BHOPAL: दिन फिर गए तो बंगला सुख तो मिलता रहे, ‘निधियों’ से परेशान नेताजी, वोटिंग नहीं करने वाले साहेबान, हो पाएगी मैडम की हैट्रिक

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BHOPAL: दिन फिर गए तो बंगला सुख तो मिलता रहे, ‘निधियों’ से परेशान नेताजी, वोटिंग नहीं करने वाले साहेबान, हो पाएगी मैडम की हैट्रिक

हरीश दिवेकर। सावन झूम के आ चुका है। देश के कई हिस्से पानी-पानी हैं। कई जगहें अब बारिश को तरस रही हैं। सब बादलों का खेल है। कहां बरसा दें, कहां ना बरसें, कोई भरोसा नहीं। मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव हो चुके हैं। नतीजे भी आना शुरू हो गए हैं। दिल्ली, पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी (आप) ने MP में एंट्री कर ली है। सिंगरौली में आप की मेयर उम्मीदवार रानी अग्रवाल जीत गई हैं। रानी की ये कहानी दूर तलक जाने वाली है। इस हफ्ते देश को नया राष्ट्रपति भी मिलने वाला है। कल पीएम एक सभा में अरविंद केजरीवाल का नाम लिए बिना कह गए कि कुछ लोग रेवड़ियां बांट रहे हैं। केजरीवाल कहां रुकते, उन्होंने कहा कि मुफ्त शिक्षा और लोगों का अच्छा इलाज क्या गलत है? क्या ये रेवड़ी बांटना है? ये तो 75 साल पहले हो जाना था। यानी केजरीवाल ने मोदी के सामने खम ठोक दी है। इधर, मध्य प्रदेश में अंदरखाने कई खबरें पकीं, आप तो सीधे अंदर चले आइए... 



पड़ोसी बंगले में एनेक्सी की चाहत



भोपाल में एक न्यारा बंगला होता है। कभी इसमें प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह रहते थे। वे स्वर्गवासी हुए तो कई 'इच्छाधारियों' की नजर इस पर अटक गई। हम लें, हम लें की ऐसी लहर चली कि आखिर सभी को प्यार से समझा दिया गया कि वो बंगला खतरे से खाली नहीं है। काम मांग रहा है। अंदरखाने से खबर आ रही है कि सूबे के मुखिया जी का दिल इस बंगले को अपनी एनेक्सी बनाने का है। पंद्रह बरस के सत्तासुख के बाद जब मुखियाजी बे-सुख हुए थे, तब उन्होंने इसी बंगले से सटे बंगले में शरण ली थी। बड़े बंगले से छोटे में आए तो बहुत छोटा लगने लगा। तब इसे फैलाया भी, लेकिन दिल को भाया नहीं। इसी बीच विधायक इधर-उधर हुए तो सरकार भी इधर-होकर मामाजी की तरफ आ गई। अब वे समय रहते अपने पुराने बंगले को थोड़ा और फैलाना चाहते हैं। सही भी है, कभी दोबारा वहां जाने की नौबत आ गई तो...।



आईना वही रहता है, चेहरे बदल जाते हैं



बड़े साहब का आईना भी बड़ा होता है। इतना बड़ा कि कोई कितना भी इधर-उधर हो जाए, चेहरा छुपा नहीं सकता। सीएम हाऊस में ताजा-ताजा बैठक हुई। सेहत को लेकर हुई इस बैठक के बाद बड़े साहब यानी सीएस अपने एसीएस के सामने आईना लेकर प्रकट हो गए। सीधे-सीधे नहीं, इशारों-इशारों में। देखिए इसमें। झांकिए जरा...। साहब  को सिर्फ धन-लक्ष्मी से मतलब होता है। मुझे बजट दो...मुझे बजट दो...। बजट लेकर साहब मुंह बांध लेते हैं और पूरा विभाग एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी चला रही है। कोई जानकारी मांगों तो वो उधर ही फोन लगाते हैं जो विभाग चला रहे हैं। काम क्या किया, ये साहब के विभाग के बजाय अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के सलाहकार बताते हैं। एसीएस यह तो समझ गए कि बड़े साहब का तीर उन पर चल रहा है, लेकिन यह नहीं समझ पा रहे हैं कि सीएस साहब की गुड बुक में होने के बाद भी उन पर तीर क्यों चले। आप समझ गए हों तो छोटे साहब को बताएं और पुण्य कमाएं। ये साहब लोगों की तीर-तुक्कों पर हम तो चुप ही रहेंगे। 



