कौन बजा रहा चैन की मुरली, दिग्गी के इंदौरी भिया, मंत्री जी की ‘भाईगिरी’

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Atul Tiwari
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कौन बजा रहा चैन की मुरली, दिग्गी के इंदौरी भिया, मंत्री जी की ‘भाईगिरी’

हरीश दिवेकर। लीजिए साहब, 2022 का दूसरा महीना भी बीतने की कगार पर है। कड़ाके की सर्दी, सुबह-शाम की ठंड में तब्दील हो गई है। 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, लेकिन धूम-धड़ाका लोकसभा चुनाव जैसा मचा है। असल में मामला यूपी से जुड़ा है। हिजाब चल ही रहा था, बीच में कुछ बयान भी आ गए। कविवर कुमार विश्वास ने अपने ‘पूर्व’ सखा अरविंद केजरीवाल को लेकर तीखी सी बात कह दी। चुनाव के दौरान पार्टियों को और क्या चाहिए, बखेड़ा हो गया। जवाब में केजरीवाल ने खुद को स्वीट आतंकी बता दिया। इधर, मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दो टूक कह दिया- संभल जाओ, नहीं तो सत्ता दूर की कौड़ी बन जाएगी। मध्य प्रदेश में भी कई खबरें आईं, कुछ पकीं तो कुछ पकने को हैं, आप तो सीधे अंदर उतर आइए।





सरकारी बंगला और पुलिस गार्ड: सत्ता जब अपनी हो तो भला कौन सुख भोगना नहीं चाहेगा। ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी सरकारी बंगला, पायलट वाहन और पुलिस सिक्योरिटी की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं, तो क्या गलत है। और फिर साहब ने बंगला भी विंध्य विधायक के नाम से लिया है। वो बात अलग है कि उनका नाम आते ही सरकार ने विधायक को चार इमली में दो दिन में बंगला अलॉट कर दिया। इं​टीरियर पर भी लाखों रुपए खर्च कर दिए। जलने वालों कोई काम-धाम तो है नहीं, बस दूसरों के यहां ताक झांक करते रहते हैं। अब देखो ना, कहते फिर रहे हैं कि अब तक जितने भी राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने मध्य प्रदेश का कामकाज देखा है, वो सरकारी सुविधाओं से दूर रहे हैं। ये ही संघ का चरित्र है। हमारी तो सलाह है कि जलने वाले तो जलते रहेंगे उन पर ध्यान नहीं दें। आप तो सरकारी बंगले में बैठकर चैन की मुरली बजाइए। आपको चैन में देखकर सूबे की मुखिया भी अमन-चैन में रहेंगे। 





दिग्गी से किसे खतरा: चुनाव के 2 साल पहले दिग्विजय सिंह की मैदानी सक्रियता ने प्रदेश की राजनीति में सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर दिग्गी किसके लिए खतरा बन रहे हैं, कांग्रेस या बीजेपी का। बहरहाल ये तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन बीजेपी नेता दिग्विजय के हर बयान को ट्रोल कर ये बताने का प्रयास कर रहे हैं कि कमलनाथ और दिग्विजय के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। बीजेपी के इस प्रचारतंत्र को दिग्गी विरोधी कांग्रेसी नेता भी हवा दे रहे हैं। वे नहीं चाहते कि दिग्विजय सक्रिय होकर उनकी राजनीति पर हावी हो जाएं। इधर, इन सबसे बेखबर दिग्विजय एक बार फिर मिशन 2023 पर निकल पड़े uwx। बीजेपी के हर दांव को उलटा करने के लिए दिग्विजय ने कमलनाथ को आगे रखकर उनके प्रचारतंत्र की हवा निकाली। लेकिन दिग्गी अपनी पार्टी के अंदर के विरोधी, जिसमें इंदौर के एक भिया भी हैं, इन्हें साधने में सफल नहीं हो पा रहे। 





