भोपाल के बड़े तालाब पर 9 साल में किसी को नहीं मिली सेप्ट की रिपोर्ट, वो द सूत्र के पास, पढ़िए पूरा खुलासा

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Rahul Sharma
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भोपाल के बड़े तालाब पर 9 साल में किसी को नहीं मिली सेप्ट की रिपोर्ट, वो द सूत्र के पास, पढ़िए पूरा खुलासा

Bhopal. द सूत्र ने एक और बड़ा खुलासा किया है। ये वो खुलासा है जो आज तक कोई भी मीडिया समूह, अखबार, टीवी चैनल नहीं कर सका है। दरअसल ये खुलासा भोपाल के बड़े तालाब के अस्तित्व से जुड़ा है। सरकार ने अहमदाबाद स्थित सेंटर फॉर एन्वॉयरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यानी सेप्ट यूनिवर्सिटी को बड़े तालाब की रिपोर्ट बनाने का जिम्मा सौंपा था। 2013 में सेप्ट ये रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। सरकार ने रिपोर्ट बनवाने के लिए 1 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन इस रिपोर्ट में था क्या ये आज तक किसी को पता नहीं चला, क्योंकि सरकार ने रिपोर्ट दबा दी थी। 9 साल बाद... और बेहद मुश्किलों से द सूत्र के हाथ ये रिपोर्ट लग गई है और द सूत्र अब आपको सिलसिलेवार बताएगा कि आखिरकार सरकार रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं करना चाह रही थी।



रामसर साइट के संरक्षण के लिए बनवाई थी सेप्ट रिपोर्ट



भोपाल का बड़ा तालाब शहर की जीवन रेखा के साथ—साथ रामसर साइट भी घोषित है। यानी एक ऐसी वॉटर बॉडी जो अंतर्राष्ट्रीय महत्व की है और इसे संरक्षित करने की जरूरत है। भोपाल का बड़ा तालाब किस तरह से अतिक्रमण का शिकार हो रहा है उसे देखकर लगता है कि ये केवल कहने भर के लिए रामसर साइट है... क्योंकि तालाब का दायरा तो छोटा होता ही जा रहा है। द सूत्र अपनी खबर में पहले ही ये खुलासा कर चुका है कि बड़े तालाब के फुल वाटर लेवल यानी एफटीएल को दिखाने वाली मुनारे से सटे हुए अतिक्रमण हो चुके है, जबकि मुनारों से 250 मीटर दूरी तक किसी तरह का अतिक्रमण या निर्माण नहीं हो सकता। 2002 में जब बड़ा तालाब को रामसर साइट घोषित किया गया तो सरकार ने इसके संरक्षण के लिए मार्च 2012 में सेप्ट यानी सेंटर फॉर इन्वॉयरमेंटल प्लानिंग एंड टैक्नोलॉजी को रिपोर्ट बनाने का जिम्मा सौंपा। सेप्ट ने काम शुरू किया और करीब एक साल बाद मई 2013 में ये रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। सेप्ट को इस रिपोर्ट के लिए एक करोड़ का भुगतान सरकार की तरफ से किया गया था।



सरकार ने रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने की अपील तक की



सरकार ने एनजीटी में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि सेप्ट रिपोर्ट को सार्वजनिक न किया जाए। उस समय मीडिया रिपोर्टस में इसे लेकर छापा भी गया था। सवाल यह है कि ऐसा प्रोजेक्ट जो पब्लिक से ही जुड़ा हो तो फिर उसके नतीजे सार्वजनिक क्यों नहीं हो रहे। जिस रिपोर्ट पर अफसर नौ साल तक कुंडली मारकर बैठे रहे वो रिपोर्ट पहली बार द सूत्र के हाथ लगी है और इस रिपोर्ट को जब द सूत्र ने एक्सपर्ट्स को बताया तो वो भी हैरान रह गए क्योंकि सेप्ट के विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में बड़े तालाब को लेकर जो सिफारिशें की है वो चौंकाने वाली है और यदि ये लागू हो जाती तो रसूखदारों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक सकती है।



शिकायत के बाद 17 गांव को किया शामिल पर यह अब भी कम



सेप्ट की रिपोर्ट साल 2013 से 2022 यानी नौ साल तक सार्वजनिक नहीं हो सकी। रिपोर्ट में जो भी फांइडिंग्स है उस पर सरकार के विभागों के बीच चर्चा होती रही है। मई 2019 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने अंदरूनी तौर पर इस रिपोर्ट पर चर्चा की थी, यानी रिपोर्ट पेश होने के 6 साल बाद और टीएंडसीपी ने कैचमेंट क्षेत्र में एन्वायरोमेंट रेगुलेशन पर बिंदुवार चर्चा की थी। 2019 में सेप्ट की इस रिपोर्ट पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की मीटिंग हुई थी और उसके बाद भोपाल के मास्टर प्लान 2031 के प्रारूप में बड़े तालाब के कैचमेंट में बसे 49 गांवों को शामिल किया गया और इन 49 गांवों की जानकारी दी गई और टीएंडसीपी ने ये जनता के दबाव में किया क्योंकि अधिकारियों ने बेशकीमती जमीन के लिए गड़बड़ी कर सिर्फ 32 गांवों को ही कैचमेंट एरिया में दिखाया था यानी 17 गांवों के अस्तित्व को खत्म कर दिया गया था, लेकिन इस संबंध में सैकड़ों आपत्तियां आई उसी के बाद सभी गांव को शामिल कर लिया गया लेकिन अभी भी ये कम ही है।



बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में है 87 गांव



बड़े तालाब को सेप्ट ने 5 जोन में बांटा था। यहां सेप्ट की रिपोर्ट से एक बड़ा खुलासा ये हो रहा है कि बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में 87 गांव है... जिसमें भोपाल और सीहोर जिला शामिल है... ये चौंकाने वाला खुलासा इसलिए है क्योंकि सरकार और प्रशासन की तरफ से ये कहा जाता रहा है कि बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में 27 गांव शामिल हैं.. यानी  प्रशासन ने सीधे सीधे 60 गांवों को गायब कर दिया... इतना बड़ा घोटाला... और 60 गांवों को कैचमेंट एरिया से बाहर क्यों किया गया... उसकी वजह है कि पहले से ही 27 गांव प्रशासन और सरकार के लिए सिरदर्द है क्योंकि इन गांवों के कैचमेंट एरिया पर अतिक्रमण या अवैध निर्माण को लेकर शिकायतें होती रही है और यदि सेप्ट की रिपोर्ट सामने आती तो 87 गांवों के एरिया को संभालना अधिकारियों के लिए सिरदर्द होता।



निर्माण करने लैंडयूज को चेंज करने से भी परहेज नहीं



सेप्ट रिपोर्ट में दूसरा बड़ा खुलासा लैंडयूज से जुड़ा है। सेप्ट ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि लैंडयूज से ज्यादा छेड़छाड़ न कर इसे फिक्स किया जाए ताकि कैचमेंट एरिया में पानी का प्रवाह न थे, पानी प्रदूषित न हो। मगर बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में तो धड़ल्ले से लैंडयूज बदले है। प्राइवेट निर्माण को लेकर आने वाले समय में कोई उंगली न उठा सके, इसके लिए पूरे सुनियोजित ढंग से खेल खेला जा रहा है। सबसे पहले लैंड का मद परिवर्तित कर उसे पीएसपी यानी पब्लिक सेमी पब्लिक कर दिया जाता है, क्योंकि पीएसपी में ज्यादा निर्माण की छूट रहती है। इसके बाद यहां सरकारी बिल्डिंगें तान दी जाती है। बड़े तालाब के कैचमेंट पर वैटलैंड अथॉरिटी, नगर निगम और प्रशासन के बड़े अधिकारी ही अतिक्रमण करवा रहे हैं। प्राइवेट पॉर्टी के लिए यहां रास्ता कैसे खुले... उसके लिए पहले ये लोग सरकारी बिल्डिंग का निर्माण शुरू कर देते हैं, सरकारी बिल्डिंग बनेगी, फिर उसके जाने के लिए रास्ता बनेगा तो फिर उसी रास्ते के आसपास प्राइवेट निर्माण हो जाएंगे। इसके बाद इन निर्माणों पर कोई सवाल खड़े नहीं कर सकेगा। सूरज नगर, बिशनखेड़ी से होते हुए नाथ बरखेड़ा के बीच में बने स्पोर्ट अथॉरिटी आफ इंडिया यानी साई, घुड़सवारी एकेडमी, प्रस्तावित खेल मैदान, व्हाइट टोपिंग सड़क इसी तरह के उदाहरण है।



कश्मीर की डल झील जितना ही महत्वपूर्ण है भोपाल का बड़ा तालाब



सेप्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जिस तरह से कश्मीर के लिए डल झील का महत्व है ठीक उसी तरह भोपाल के लिए बड़े तालाब की अहमियत है और ये एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। सेप्ट की इस रिपोर्ट का ये बिंदु सामने आता तो भोपाल के लोगों का बड़े तालाब से जो भावनात्मक जुड़ाव है वो और ज्यादा हो जाता और प्रशासन नहीं चाहता कि ऐसा हो...साथ ही सेप्ट ने ये भी सुझाव दिया कि बड़े तालाब को बचाना है तो बड़े तालाब का अलग से मास्टर प्लान बनाना चाहिए। इसका मतलब ये है कि बेहद बारिकी से मास्टर प्लान को तैयार करना। अब ऐसा होता तो प्रशासन गड़बड़ियां नहीं कर पाता। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे ने कहा कि सेप्ट रिपोर्ट के अनुसार यदि बड़े तालाब के कैचमेंट में 87 गांवों को शामिल किया जाता तो इससे बड़े तालाब में पानी और बढ़ता, लेकिन सरकार और प्रशासन न तो लैंडयूज और न ही कैचमेंट को बचा पाया। यही कारण है कि सेप्ट रिपोर्ट सालों तक दबाकर रखी गई। यदि यह रिपोर्ट सार्वजनिक होती तो रसूखदार खासकर ब्यूरोक्रेट्स की पोल खुल जाती।


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