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DELHI. जस्टिस यूयू ललित का सीजेआई के तौर पर 29 अगस्त को पहला कार्य दिवस है। सुप्रीम कोर्ट के बतौर मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित(UU Lalit) ने 900 से अधिक याचिकाओं को सूचीबद्ध करके एक प्रभावशाली प्रदर्शन निर्धारित किया है। इन याचिकाओं में कर्नाटक हिजाब विवाद, केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की जमानत, गौतम नवलखा समेत कई मामले शामिल हैं। एससी की वेबसाइट पर अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार, अदालत कक्ष संख्या एक में सीजेआई ललित की अध्यक्षता वाली पीठ में न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट पीठ शामिल होंगे।
सुबह 10.30 बजे से शाम 4 बजे तक होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड रोस्टर के अनुसार, सीजेआई ने 15 बेंच में प्रत्येक को लगभग 60 मामले सौंपे हैं। कुल 900 मामले की सुनवाई होनी है। इन याचिकाओं से निपटने के लिए सुबह 10.30 बजे से शाम 4 बजे तक अधिकतम 270 मिनट का आधिकारिक व्यावसायिक समय मिलेगा। इसका मतलब है, औसतन एक मामले को निपटाने में चार मिनट से थोड़ा अधिक समय मिलेगा। जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली बेंच को सबसे ज्यादा 65 याचिकाएं सौंपी गई हैं।
इन पीठों को मिली अहम केस की जिम्मेदारी
अन्य मामलों में, सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ एनआईए के खिलाफ गौतम नवलखा और यूपी सरकार के खिलाफ सिद्दीकी कप्पन की याचिकाओं पर भी सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की अगुवाई वाली पीठ हिजाब प्रतिबंध की चुनौती पर सुनवाई करेगी, जबकि न्यायमूर्ति संजय के कौल की अगुवाई वाली पीठ मुसलमानों के बीच सभी एकतरफा तलाक के रिवाजों पर प्रतिबंध लगाने की याचिका पर सुनवाई करेगी। बतौर चीफ जस्टिस यूयू ललित के कार्यकाल के पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में जिन 62 मामलों की सुनवाई होनी है, उनमें 10 जनहित याचिका यानी PIL भी शामिल है।
जस्टिस ललित के चर्चित फैसले
जस्टिस यूयू ललित सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य थे। जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने त्रावणकोर के तत्कालीन शाही परिवार को केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार दिया था। यह सबसे अमीर मंदिरों में से एक है।
जस्टिस ललित की पीठ ने ही ‘स्किन टू स्किन टच’ पर फैसला दिया था। इस फैसले में माना गया था कि किसी बच्चे के शरीर के यौन अंगों को छूना या ‘यौन इरादे’ से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कृत्य पॉक्सो अधिनियम की धारा-7 के तहत ‘यौन हमला’ ही माना जाएगा। पॉक्सो अधिनियम के तहत दो मामलों में बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसले को खारिज करते हुए जस्टिस ललित की पीठ ने कहा था कि हाईकोर्ट का यह मानना गलती था कि चूंकि कोई प्रत्यक्ष ‘स्किन टू स्किन’ संपर्क नहीं था इसलिए यौन अपराध नहीं है।