हरीश दिवेकर। मध्य प्रदेश तो क्या, पूरे उत्तर भारत में हाड़कंपाने वाली ठंड पड़ रही है। ऐसी ठंड कि जेब से हाथ निकालने का मन नहीं कर रहा। लोग या तो घरों के अंदर घुसे हैं या आग तापते नजर आ रहे हैं। अब ठंड पड़ रही है तो क्या, मौसम में चुनावी गर्मी भी है। भले ही 5 राज्यों में चुनाव हो, चर्चा यूपी की ही है। बीजेपी से सपा में जाने वालों की दौड़ लगी है। उम्मीदवारों की लिस्टें भी धड़ाधड़ आ रही हैं। शिवराज ओलावृष्टि प्रभावित इलाकों का दौरा और घोषणाएं कर रहे हैं। अफसरों की खिंचाई भी हो रही है। इंदौर के कांग्रेस विधायक अपनी जड़ें मजबूत करने में लगे हैं। भैया, यूपी नहीं, एमपी में भी खबरें हैं वो भी अंदरखाने से। आप तो सीधे अंदर उतर आइए।
फकीरा फंड से दिए 50 हजार: मैदानी अफसर अपने नंबर बढ़ाने के लिए बाजीगरी करने से भी नहीं चूकते। ताजा उदाहरण अशोकनगर में देखने को मिला। मुख्यमंत्री ने फसल बर्बादी पर रोती हुई महिला को 50 हजार अनुदान देने के निर्देश दिए तो कलेक्टर साहब ने वाहवाही लूटने के लिए महिला को तुरंत 50 हजार का चैक दिलवा दिया। जिला प्रशासन के काम करने की स्पीड को देखकर जब स्थानीय खबरनवीसों को शक हुआ। महिला के घर जाकर तप्तीश की तो पता चला कि महिला को मुंगावली के पटवारी ने अपने निजी खाते से यह 50 हजार का चैक दिया है। मामला मीडिया में पहुंचा तो कलेक्टर सक्रिय हुए। महिला को आश्वासन दिया कि वो चुप रहें। अब तो रेड क्रॉस सोसाइटी से दूसरा चैक मिल भी गया। मामला सामने आया तो अब स्थानीय नेता और पत्रकार बोलने लगे कि गोलमाल है भाई सब गोलमाल है....दूसरी ओर पटवारी के निजी चैक ने एक बार फिर फकीरा फंड को चर्चा में ला दिया। आपको बता दें कि हर जिले में कलेक्टर्स के कहने पर पटवारी इस फकीरा फंड से बेगारी के काम करते हैं।
मामा के यहां क्यों नहीं टिक रहे पीआरओ: हमारे मामाजी तो बड़े सहज और सरल हैं, फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि उनके यहां कोई पीआरओ टिकने को तैयार नहीं हैं। पहले एक डिप्टी डायरेक्टर पंडितजी ने एक-दो दिन काम करने के बाद मना कर दिया। इसके बाद जॉइंट डायरेक्टर लालाजी को भेजा गया तो उन्होंने कुछ दिन काम करने के बाद बीमारी का बहाना करके अपनी ड्यूटी बदलवा ली। उनकी जगह दूसरे डिप्टी डायरेक्टर सेठजी को भेजा गया तो वे आए दिन पिताजी का स्वास्थ्य देखने उज्जैन जाने लगे तो उसके बाद उन्हें संचालनालय भेज दिया। फिर नंबर आया दूसरे डिप्टी डायरेक्टर को तो उन्होंने भी कुछ दिन काम करने के बाद बाकायदा लिखकर दे दिया कि उन्हें यहां से हटा दिया जाए। हालांकि, उनके आवेदन पर अब तक सुनवाई नहीं हुई है। अंदर खाने की बात है कि एक ओर डिप्टी डायरेक्टर भाऊ भी अपनी डयूटी बदलवाने के प्रयास में लगे हैं। इधर डायरेक्टेड के आला अफसरों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर किस अफसर को भेजा जाए जो वहां टिककर काम करे।
