
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GWALIOR :चम्बल- ग्वालियर में अफसरों को साथ लेकर गाँव - गाँव घूमती थी एम गीता ,गले में पहन ली थी साँपों की माला



GWALIOR. देव श्रीमाली   मध्यप्रदेश से अपनी प्रशासनिक सेवा (IAS) शुरू करने वाली तेजतर्रार और नवाचार करने को तत्पर रहने वाली अधिकारी छत्तीसगढ़ कैडर की आईएएस अफसर एम गीता ( M Geeta  ) नहीं रहीं। वे इन दिनों भारत सरकार के कृषि मंत्रालय  में संयुक्त सचिव पद पर पदस्थ थी और बीते तीन माह से जीवन और मृत्यु  के बीच जंग लड़ रही थी।  उनकी किडनी में गंभीर इंफेक्शन के चलते मई में दिल्ली के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन उनकी हालत दिन पर दिन गिरती गयी और अंतत : कल यानी बीस अगस्त को उनके दुखद निधन की खबर आ गई। उनके निधन से दिल्ली ,एमपी और छत्तीसगढ़ से लेकर केरल तक शोक की लहर फ़ैल गयी। लेकिन सबसे ज्यादा शोक और चर्चा ग्वालियर और चम्बल अंचल में है क्योंकि 51 वर्षीय एम गीता ने अपने जीवन का सबसे ज्यादा और सबसे क़्वालिटी समय इसी अंचल में बिताया। वे इस अंचल में एसडीएम ,जिला पंचायत सीईओ और दो जिलों में कलेक्टर भी रहीं और अफसरों से लेकर पत्रकारों तक के जेहन में उसने जुड़े तमाम किस्से आँखों में आज भी जीवित है। वे एक संवेदनशील और  निर्भीक महिला अफसर थी ,गाँव,गरीब और जरूरतमंद की मदद के लिए उनके दरवाजे चौबीसो घंटे खुले रहते थे और वे भी गाँव - गाँव जाकर ऐसे लोगों की मदद के लिए तत्पर रहती थी और इनकी मदद में कोताही करने वाले अधीनस्थों पर उनका गुस्सा बेकाबू हो जाता था।





शादी के बाद आईएएस बनी थी एम गीता





एम गीता से मेरी मुलाक़ात उनके मिलनसार पति रमेश कुमार के कारण हुई। रमेश इलाहाबाद बैंक की ग्वालियर की इंदरगंज शाखा में पदस्थ थे और उसके सामने ही स्थित चाचा जनरल स्टोर पर उनका आना - जाना था। वे इस स्टोर के  संचालक स्व सुनील चड्ढा उनके दोस्त   बन गए थे और उन्ही के जरिये मेरे रमेश से लगभग रोज खूब मुलाकातें  हुई और पता चला कि डबरा एसडीएम गीता उनकी पत्नी है।  रमेश भी कर्मठ,सहज ,मिलनसार और सामान्य जीवन शैली  वाले मस्त मौला इंसान थे। गीता उनकी ही प्रेरणा से आईएएस बनीं थीं।  गीता ने  शादी के पूर्व एन्थ्रोपोलॉजी में  मास्टर डिग्री ली थी  और फिर इसी विषय में पीएचडी। उनके पिता ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की सेवा करते थे इसका असर गीता पर भी पड़ा और रमेश ने उन्हें प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए प्रेरित किया और आखिरकार 1997 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित हो गयीं। उन्हें एमपी कैडर मिला और उनकी पहली पोस्टिंग सागर में हुई बतौर असिस्टेंट कलेक्टर। उन्होंने अपने प्रोबेशन का कुछ समय वही काटा इसके बाद उनके पति की पोस्टिंग ग्वालियर हुई तो उनकी पदस्थापना भी ग्वालियर जिले में कर दी गयी और वे डबरा में एसडीएम बनाई गयीं। यहाँ उनकी सबकी मदद करने की कार्यशैली और कठोर परिश्रम करने वाले अफसर की छवि ने उन्हें जल्दी ही लोकप्रिय बना दिया। यह लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि उनकी पोस्टिंग आसपास ही होती रहीं।