भैया आपके कितने भाई: इंदौर जिले के एक मंत्रीजी को लेकर अफसर अजीब पसोपेश में हैं। भैयाजी हैं तो बीजेपी में, लेकिन मंत्रीगिरी करने का अंदाज कांग्रेस जैसा है। एक तो मंत्री जी इतने उदारमना हैं कि इधर किसी ने समस्या (काम) बताई, उधर मंत्रीजी शागिर्द को तुरंत हुकुम देते हैं...लगा तो जरा फलां अफसर को फोन। फोन लग भी जाता है और उठ भी जाता है। पर इधर से जो रिश्ते-नाते बताए जाते हैं, उससे अफसर उलझ जा रहे हैं। मंत्रीजी का तकिया कलाम है, फलां मेरे भाई हैं, इनका काम (समस्या) गंभीरता से करना है। हालत यह है कि मंत्रीजी हर फोन में भावुक भाईचारा झलकता है। शुरू में तो अफसर पीड़ितों को यह समझकर गंभीरता से लेते रहे कि कहीं सचमुच साहब का भाई न हो, क्योंकि उन्होंने कहा है- मेरे भाई हैं। धीरे-धीरे अफसरों को समझ में आने लगा कि मंत्रीजी के असली भाई तो दो-तीन ही हैं, बाकी कौरव सेना की तरह हर एक को भाई कहना उनकी शैली में है। उसके बाद से अफसर हां सर, जी सर तो कर देते हैं, लेकिन साथ में यह जरूर बुदबुदा देते हैं कि भैया आपके कितने भाई हैं। वैसे अंदर की खबर यह है कि अब अफसर भी हर भाई से भाईचारा नहीं निभा रहे। जहां कलम चल सकती है वहीं चला रहे हैं, बाकी को कह देते हैं- भाई, आपका काम विचाराधीन है, हो जाएगा। भाई को भाई ही तो कहेंगे ना।





पुराने कांग्रेसी, थोड़े पुराने भाजपाई: इंदौर बीजेपी के एक बड़े पदाधिकारी अपने पुराने दिनों को लेकर खासे परेशान हैं। भैया कभी कांग्रेस की युवा ब्रिगेड एनएसयूआई के झंडाबरदार थे। फिर मौसम को परखा और धीरे-धीरे भाजपाई होते चले गए। तेज-तर्रार थे, साथ में टीम भी ठीकठाक थी, सो बीजेपी के ही एक कद्दावर नेता की सेना में शामिल हो गए। वहां से जो शह मिली तो संगठन में ऊपर तक घुसते चले गए। अब तो बीजेपी का मुकुट पहने घूम रहे हैं, लेकिन एनएसयूआई बार-बार सामने आ खड़ी होती है। अभी नेताजी ने एक बंदे को कुर्सी बांटी। बंदा भी कभी एनएसयूआई का सैनिक था और नेताजी के साथ भाजपाई हो गया था। बस इसी से बवाल हो गया। नेताजी पर खांटी भाजपाई, अरे अपने पंडितजी, पिल पड़े। एक प्रदेश पदाधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि आप तो पूरी बीजेपी के पद अपने पुराने कांग्रेसी मित्रों को ही बांट दो। बात बाजार में भी आ गई। आग अभी ठंडी नहीं हुई थी, लेकिन पदाधिकारी महोदय को ये स्वज्ञान मिल गया कि जब शहर बीजेपी को आधे कांग्रेसी ही चला रहे हैं तो एक और सही। वैसे बता दें, ये मूल भाजपाई बरसों से पार्टी के लिए मेहनत कर रहे हैं, लेकिन जब भी किसी मनमाफिक कुर्सी का आदान-प्रदान होता है, इन्हें इंतजार में खड़े रहना पड़ता है, चाहे कुर्सी नगर अध्यक्ष की हो, इंदौर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष की हो या....अब या-या क्या। कितनी गिनाएं। हर बार तो रह जाते हैं, इसलिए कभी-कभी फूट पड़ते हैं। पंडितजी का इतना गुस्सा तो बनता भी है। क्या कहते हो।  