संघ की त्रिमूर्ति सत्ता मे हावी: संघ की सिफारिश पर सरकार में आए तीन पदाधिकारियों का सत्ता में खासा दबाव बना हुआ है। इन तीनों की जुगलबंदी को देखते हुए आला अफसर इन्हें राम, लक्ष्मण और भरत कहने लगे हैं। सरकार को सुशासन की राह दिखाने वाली संस्था में पदस्थ राम ने वेतन कम होने की बात कहकर एक साल से वेतन नहीं लिया। लक्ष्मण से यह देखा नहीं गया तो उन्होंने उठापटक कर राम का वेतन सवा लाख से बढ़वाकर डेढ़ लाख करवा दिया। इतना ही नहीं, संस्था से आईएएस को बाहर करने के लिए सीईओ का पद भी अशासकीय करवा लिया। उधर सरकार के टेक्नीकल काम करने वाली सोसाइटी में पदस्थ भरत ने भी कुछ ऐसे ही तेवर दिखाए, तो लक्ष्मण ने उनकी भी मदद की। भरत की पूरी सोसाइटी का स्ट्रक्चर बदलवाकर मंत्री को अध्यक्ष से उपाध्यक्ष बनवा दिया। नए स्ट्रक्चर में सीएम अध्यक्ष और भरत के पद का नाम एमडी करवाकर बोर्ड के मुखिया बनवा दिया। बोर्ड को अपनी सैलरी तय करने के अधिकार भी दिलवा दिए।
सपनों का आना-जाना: जिस दिन से देवास के रहने वाले जयपाल सिंह चावड़ा इंदौर विकास प्राधिकरण उर्फ आईडीए के अध्यक्ष बने हैं, तब से उस बिल्डिंग में सपनों का आना-जाना लगा हुआ है। पहले नीचे के अफसरों ने सपने देखे कि भैयाजी तो जीवनभर संघ में लगे रहे, उन्हें शहर की सड़कों, प्लॉटों, कॉलोनियों, योजनाओं से क्या लेना-देना। जैसा चाहेंगे शहर में घुमाफिरा कर दफ्तर में बैठा देंगे। सपने ध्वस्त हुए। भैया ने भाजपा नेता मधु वर्मा को याद कर लिया। ये वो ही वर्मा हैं जो बरसों तक आईडीए की कुर्सी पर रहे और नक्शे में खिंची लकीर देखकर बता देते हैं कि सड़क कहां से किस गणित में बनाई जा रही है। अब भैया पूरे समय मधु वर्मा को साथ रखते हैं और ज्ञान लेते रहते हैं। सपने मधु भैया को भी आ रहे हैं कि चलो इसी बहाने संघ और संगठन के और करीब आने का मौका मिल रहा है। अब भैया से जुड़े उन सपने बाजों का क्या करें जिन्हें ये लगने लगा है कि भैया को आईडीए समझ आ रहा है और जल्दी ही हम लोग किसी न किसी ‘जमीन’ से ‘जुड़’ जाएंगे। सपने देखने के लिए पेट्रोल थोड़े ही डलाना पड़ता है। देखने दो।
संजय दृष्टि से भौंचक: इंदौर के कांग्रेस विधायक हैं संजय शुक्ला। चुनाव जीते तब लोगों ने कहा था- संजय नहीं जीते, बीजेपी के सुदर्शन गुप्ता हारे हैं, क्योंकि उनके प्रति नाराजगी ज्यादा थी। अगले चुनाव में संजय फिर घर होंगे, लेकिन चुनाव जीतने के बाद संजय ने जिस तरह से दूरदृष्टि और पक्का इरादा दिखाया है, उससे लग रहा है कि वो एक नंबर विधानसभा को कांग्रेस के लिए एक नंबर बना रहे हैं। 