ग्वालियर ,भिंड ,दतिया और शिवपुरी में रहीं





एसडीएम से पदोन्नत होकर उन्हें ग्वालियर में एडीएम बनाया गया और फिर जिला पंचायत का सीईओ। इस दौरान उन्होंने गाँव - गाँव पीने के पानी की समस्या के निराकरण की अभिनव पहल की और सहरिया आदिवासियों के जीवन उत्थान के लिए उनकी तकलीफें समझने के मकसद से अनेक रातें उनके ही टपरों में गुजारी। वे निडर और सहज महिला थी। उन साथ पीआरओ रह चुके मधु सोलापुरकर उनके निर्भीक  होने का एक किस्सा बताते है। बकौल सोलापुरकर - वे डबरा एसडीएम थी। दिल्ली से दूरदर्शन की एक टीम ग्रामीण क्षेत्रों के  कार्यों की रिपोर्टिंग के लिए आयी थी। हमें उनके सहयोग का जिम्मा सौंपा गया। हम डबरा गए तो पता चला कि वे टेकनपुर के पास घुमन्तु सपेरों के गाँव में उनसे मिलने गयी है।  हम भी टीम लेकर उनके पास  वहीँ पहुँच गए। वहां पहुंचे तो देखा वे सपेरों के बच्चों  के साथ एक पेड़ की छाँव में भीषण गर्मीं में जमीन पर ही बैठी हुई हैं । उन्होंने सपेरों से पूछा की वे क्या करते हैं ? उन्होंने बताया कि वे सांप पालने का काम करते हैं ताकि उन्हें दिखाकर अपना पेट पाल सकें। उन्होंने ग्रामीणों से पूछा कि क्या अभी भी उनके पास सांप हैं ? जब ग्रामीण बोले ,हाँ तो उन्होंने खा लाकर दिखाओ। सब लोग दौड़कर बीस - पच्चीस सानप ले आये और बोले इनमें जहर नहीं है इनके काटने से कोई नुक्सान नहीं होगा। सोलापुरकर कहते है की इतने इकट्ठे सांप देखकर दिल्ली से आये टीम के सदस्य घबरा गए लेकिन गीता ने उन्हें एक - एक कर शंकर भगवान् की तरह अपने गले में माला की तरह पहन लिया और निडर होकर खिलखिलाकर हंसतीं रही।  टीवी टीम ने इनकी यह भंगिमा अपने कमरे ें कैद की और इस पर एक बड़ी स्टोरी दूरदर्शन पर चलाई। बाद में उन्होंने सपेरों के लिए रोजगार के साधन देने की योजना बनाई और उनके बच्चो को पढ़ाई की व्यवस्था की ताकि वे रोजगार का दूसरा साधन ढूंढ सकें।





नक़ल के खिलाफ मुहिम





एम गीता क्वालिटी एजुकेशन  को लेकर बहुत क्रेजी थीं लेकिन जब उनको भिंड जिला पंचायत का सीईओ बनाकर भेजा गया तो वहां पहुंचकर उन्हें बोर्ड एग्जाम में होने वाली नक़ल और नकल माफिया के बारे में जानकारी मिली।   उन्होंने इसके खिलाफ कठोर कार्यवाही की। वे स्वयं हाथ में डंडा लेकर परीक्षा   सेंटर्स पर जाती थी और नक़ल माफिया की नकेल भी कसतीं थी जिसके चलते अनेक स्थानों पर उन पर हमले के प्रयास भी हुए। वे ग्वालियर चम्बल के लोगों जांबाजी से बहुत प्रभावित थी और कहतीं थी यह अंचल में मुझे बहुत अच्छा लगता  है क्योंकि यहाँ के लोग खुद्दार भी है ,साहसी भी और वफादार भी। यही वजह  है वे प्रदेश के अनेक जिलों में और फिर छत्तीसगढ़ और दिल्ली में भी पदस्थ रही इस अंचल के अनेक लोगों से उनके संपर्क  बने रहे।





सरकार को बस में लेकर चलतीं थी





गीता प्रशासन को  आमजन का मददगार मानती थी और अपना ज्यादा से ज्यादा समय ग्रामीणों और जरूरतमंदों के बीच बिताकर उनकी समस्याओं के निराकरण पर खर्च करने में लगाने की शौक़ीन थीं। इसके लिए वे अनेक तरह के नवाचार करतीं रहतीं थी। जब उनको शिवपुरी जिले का कलेक्टर बनाया गया तो आदिवासी और दुरूह में रहने वालों की हालत देखकर उन्हें अहसास हो गया कि इनके पास इतने भी पैसे और साधन नहीं है कि वे अपना दुखड़ा रोने अफसरों तक पहुँच सकें तो उन्होंने एक नवचार किया। उन्होंने हर पखबाड़े जिले के सारे प्रमुख अफसरों को बस में बिठाकर किसी न किसी गाँव में केम्प लगाना शुरू कर दिया। वे खुद भी उसी बस में बैठकर जातीं और पूरा दिन ग्रामीणों के बीच रहकर उनके साथ ही खातीं और उनकी समस्याएं जानकार यथासंभव उनका मौके पर ही निराकरण करतीं। सामजिक सरोकार ,बालिका शिक्षा और बालिका बचाओं जैसे काम उनकी प्राथमिकता में रेट थे लेकिन छत्तीसगढ़ में तो उन्होंने पशुओं के लिए गौधन न्याय योजना को आकार दिया जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई।





