पन्ना जिला का ऐसा भी गांव जहां बाघ, बकरी और आदमी एक घाट पीते हैं पानी

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Shivasheesh Tiwari
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पन्ना जिला का ऐसा भी गांव जहां बाघ, बकरी और आदमी एक घाट पीते हैं पानी

अरुण सिंह, Panna. पन्ना जिले के कटहरी व बिलहटा गांव के आदिवासी जंगल की उसी झिरिया का पानी पीते हैं, जहां बाघ, तेंदुआ और भालू जैसे वन्य प्राणी भी पानी पीने आते हैं। भीषण गर्मी में जब कुंआ, तालाब और हैंडपंप सब दगा दे गए हों, ऐसे समय लू के गर्म थपेड़ों के बीच गला तर करने के लिए दो घूंट पानी का इंतजाम करना कितना कठिन और जोखिम भरा काम है, यह जंगल में बसे पन्ना जिले के आदिवासी गांव कटहरी, बिलहटा और कोनी में देखा जा सकता है। इन ग्रामों में पानी से ज्यादा महत्वपूर्ण और कोई चीज नहीं है। "जल ही जीवन है" इस बात की प्रासंगिकता काअनुभव इन ग्रामों में होता है।



पीने के लिए पानी नहीं



जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 60 किलोमीटर दूर पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता वन परिक्षेत्र में बसे बिलहटा गांव की आदिवासी महिला नन्हीं बहू ने बताया कि हम रोजाना जान जोखिम में डालकर गहरे सेहा में स्थित बिलहटा झिरिया से पीने के लिए पानी लाते हैं। घने जंगल के बीच सेहा में तकरीबन 100 फीट नीचे उतरकर आदिवासी महिलाएं व बच्चे यहां पहुंचते हैं और पानी सिर में रखकर ढाई किलोमीटर दूर गांव तक ले जाते हैं। बिलहटा निवासी ठाकुरदीन गोंड़ 45 वर्ष बताते हैं कि हमारे गांव में कुल 60 घर हैं, सभी आदिवासी हैं। लगभग 400 की आबादी वाले इस गांव में कोई जल स्रोत नहीं है, एक हैंडपंप लगा है जिसमें पानी नहीं है। ऐसी स्थिति में सिर्फ बिलहटा झिरिया ही एकमात्र सहारा है, जिसके पानी से दो गांव के लोगों की प्यास बुझती है। 



झिरिया के सहारे हजारों लोग



इस पूरे इलाके में प्रचुर संख्या में वन्य प्राणी स्वच्छंद रूप से विचरण करते हैं। बाघ, तेंदुआ व भालू जैसे वन्य प्राणियों की भी यहां के जंगल

में अच्छी तादाद है। हैरत की बात तो यह है कि इसी झिरिया में वन्य प्राणी भी पानी पीने आते हैं, जहां से आदिवासी महिलाएं रोज पानी ले जाती हैं। सेहा के ऊपर दोनों गांव कटहरी और बिलहटा बसे हैं। इन दोनों गांव से झिरिया (जलस्रोत) की दूरी ढाई किलोमीटर है, जहां पहुंचने के लिए जंगल के बीच से पगडंडी है। उबड़-खाबड़ पत्थरों वाली इसी पगडंडी से गांव के लोग नीचे झिरिया तक जाते हैं। केसरबाई निवासी कटहरी ने बताया कि बाघ, तेंदुआ और भालू का खतरा हमेशा बना रहता है क्योंकि वे भी यहीं पानी पीने आते हैं। वे आगे बताती हैं कि नखा वाले इन जानवरों के डर से हम लोग कभी अकेले पानी लेने नहीं जाते, हमेशा 8-10 के समूह में जाते हैं।



जलस्रोत का अभाव



वहीं पास में मौजूद बैजू आदिवासी बड़ी बेफिक्री से कहते हैं कि साहब हम लोग इसी जंगल में जानवरों के साथ पले बढ़े हैं, इसलिए हमें डर नहीं लगता। वे बताते हैं कि जंगली जानवर ज्यादातर सुबह व शाम के समय पानी पीने जाते हैं, इसलिए हम लोग दिन निकलने के बाद ही झिरिया में जाकर पानी लेते हैं। जंगली जानवरों व हमारे बीच यह तालमेल बना रहता है, इसलिए कभी उनसे टकराव नहीं होता। बिलहटा गांव की तरह कटहरी में भी कोई जलस्रोत नहीं है, सिर्फ एक हैंडपंप लगा है जिसका पानी ठीक नहीं है। कटहरी में लगभग 60 घर हैं तथा यहां की आबादी 300 के आसपास है। इन दो गांवों जैसी स्थिति है कोनी की भी है। कोनी गांव के पास भी सेहा है, जहां स्थित झिरिया से गांव के लोग पानी लाते हैं। वन कर्मचारियों का कहना है कि झिरिया में बारहों महीना पानी बना रहता है। जिसके पानी से वन्य प्राणियों के साथ-साथ आदिवासी भी अपनी प्यास बुझाते हैं।



