Damoh. दमोह से 60 किमी दूर तेंदूखेड़ा ब्लाक के तारादेही मार्ग पर ग्राम पंचायत कोड़ल में कल्चुरी शासकों द्वारा बनवाया गया प्राचीन शिवमंदिर है। जहां पूरे प्रदेश से श्रद्धालु यहां के प्राचीन शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं। यह शिव मंदिर सांस्कृतिक व पुरातत्व की धरोहर है। वहीं मंदिर के चारों ओर अद्भुत कलाकृतियों की नक्कासी पत्थरों पर की गई है। खजुराहो की तरह कलाकृतियों का यह मंदिर 950 ई. में कल्चुरी शासकों द्वारा बनवाया गया था, लेकिन कुछ लोग इसे चंदेलवंशी भी मानते हैं। मंदिर की कलाकृतियां अनोखी हैं। जिसकी देखरेख वर्तमान में पुरातत्व विभाग सागर के जिम्मे है। शासन द्वारा मंदिर के समय-समय पर धुलाई की जाती है, साथ ही मंदिर की पूर्ण सुरक्षा के लिए एक स्मारक परिचायक व दो दैनिक कर्मचारी भी नियुक्त है।
प्राचीन है शिव मंदिर
यह शिव मंदिर पूर्व शासकों द्वारा बनवाया गया है, मंदिर के अंदर भगवान शिव की बड़ी पिंडी विराजमान हैं, मंदिर के चारों ओर सुंदर कलाकृतियां पत्थरों पर की गई हैं। जैसा कि खजुराहों के मंदिरों में कलाकृतियां दिखाई देती हैं, उसी तरह इस मंदिर में भी कलाकृतियां बनी हैं। मंदिर परिसर के अंदर एक बड़ा मढ़ा भी बना हुआ है, पूर्व में इस मढ़ का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। क्षतिग्रस्त हिस्से का शासन द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया है। ग्राम के बुजुर्ग बताते है कि उनके पूर्वज बताते थे कि इस मढ़ा में ब्राह्मणों को शिक्षा दी जाती थी, मंदिर के आसपास काफी पुरात्विक धरोहरें हैं।
महाशिवरात्रि में होती है शिवभक्तों की भीड़
महाशिवरात्रि के दिन भगवान के दर्शनों के लिए अपार जनसमूह एकत्रित होता है, आसपास के गांव से लेकर जिला सागर, देवरी, जबलपुर, पाटन, महाराजपुर, दमोह से आए भक्त भगवान की आराधना करने के लिए कोड़ल पहुंचते हैं। पूर्व मंत्री रत्नेश सॉलोमन द्वारा एक बार एक दिन का कोड़ल महोत्सव भी यहां आयोजित कराया गया था। जिसमें प्रदेश के कलाकारों द्वारा मनमोहक प्रस्तुतियां अपार जनसमूह के समक्ष दी गई थीं। इस महोत्सव में अनेक जानी-मानी हस्तियों द्वारा शिरकत की गई थी। इसके बाद कभी भी इस प्रकार का महोत्सव नहीं कराया गया। शासकीय स्कूल के प्राचार्य कुंजीलाल चौकसे ने बताया कि कलाकृतियों की नक्कासी से यह मंदिर खजुराहों के मंदिर के समान दिखाई देता है। कल्चुरी कालीन यह शिवमंदिर आसपास के क्षेत्र वासियों के लिए आस्था का केंद्र बिंदु है।
950 ई. का है शिव मंदिर
स्मारक परिचायक मुन्नालाल अग्रवाल द्वारा बताया गया कि मंदिर की सफाई शासन द्वारा कराई जाती है। मंदिर की पूर्ण सुरक्षा के लिए वे यहां पदस्थ है। मंदिर में गजबियार जानवर के निशान भी हैं। जिसके कारण यह मंदिर चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित प्रतीत होता है। यह शिव मंदिर 950 ई. की लगभग बनाया गया था, जिसकी देखरेख पुरातत्व विभाग सागर के अधीनस्थ है।