दबाव में नहीं आतीं थी गीता





एम गीता दबाव में आकर कोई काम नहीं करतीं थी भले ही उनका कितना भी बड़ा नुक्सान क्यों न हो जाए क्योंकि वे कहतीं थी तबादले का मतलब कोई सज़ा नहीं है अगर कोई कुछ भी करे वह अच्छा हो या बुरा आखिरकार कभी न कभी उसका तबादला तो होना है लेकिन जब जिस जगह पर है तब उस जगह की भलाई किसमें है यह सोचकर मैं काम करती हूँ। ऐसा ही एक किस्सा वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव बताते हैं। भार्गव के मुताबिक बात संभवत : 2006 और 2007 के आसपास की है।  गीता शिवपुरी जिले में कलेक्टर थीं। तब झांसी -कोटा नेशनल हाइवे का निर्माण कार्य चल रहा। इस काम का ठेका आंध्र प्रदेश के एक बड़े ठेकेदार को मिला था जिसका पीएमओ तक दबदबा था। गीता को पता चला कि ठेकेदार पैसे बचाने के लिए प्रतिबंधित फारेस्ट क्षेत्र से मिटटी,गिट्टी,पत्थर आदि का गैर कानूनी ढंग से उत्खनन कर मटेरियल निकालकर इसमें उपयोग कर रहा है। सूचना मिलने पर वे आधी रात को ही खनन क्षेत्र में अकेले ही पहुंच गयी। हालाँकि खनन माफिया किसी पर भी हमला कर देता था लेकिन अकेले होने के बावजूद उन्होंने सबको न केवल लताड़ा बल्कि खदेड़ भी दिया। इसके बाद दिल्ली से बड़े - बड़े लोगों से एप्रोच आयी लेकिन गीता ने उन्हें मनमानी नहीं करने दी जिसके चलते ठेकदार ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए उनके तबादला करा दिया।





रतनगढ़ हादसे के बाद रो पड़ीं थी गीता





बात 2008 की है।  एम गीता दतिया में कलेक्टर थी। शिवपुरी जिले में हो रही मूसलाधार बरसात के चलते सारे बाँध ओवरफ्लो हो गए जिसके चलते अचानक बांधों के गेट खोल दिए गए जिसके चलते सिंध नदी में ज्यादा पानी आने से ग्वालियर - दतिया और भिंड जिले के अनेक गाँव में बाढ़ सी स्थित बन गयी। जिस रात पानी छोड़ा गया तब सूचना मिलने में गतिरोध हो गया और रतनगढ़ मंदिर का पुल  ढह गया और अनेक लोगों की जल सैलाब में   बह जाने से मौत हो गयी। लेकिन घटना की सूचना अधीनस्थों ने कलेक्टर को समय पर नहीं दी और जानकारी पूरी भी नहीं दी लेकिन जैसे ही मौतों की खबर मिली कलेक्टर गीता और एसपी मौके पर पहुंचे तो ग्रामीणों के बीच पहुंचकर वे रोने लगीं। इसके बाद उनका तबादला किया गया तो विदाई के समय भी वे इतनी भावुक हो गयीं और आँखों में आंसू छलछला उठे। उन्हें मलाल तबादले का नहीं था बल्कि इस बात का था कि उनके रहते प्रशासनिक लापरवाही के कारण कई लोगों की अकारण और असमयिक जानें चलीं गयीं। हालाँकि इस हादसे की सीधे उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं थीं लेकिन वे इसके लिए सदैव खुद की अक्षमता बताती रहीं।





कैडर बदलने पर झगडे थे एमपी और छग





जब एमपी से अलग हटकर छत्तीसगढ़ स्वतंत्र राज्य बना तो आईएएस कैडर का भी बँटवारा  हुआ। गीता की कार्यकुशलता और उनके सामाजिक नवाचारों से प्रभावित राजनेता और वरिष्ठ अफसर चाहते थे कि उन्हें एमपी के कैडर में ही रहने दिया जाए जबकि छत्तीसगढ़ जा रहे वरिष्ठ अफसर उन्हे अपने साथ ले जाना चाहते थे। इस बात को लेकर दोनों राज्यों में काफी द्वंद्व चला। खतो -  किताबत भी हुई लेकिन जीत छत्तीसगढ़ की ही हुई और वे वहां चली गयीं। वहां उनके नाम अनेक नवाचार दर्ज हैं। वे राज्य की लोकप्रिय और संवेदनशील तथा सामाजिक सरोकारों वाली अफसर के रूप में लोकप्रिय थी। वे अनेक नए अफसरों के लिए रोल मॉडल थी।  मध्यप्रदेश कैडर के एक आईएएस अफसर पी नरहरि ने फेसबुक पर उन्हें एक जोशीला और उग्र समाजसेवक बताते  लिखा कि - उन्होंने एक बड़ी बहन ,मेंटर और कई मायनो में एक रोल मॉडल खो दिया।



द सूत्र की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि



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