jabalpur. हत्या के आरोप में निचली अदालत से मिली उम्रकैद की सजा हाईकोर्ट ने 5 साल में तब्दील कर दी थी। लेकिन कोर्ट से कैदी का संशोधित रिहाई वारंट तब जारी हुआ जब उसने पूरे 8 साल 11 महीने और 5 दिन की सजा काट ली थी। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस चूक के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह पीड़ित को 3 लाख रुपए का हर्जाना चुकाए। जस्टिस एसए धर्माधिकारी की बेंच ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार विजिलेंस को कहा है कि वे इस बात की जांच करें कि आखिर संशोधित वारंट समय पर क्यों नहीं जारी हो पाया?
छिंदवाड़ा के बिछुआ थाना इलाके के निवासी इंदर सिंह की ओर से अदालत को बताया गया कि हत्या के एक मामले में निचली अदालत ने उसे 14 मार्च 2005 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ अपील पर हाईकोर्ट ने सितंबर 2006 को उसकी सजा कम कर 5 साल कर दी। 4 अक्टूबर 2006 को यह आदेश रजिस्ट्रार जनरल ने संबंधित एडीजे को छिंदवाड़ा भेज दिया। इसके बावजूद उसे 5 साल की सजा पूरी होने पर नहीं छोड़ा गया। जब उसकी ओर से अधिवक्ता ने छिंदवाड़ा जेल सुपरिटेंडेंट को पत्र लिखा, तब जाकर 2 जून 2012 को उसकी रिहाई हो पाई।
सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने यह बात आई कि संबंधित एडीजे की कोर्ट ने समय पर हाईकोर्ट का आदेश मिलने के बावजूद सही समय पर संशोधित रिहाई वारंट जारी नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि संशोधित रिहाई या सजापूर्णता का वारंट जारी करना कोर्ट का कर्तव्य है, जेल अधिकारियों का नहीं। कोर्ट ने हर्जाना चुकाने के साथ दोषी की जांच और कार्रवाई के निर्देश देकर याचिका का पटाक्षेप कर दिया है।