3 साल में शायद ही कोई वर्ग या वोटर होगा, जहां संजय नहीं पहुंचे हों। इंदौर की राजनीति वैसे भी भोजन भंडारे, यात्रा, तोहफे के लिए विख्यात है, संजय ने ये सारे काम सिरे थाम लिए हैं। वोटर के जन्मदिन तक पर मिठाई और कार्ड घर पहुंच रहे हैं। पूरी विधानसभा के एक-एक बंदे का नाम, नंबर, जन्मदिन, पते समेत सब स्क्रीन पर लिया जा रहा है। जनसंपर्क के लिए चुनाव का रास्ता देखे बगैर रोज ही खुशी, गम, उत्सव किसी भी बहाने किसी भी घर, परिवार, मोहल्ले, कॉलोनी में संजू बाबा प्रकट हो जाते हैं। और हां, तोहफे, खाना-खिलाने समेत। कौन नाराज रहेगा। क्यों रहेगा।
अकेले पड़े मंत्रीजी: कांग्रेस से बीजेपी में आए एक मंत्री इन दिनों खासे परेशान हैं। कांग्रेस राज में जिस तरह से मंत्रीजी अफसरों पर लगाम लगाते थे, अब बीजेपी राज में अफसर उन्हीं की बात बैठक में काट देते हैं। हाल ही में सीएम की बैठक में मंत्री ने प्रस्ताव रखा कि कृषि भूमि का डायवर्जन करने के नियम सरल किए जाएं। मंत्रीजी का कहना था कि लोग परेशान हो रहे हैं। सीएम कुछ बोलते, उससे पहले ही चीफ सेक्रेटरी ने कहा कि हमने जानबूझकर नियम सख्त रखे हैं। नियम सरल कर देंगे तो शहरों का अनियंत्रित विकास हो जाएगा। मंत्रीजी को ये जवाब अच्छा नहीं लगा उन्होंने बड़ी उम्मीद से सीएम की तरफ देखा, लेकिन सीएम ने भी चीफ सेक्रेटरी के सुर में सुर मिलाए तो मंत्री का मुंह लटक गया।
ग्रहों को साधने में लगे असरदार मंत्री: कांग्रेस से बीजेपी में आए असरदार मंत्री इन दिनों अपने ग्रह नक्षत्रों को साधने में लगे हैं। इसके फेर में तंत्र-मंत्र करवाने के लिए प्रदेश के बड़े पंडितों से लेकर राजस्थान के तांत्रिकों तक के संपर्क में बने हुए हैं। मंत्री के पास प्रदेश की आबो-हवा सुधारने वाला विभाग है, लेकिन फिलहाल मंत्री की किसी भी स्तर पर सुनवाई ना होने से उनकी खुद की आबो हवा बिगड़ी हुई है। बताया जा रहा है कि अभी मंत्री जी राजस्थान के किसी तांत्रिक के यहां डेरा डाले हुए हैं। हम आपकी सुविधा के लिए बता दें कि उनका गृह नगर से राजस्थान बॉर्डर पास पड़ता है।
प्रमुख सचिव का रायसेन दौरा: एक छोटे से विभाग के प्रमुख सचिव के रायसेन दौरे चर्चा में हैं। दरअसल, साहब महीने में दो तीन बार सरकारी दौरे के नाम पर रायसेन जाते हैं। मजेदार बात यह है कि रायसेन कलेक्टर को भी प्रमुख सचिव के दौरे की जानकारी नहीं रहती। साहब के महकमे सहायक संचालक सारी व्यवस्था करते हैं। हाल ही में रायसेन दौरे पर जिले के अधिकारी ने साहब का एक फोटो वायरल कर दिया, जिसमें वे महिला डिप्टी सेक्रेटरी के साथ खड़े हैं। जानकारी के लिए बता दें कि रायसेन के सहायक संचालक भी कोई आम अधिकारी नहीं है वे मुख्यालय में पदस्थ रह चुके हैं। राजधानी में हुए मूक-बधिर यौन शोषण मामले से भी उनके तार जुड़ चुके हैं।