बीजेपी को ‘राजा’ का सहारा, दीदी तेरा भैया सयाना, ये रिश्ता क्या कहलाता है

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Atul Tiwari
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बीजेपी को ‘राजा’ का सहारा, दीदी तेरा भैया सयाना, ये रिश्ता क्या कहलाता है

हरीश दिवेकर



हे दिग्गी तुम्हारा सहारा



कमलनाथ जबसे प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए हैं, बाकी का तो पता नहीं, लेकिन बीजेपी को खूब समझने लगे हैं। इतने ज्यादा कि बीजेपी जहां भजन गाने का सोचती है, वहां कमलनाथ भजन संध्या कर चुके होते हैं। पिछले दो साल से नाथ ने पवन पुत्र को थाम लिया है...। बोले तो हनुमान जयंती पर हनुमान चालीसा गवा रहे हैं अपने दफ्तर में। अब बीजेपी क्या बोले..। अब नजरें दिग्विजय सिंह पर टिका दी हैं। बयानों के रास्ते अपनी ही पार्टी को कई साल से कड़ी टक्कर दे रहे दिग्विजय सिंह ही अब बीजेपी का सहारा हैं। रोजा-रमजान, अली-बजरंग बली पर कुछ ऐसा बोल दें कि उनका बयान नाथ की हनुमान चालीसा पर भारी पड़ जाए। दिग्विजय ने खरगोन कांड में बीजेपी को एक-दो मौके तो उपलब्ध करवा दिए हैं लेकिन भाजपा मांगे मोर...। इंतजार करिए , कुछ तो होगा। ये हम नहीं भाजपाई कह रहे हैं। 



दीदी आपका भैया सयाना..



हफ्तेभर पहले तक दीदी-भैया का रिश्ता लिए घूम रहे शिवराज और उमा भारती के बीच रिश्तों की डोर अभी भी डांवाडोल ही है। इस बार दीदी ने ऐसा लंगर डाला है कि भैया को न चाहते हुए भी सयाना बनना पड़ रहा है । शिव मंदिर के ताले खुलवाने को लेकर दीदी ने रायसेन में शिवजी के दरबार में अपना भी दरबार लगा लिया है। दाना-पानी तक छोड़ दिया है। अब भैया ने दरबार में अपने दरबारी लगा दिए हैं। ना..ना..दीदी की चिंता में नहीं ..निगरानी में। नजर रखी जा रही है कि कौन आ रहा है, कौन जा रहा है। मंत्री, विधायक, अफसर सब के सिरहाने अदृश्य ड्रोन घूम रहा हैं। दूरभाष की वॉकी-टॉकी पर भी कान दिए जा रहें हों तो चौंकिएगा मत। राजनीति में क्या राम, क्या शिव और क्या कृष्ण...मौसम बदलते देर थोड़े ही लगती है । ये बात भैया से अच्छा कौन जान सकता है। आखिर उन्हें भी पहली कुर्सी गौर साहब के बदले मौसम से ही मिली थी। 



बड़े जोशी घाटे में



कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे महेश जोशी की पुण्यतिथि पर उनके बेटे पिंटू जोशी ने मजमा जमाया। खूब जमाया। क्या बड़े, क्या छोटे । क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी। हर वो नेता जो कहीं न कहीं महेश जोशी के लिए खास रहा है या जिनके कंधे पर महेश जोशी का हाथ रहा। सब मजमे में पहुंचे। नहीं पहुंचे तो भतीजे अश्विन जोशी। ऐसा करके नुकसान कर गए भैया। जिस हिसाब से वहां दिग्विजय से लेकर सज्जन वर्मा, जीतू पटवारी, अरुण यादव ने पिंटू जोशी को महेश जोशी का वारिस बताकर तीन नंबर की राजनीति में टेका दिया है, वो अश्विन के लिए अच्छी खबर नहीं है। बताना तो पड़ेगा ही कि तीन नंबर विधानसभा में चाचा-भतीजे में टिकट की टसल पिछले विधानसभा चुनाव में भी हुई थी, तब महेश जोशी जीवित थे। उन्होंने खूब जोर लगाया था बेटे के लिए लेकिन बड़े नेताओं की बड़ी राजनीति से अपनी आखिरी लड़ाई में मात खा गए थे। तब अश्विन टिकट ले आए थे। हालांकि वे हार गए। बस ये हार ही पिंटू की जीत थी। तब से ही पिंटू मैदान में हैं और इस मजमें के जरिए जो दाद उन्हें मिली है, इससे चाचा जोशी का बही-खाता गड़बड़ाता दिख रहा है। फिर भी...ये कांग्रेस है। टी-20 खेलती है। आखिरी बॉल पर पता चलता है कि नतीजा क्या हुआ। 



मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है



कैलाश विजयवर्गीय और दिग्विजय सिंह की राजनीति को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। कभी-कभी तो दोनों एक दूसरे पर ऐसे फौजी आवेग से आक्रमण करते हैं कि लगता है दुश्मनी हो तो ऐसी। खुले आम। अगले ही दिन नजारा बदला-बदला सा दिखने लगता है। ताजा-ताजा राजनीति यह है कि टि्वटर पर एक-दूसरे के खिलाफ जमकर तीन-पांच करने वाले दोनों नेता गुरुवार को महावीर जयंती जुलूस में जब आमने-सामने हुए तो न केवल जमकर मिले, बल्कि ठहाके भी ऐसे लगाए कि जो कांग्रेसी टि्वटर वार से दिल लगाकर बैठ गए थे, इन ठहाकों के बाद दिल पकड़कर बैठ गए। आसपास वाले नेता फुसफुसाने लगे कौन सा रूप सही है, भैया..टि्वटर पर लड़ रहे थे, वो या ये...।  वैसा ही कुछ दिग्विजय और कमलनाथ के बीच हुआ। आंबेडकर की मूर्ति पर माला पहनाने पहुंचे दिग्विजय और नाथ का आमना-सामना हो गया। बाहर एक-दूसरे को छोटा भाई, बड़ा भाई बताने वाले दोनों नेता का भाईचारा माला के मौके पर बमुश्किल पांच मिनट चला, फिर दोनों अपनी-अपनी राह पर निकल गए। बात यहां भी वही हुई। बड़े-छोटे के रिश्ते वाली राजनीति सही है या...ये पांच मिनट में इधर-उधर वाली। 



साहबों का चिट्ठा, साहब के पास



भोपाल के रातीबड़ इलाके में अफसर और मंत्री जमीनें ऐसे खरीद रहे हैं, जैसे कहीं जीमने जाना हो। ये गए, वो गए, जमीन पसंद की, इधर पैसा दिया, उधर मालिक बन गए। मेंडोरा, मेंडोरी, बिशनखेड़ी, बिलाखेड़ी, बरखेड़ी कला और सूरज नगर को सरकार ने सस्ती श्रेणी में डाल रखा है। बस, यहीं से साहबों को राह दिखी अपने काले-पीले को सफेद करने की। लगे हैं जमीन खरीदने में। अब क्या बताएं। साहबों की ये खुशी दिल जलों से देखी नहीं जा रही है। अंदर की खबर यह है कि सारे साहबों के गारे-मिट्टी तक का हिसाब कुछ 'हरिरामों' ने बड़े साहब यानी पीएमओ तक रवाना कर दिया है। साहब तो कहते ही हैं, न खाऊंगा न खाने दूंगा । इंतजार करिए दिल्ली से चिट्ठी-पतरी आती ही होगी। अब यहां लाग-लपेट हो जाए तो बात और है, वरना 'हरिरामों' का पेपर वर्क तो इतना पुख्ता है कि कई नप जाएंगे। इंतजार करते हैं। 



बाबू ज्ञान से बोलती बंद



मैडम हैं तो ताजा-ताजा आईएएस पर ज्यादा वक्त मैदान में ही गुजारा है। अब बन गईं बड़े विभाग की बड़ी मैडम...कहें कि डिप्टी सेक्रेटरी। बैठक बंद कमरे की थी, लेकिन तेवर मैदानी ही दिखा रही थीं। कुछ दिन तो साथी अमला इंतजार करता रहा कि विभाग के मटके का ठंडा पानी पीते-पीते ठंडी हो जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दफ्तर की टेबल से लेकर फाइलों तक के मैकअप पर जब मैडम तमतमाने लगीं तो एक बाबू ने कान में फुसफुसाया...मैडमजी मैदान में रहकर आपने कितना ही मैदान मार लिया होगा, पर ये मंत्रालय है...। यहां तो पीएस भी बाबू बन जाते हैं। जैसा चल रहा है वैसा चलने दें। सुना है, बाबू ज्ञान के बाद मैडम ने हृदय परिवर्तन का मन बना लिया है। अभी नतीजे आना बाकी हैं, क्योंकि मामला ताजा-ताजा है। 



खेती वाले साहब को 'हल' दो



साहब हैं तो खेती किसानी वाले संस्थान में लेकिन अपना ट्रैक्टर कहीं भी घुसा देते हैं। इस बार दिल्ली की तरफ मोड़ दिया। पता नहीं कहां-कहां खाद-पानी देकर अपनी पोस्टिंग साउथ की एक दूध-मख्खन देती संस्था में करवा ली। अब किसानों से जुड़ी संस्थान वाले हैं तो दूध-मक्खन दुहना तो जानेंगे ही ना। खैर, पोस्टिंग तो करवा ली पर संस्थान से मुक्ति नहीं मिल रही है। सुना है कि एक बड़े साहब ने इनके ट्रैक्टर को लाल झंडी दिखा दी है। बड़े साहब की नाराजगी दूर हो जाए, हरी झंडी मिल जाए इसके लिए सारे घोड़े दौड़ा दिए, पर बात बन नहीं रही। खबर लिखे जाने तक किसानों की संस्थान वाले साहब का ट्रैक्टर आउटर पर खड़ा है। कोई इन्हें समस्या का 'हल' दिलाए और पुण्य कमाए।


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