BHIND: कारगिल युद्ध के 23 वर्ष पूरे, भिंड जिले के 3 वीर सपूतों ने दी थी शहादत, जानिए सुल्तान सिंह नरवरिया और अन्य की कहानी

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Manoj Jain
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BHIND: कारगिल युद्ध के 23 वर्ष पूरे, भिंड जिले के 3 वीर सपूतों ने दी थी शहादत, जानिए सुल्तान सिंह नरवरिया और अन्य की कहानी

 Bhind. बीहड़, बागी और बंदूक और फिरौती कारोबार(Rugged, rebel and gun and ransom business) के लिए कई दशकों तक बदनाम भिंड जिले का एक और अनछुआ पहलू भी है जो देश के लोगों की नजरों से अछूता है। आज हम उस पहलू से रूबरू कराएंगे और आपको बताएंगे 1999 के कारगिल युद्ध (Kargil war) का पासा पलटने वाले चंबल अंचल के छोटे से जिले भिण्ड के उन तीन वीर सपूतों की कहानी। चंबल अंचल के भिण्ड जिले के नौजवानों का देश की सुरक्षा में बड़ा योगदान है। 1962 का चीन युद्ध हो, या 1971 का पाकिस्तान से युद्ध अथवा 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में भिंड जिले के नौजवानों के बलिदान की एक लंबी फेहरिस्त है। भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी युद्ध साल 1999 में कारगिल में लड़ा गया था 18 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर भारत के सैनिकों ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया था 26 जुलाई 1999 को भारत की जीत की आधिकारिक घोषणा हुई थी। कारगिल युद्ध में भारत के 527 वीर सपूत शहीद हुए थे। हर साल 26 जुलाई के दिन इन वीर शहीदों के बलिदान को याद करने कारगिल विजय दिवस(Kargil Victory Day) मनाया जाता है।





मप्र के पहले कारगिल शहीद थे हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया





कारगिल युद्ध में शहीद हुए 527 वीर योद्धाओं में से तीन सपूत मध्य प्रदेश के छोटे से जिला भिंड से थे इनमें द्वितीय बटालियन राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट के शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया(Martyr Havildar Sultan Singh Narwaria) की शहादत यादगार है। जिसकी वजह कि वे 1999 में हुए कारगिल युद्ध में मध्य प्रदेश के पहले शहीद थे। भिंड के छोटे से गांव पीपरी में 16 जून 1960 को सुल्तान सिंह नरवरिया का जन्म हुआ था उस दौरान परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी बड़े हुए तो किसी तरह उन्होंने हायर सेकंडरी तक पढ़ाई पूरी कि उन्हें पता चला कि ग्वालियर में सेना के लिए भर्तियां चल रही हैं तो यह घर से बिना बताए चले गए शामिल हुए। साल 1979 में उनका चयन राजपूताना राइफल्स में हो गया था। वीर शहीद सुल्तान सिंह नरवरिया का परिवार आज भी भिंड के मेहगांव में रहता है। शहीद सुल्तान सिंह के बेटे देवेंद्र नरवरिया ने बताया 1999 में जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो उसकी सूचना एक टेलीफोन के जरिए उनके पिता हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया को भी मिली क्योंकि वे उन दिनों छुट्टी पर घर आए हुए थे। जानकारी मिलते ही वे युद्ध के लिए रवाना हो गए थे, 





ऑपरेशन विजय का हिस्सा थे नरवरिया





देवेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पिता को आर्मी के ऑपरेशन विजय का हिस्सा बनाया गया था। 10 जून को उन्हें टुकड़ी का सेक्शन कमांडर बनाया गया जिसे टारगेट दिया गया था दुश्मन पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जे में ली गयी। कारगिल में स्थित तोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर प्वाइंट 4590 रॉक एरिया पर बनी चौकी को आजाद कराना था। इसके लिए सुलतान सिंह नरवरिया को एक टुकड़ी का सेक्शन कमांडर बनाया गया , 12-13 जून की दरमियानी रात इतनी ऊंचाई पर माइनस डिग्री टेंपरेचर में वह अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़े लगातार गोलीबारी के बीच कुछ सैनिक शहीद हो गए थे,