सूख चुके हैं प्रदेश के 34 फ़ीसदी कुंए



मध्यप्रदेश में भूजल स्तर कितनी तेजी से नीचे खिसक रहा है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अप्रैल के महीने में ही प्रदेश के 34 फीसदी कुएं सूख चुके हैं। राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश में सबसे अधिक कुओं के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन के मुताबिक प्रदेश के 34 फ़ीसदी कुओं का जलस्तर तेजी से गिरा है। कुछ जिलों की हालत चिंताजनक बताई गई है, जिनमें कटनी, सागर, सिवनी, दमोह, छतरपुर, पन्ना, डिंडोरी, बड़वानी, नर्मदापुरम, झाबुआ व अलीराजपुर शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 2228 अस्पताल पीने के पानी के संकट से जूझ रहे हैं। इनमें आदिवासी बहुल इलाकों की स्थिति ज्यादा खराब है। दवाड़ा में सबसे ज्यादा 290, सिवनी में 129, डिंडोरी में 188, बड़वानी में 168, मंदसौर में 160 तथा रतलाम में 150 से ज्यादा अस्पताल पानी के संकट से जूझ रहे हैं।



हर घर में नल से जल पहुंचाने का कैसे पूरा होगा लक्ष्य ?



जल जीवन मिशन द्वारा 2024 तक मध्य प्रदेश में हर घर में नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की जैसी हालत है उसे देखते हुए सोचने वाली बात है कि यह लक्ष्य कैसे पूरा होगा? प्रदेश में 12 से 14 हजार गांव ऐसे हैं जहां भूमिगत जल का स्तर बहुत नीचे पहुंच गया है, इन ग्रामों में घरों तक नल से पानी पहुंचाना बड़ी चुनौती है। जल जीवन मिशन का यह दावा है कि अब तक 48 लाख 94 हजार 774 ग्रामीण परिवारों तक नल से जल मुहैया कराया जा चुका है। प्रदेश में एक करोड़ 22 लाख ग्रामीण परिवारों को नल कनेक्शन दिए जाने का लक्ष्य है, जिसमें 40 प्रतिशत से ऊपर लक्ष्य प्राप्त किया जा चुका है।



महिलाओं को घर गृहस्थी से ज्यादा पानी की चिंता



प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में भूजल के स्तर में तेजी से गिरावट होने के कारण कुआं सूख रहे हैं तथा हैंडपंपों से भी पानी नहीं निकल रहा। ऐसी स्थिति में पानी के लिए महिलाओं को भारी जद्दोजहद करना पड़ रहा है। महिलाओं व बच्चियों का ज्यादा समय पानी की व्यवस्था में जा रहा है। सिलगी गांव के इंद्रमणि पांडे 71 वर्ष बताते हैं कि गांव के कुओं में पानी नहीं बचा, हैंडपंप भी जवाब दे गए हैं। ऐसी स्थिति में खेतों के बोरवेल से पानी ढोकर ग्रामवासी लाते हैं। पानी के इंतजाम में ही पूरा दिन निकल जाता है, बड़ी परेशानी है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की वेबसाइट के मुताबिक प्रदेश में कुल 557311 हैंडपंप हैं, जिनमें 23556 हैंडपंप बंद हैं। 



केन नदी की अप्रैल में ही टूट गई धार



बुंदेलखंड क्षेत्र की जीवन रेखा कही जाने वाली केन नदी अप्रैल के महीने में ही दम तोड़ रही है। केन की जलधार टूट चुकी है तथा प्रवाह क्षेत्र में

चट्टाने नजर आ रही हैं। इस नदी में भारी-भरकम मशीनों द्वारा व्यापक पैमाने पर रेत का उत्खनन होने से केन किनारे स्थित ग्रामों को भी जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। केन नदी में पानी कम होने से सैकड़ों मछुआरों, मल्लाहों तथा नदी तट पर खेती करने वाले किसानों का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।



जल संकट से निपटने  मुख्यमंत्री हुए सक्रिय



प्रदेश में बढ़ते जल संकट की गंभीरता को देखते हुए विगत  25 अप्रैल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में संबंधित विभागों की आपात बैठक ली थी। उन्होंने कहा कि अधिकारी मैदानी स्तर की केवल अच्छी स्थिति ही नहीं दिखायें, समस्याओं की भी जानकारी दें। समस्याओं का समाधान करना और आवश्यक समन्वय कर हल निकालना हमारी जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा है कि पूरे प्रदेश से पानी की समस्या बाबत जानकारी मिल रही है, ऐसे समय पर लोगों को राहत देना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने समस्या ग्रस्त इलाकों में तत्काल राहत देने के साथ-साथ स्थाई समाधान निकालने के भी निर्देश अधिकारियों को दिए है।


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