नाम में सब रक्खा है



नाम में क्या रक्खा है, ऐसा कहने वाले अपने विचार पर पुनर्विचार करें। कम से कम मामा राज में तो नाम-पता जानकर ही इधर-उधर जाएं। गूगल के भरोसे न रहें। मामला हम बताते हैं। एक निधि निवेदिता मैम होती हैं। जी....जी...सही पकड़े हैं। कभी राजगढ़ की कलेक्टर रहीं हैं वोइच्च। वहां रहते हुए एक आंदोलन में अपना हाथ ऐसा हवा में लहराया था कि सीधे एक भाजपाई के गाल पर जा टिका था। खूब बवाल हुआ था रे बाबा। मैम की रवानगी भी हो गई थी। अब नई निधि प्रकट हुई हैं। ये उज्जैन जिले के बड़नगर तहसील की एसडीएम हैं। निधि सिंह नाम है। राशि वृश्चिक और नाम के पीछे सिंह। डबल धमाल। सामने आ गए शांति (लाल) नाम के पुराने विधायक। हां-हां, ये भी बीजेपी से ही रहे हैं। बारिश का पानी भरने, निकालने को लेकर बुलडोजर के किनारे जमकर तू-तू-मैं-मैं हो गई। सड़क का पानी उतरा कि नहीं पता नहीं पर पुराने विधायक जी का पानी जरूर मैम ने उतार दिया। अभी सोशल मीडिया पर नेताजी की फजीहत जारी है। कहने वाले कह रहे हैं, शांति के मामले में सरकार चुनाव के कारण सरकार शांत है।



ब्यूरोक्रेटस का घर बैठे का नोटा...



अरे, नोट नहीं भाई... नोटा लिखा है। आप भी ना...साहब लोगों का जिक्र आते ही सीधे नोट-नोट करने लगते हो। ये नोटा है रे... बाबा जो साहब लोगों ने चुनाव में घर बैठे ही ठोंक दिया। ना-ना..चुनावी धांधली ना...। हुआ यूं कि अभी जो नगर सरकार के चुनाव हुए ना, उसमें भोपाल के चार इमली इलाके में शांति बनी रही। ये वो इलाका है, जहां मामा सरकार के अधिकांश आईएएस-आईपीएस अफसरों का आशियाना है। साहेबान लोग वोट डालने घर से निकले ही नहीं। "न तेरे कू वोट देना, न उसकू...।"  बोले तो वोट डालने न जाना भी एक तरह का नोटा ही हुआ ना। साहेबानों ने यही किया। चार इमली बूथों के आंकड़े यही कह रहे हैं। अब आप हिसाब-किताब लगाइए, इस घरेलू नोटा का। क्या साहेबान सरकार से नाराज हैं। अगर हैं तो जाकर पंजा-पंजा कर आते। नहीं हैं तो कमल-कमल करते। कुछ नहीं किए। पूरे सूबे को मतदान के लिए ज्ञान बांटने वाले खुद अपने ज्ञान से वंचित रह गए। 



मैडम की हैट्रिक पर विरोधियों की नजर



कह तो दिए थे कि जिस नेता के यहां रिजल्ट अच्छा नहीं आएगा, अगले चुनाव में उसे राम-राम कर देंगे। यहां तो राम-राम करके राजनीति करने वाले का रिजल्ट बिगड़ गया। संगठन और मामा की आंख का तारा मंत्री ऊषा ठाकुर की महू विधानसभा में जिला पंचायत में पार्टी राम-राम करके दो सीट जीत पाई। तीन कांग्रेस ले उड़ी। पिछली बार पांचों बीजेपी के पास थीं। जनपद और सरपंचों में भी मामला ऐसा नहीं है कि भोपाल संतुष्ट हो जाए। अब क्या कहें। अगले विधानसभा टिकट में पार्टी मैडम को राम-राम कहेगी क्या? ये हम नहीं कह रहे। हमें का लीजो-दीजो। ये तो वो कह रहे हैं जिन्हें पार्टी ने टिकट और जीत की कसौटी पर कस रखा है। वैसे भी मैडम का रिकॉर्ड है, एक विधानसभा से एक ही बार लड़ती हैं। दो बार पार्टी उन्हें पुरानी विधानसभा से रुखसत चुकी है। एक बार टिकट काट दिया, दूसरी बार क्षेत्र

बदल दिया। विरोधियों को हैट्रिक का इंतजार है।



चुनावी साल है, कसरत करिए...



साहब बिजली कंपनी में अफसर हैं। पर मन नहीं लग रहा । बत्ती गुल सी है। हफ्ते में एकाध दिन ही ऑफिस जाते हैं, बाकी दिन घर पर रहकर ही सेहत बना रहे हैं। सोशल मीडिया पर कसरती फोटो डालते रहते हैं और बिजली कंपनी का कामकाज वीडियो कॉन्फ्रेंस से चला रहे हैं। ऐसा क्यों कर रहे हैं, इस पर जासूसों की नजर है। वैसे साहब दूध के जले हैं, इसलिए शायद कोल्ड ड्रिंक भी फूंक-फूंककर पी रहे हैं। पहले ग्वालियर में थे। वहां खूब तेरी-मेरी के चर्चे हुए तो उठाकर निमाड़ जिले में भेज दिए गए, लेकिन यहां की नेतागिरी को संभाल नहीं पाए। जिंदाबाद-मुर्दाबाद में ऐसे उलझे कि सरकार को उन्हें वहां से भी रवाना करना पड़ा। शायद इसलिए बिजली कंपनी को दबे-छुपे ही चला रहे हैं। कितने दिन कर पाते हैं देखना पड़ेगा, क्योंकि चुनावी साल है और बिजली विभाग सरकार की नाक का सवाल होता है। सबको याद है कि दिग्विजय सिंह सरकार को दर-बदर करने में बिजली गुल का भी हाथ था। ये तो चुनावी साल है। साहब, थोड़ी कसरत विभाग में भी कर लो...फिर ना कहना बताया नहीं....।


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