एचएमजी का सामना कर उसको किया था डिस्ट्रॉय





दुश्मन मिडिल मशीन गन ( एमएमजी ) से ऊपर से गोलियां बरसा रहा था ,चौकी को वापस लेना था इस संकल्प के साथ भगवान राम का जयकारे लगाते हुए उन्होंने अपने साथी जवानों को उनके पीछे आने के निर्देश दिए, पर खुद आगे बढ़कर फायरिंग करते हुए चौकी तक जा पहुंचे। वे सबसे आगे थे, दुश्मन की एमएमजी गन की गोलियां खत्म हुई तो दुश्मनों ने बंदूकों से फायर किए इस दौरान सुल्तान सिंह नरवरिया के कुछ साथी जवान शहीद हो चुके थे उनको भी कई गोलियां लग चुकी थी लेकिन 8 से 10 दुश्मनों को ढेर करते हुए उन्होंने टास्क पूरा किया और तोलोलिंग चोटी पर भारत का झंडा लहरा दिया,





रेजीमेंट के 17 जवानों के साथ शहीद हुए थे  नरवरिया





अपने 17 साथी जवानों के साथ शहीद हो गए।  युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी वीरता के लिए  साल 2002 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा उन्हें सेना के दूसरे सबसे बड़े सम्मान वीर चक्र से नवाजा गया। साथ ही भारत सरकार ने उनके परिवार के लिए जमीन देकर घर का निर्माण कराया मेहगांवव में एक पेट्रोल पंप भी दिया गया, जिससे उनके परिवार को जीवन यापन में कोई असुविधा ना हो ,भारत सरकार से मिले सम्मान से वे संतुष्ट है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किये गए बर्ताव से वे कुछ आहत हैं। देवेंद्र का कहना है कि उनके पिता के शहीद होने के बाद एमपी सरकार की ओर से परिवार के एक सदस्य को सर्विस देने की बात कही गयी थी, लेकिन कई बार प्रयास करने के बाद भी उनके परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी नही मिल सकी, हालांकि वे अब इसके लिए प्रयास नहीं करना चाहते हैं। देवेंद्र सिंह नरवरिया को इस बात का दुख है कि अंतिम समय मे वे अपने पिता को न देख सके, उनकी शहादत की सूचना भी समाचार पत्रों और राजपूताना रायफल्स के दिल्ली बेस से एक जवान भेज कर दी गयी थी, लेकिन दुख से ज़्यादा उन्हें फक्र है की उनके पिता देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए । शहीद के बेटे देवेंद्र नरवरिया भी सेना में जाना चाहते थे मेरे परिवार की जिम्मेदारियों को चलते नहीं पहुंच पाए अब अब है इस बार नगरीय निकाय चुनाव में मेहगांव नगर परिषद से पार्षद चुने गए हैं और वह बनकर समाज सेवा करना चाहते है, देवेंद्र नरवरिया अपने बच्चों को आगे आर्मी में भेजना चाहते हैं।





ग्रेनेडियर दिनेश सिंह भदौरिया की कहानी 





भिंड के ही लांस नायक करन सिंह, ग्रेनेडियर दिनेश सिंह भदोरिया भी करगिल में शहीद हो गए थे जिनको मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया था। दिनेश सिंह भदौरिया कारगिल युद्ध की ऑपरेशन विजय में भी शामिल हुए और अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे किए थे। बाद में 31 जुलाई 2000 को कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानियों के घुसपैठ के दौरान हुई मुठभेड़ में दिनेश सिंह भदौरिया की भी शहादत हो गई थी, दिनेश सिंह भदौरिया की शहादत के किस्से आज भी लोग बहादुरी से सुनाते हैं।





लांस नायक करन सिंह 





भिंड जिले के पुर थाना अंतर्गत आने वाले सगरा गांव के करण सिंह भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हुए थे और कारगिल युद्ध के भैया ऑपरेशन में शामिल होकर पाकिस्तानी घुसपैठियों को बड़ी बहादुरी और वीरता के साथ सीमा पार खदेड़ने के किस्से खूब मशहूर हैं। किसी युद्ध के दौरान 16 नवंबर 1999 कारगिल इलाके में घुसपैठियों से हुई मुठभेड़ में भी वीर लांस नायक करण सिंह चंबल की माटी का नाम रोशन करते हुए शहीद हो गए थे जिन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।



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