डीजीपी के लिए खींचतान: डीजीपी बनने के लिए ​दावेदार सीनियर आईपीएस अफसरों में खींचतान शुरू हो गई है। हालात ये हैं कि सीनियर आईपीएस अपने रास्ते साफ करने के लिए एक दूसरे को निपटाने में लग गए हैं। कोई किसी की पुरानी शिकायतें खोल रहा है तो कोई किसी के खिलाफ फर्जी शिकायत कर माहौल बना रहा है। इस खेल में कुछ रिटायर आईपीएस भी शामिल हैं। वे चाहते हैं कि उनके खेमे का अफसर ही डीजीपी बने। इसके चलते एक सीनियर आईपीएस के खिलाफ एक फर्जी पत्र जारी कर उनका चरित्र हनन किया जा रहा है। इधर, अफसर आपस में कुश्ती लड़ रहे हैं। उधर, सरकार में डीजीपी के पैनल की फाइल टेबल से हिलने का नाम नहीं ले रही। बहरहाल 4 मार्च के बाद कौन डीजीपी बनता है ये तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन उसके पहले दावेदार एक-दूसरे के दुश्मन जरूर बन जाएंगे।





चापलूस अफसर, ग्वालियर में राजपथ: बीजेपी के बड़े-बड़े नेता सामंतवाद के खिलाफ बोलकर सिंधिया घराने पर हमले बोलते आए हैं। कुछ नेताओं ने तो महल का विरोध कर अपना राजनैतिक कद तक बढ़ा लिया, लेकिन ज्योति बाबू के बीजेपी में आते ही अब इन्हीं नेताओं को सामंतवाद नजर नहीं आता। नेताओं की बोलती बंद देख अफसर भी कहां पीछे रहने वाले हैं। एक महिला आईएएस ने तो अपने नंबर बढ़ाने के लिए महल की ओर जाने वाले रास्ते का नामांकरण राजपथ कर दिया। इसके लिए ना तो किसी बड़े नेता ने कोई घोषणा की, ना ही सरकार ने कोई नोटिफिकेशन जारी किया। महिला आईएएस भी जानती हैं कि ज्योति बाबू इस अंचल के सुपर सीएम हैं। ऐसे में ना कोई दलील ना कोई अपील, इसलिए सड़क का नाम राजपथ​ करने का सीधा फैसला खुद ही ले लिया। स्थानीय बीजेपी नेता अंदर ही अंदर इस पर खफा हैं, लेकिन बोल नहीं सकते...। श्श्श्श... महाराज नाराज हो जाएंगे। 





प्रकट भए लापता आईएफएस: बीज घोटाले में फंसे लापता आईएफएस अचानक प्रकट हो गए। विभाग इनकी गुमशुदगी को लेकर विज्ञापन जारी करने की तैयारी कर ही रहा था कि साहब टपक पड़े। पूछा तो बताया बीमार था, विभाग अब मेडिकल बोर्ड से जांच करवाने की तैयारी में है। आला अफसर जानते हैं, ये खिलाड़ी है, मौका देखकर चौका मारने से नहीं चूकते। तत्कालीन कांग्रेस सरकार में इनका जलवा वर्तमान प्रशासनिक मुखिया भी देख चुके हैं। आईएफएस ने उस समय अपर मुख्य सचिव के पद पर पदस्थ रहे प्रशासनिक मुखिया को तत्कालीन मंत्री से मिलने के लिए घंटों इंतजार करवाया था। तब से इनकी अदावत चली आ रही है। बीजेपी सरकार आते ही प्रशासनिक मुखिया पॉवर में आ गए और कालीदुर्रई लापता। मामला बिगड़ते देख सामने आना पड़ा। बहरहाल देखना होगा कि क्या रिटायरमेंट से पहले मुखिया जी खिलाड़ी आईएफएस को ठिकाने लगा पाते हैं या नहीं।



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