BHOPAL: ‘हवाई’ महाराज को दिखाया आईना, मंत्री जी! लिफाफा संभल के खोलियो, कथा के सहारे स्वयंभू नेताजी, बंधुओं का अभद्र आलाप

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BHOPAL: ‘हवाई’ महाराज को दिखाया आईना, मंत्री जी! लिफाफा संभल के खोलियो, कथा के सहारे स्वयंभू नेताजी, बंधुओं का अभद्र आलाप

हरीश दिवेकर। अगस्त का महीना मुहाने पर खड़ा है। अगस्त यानी त्योहारों की शुरुआत का महीना। नागपंचमी, रक्षाबंधन, पंद्रह अगस्त, जन्माष्टमी, हरितालिका तीज, गणेशोत्सव। अब त्योहार आएंगे तो कस के मनाए भी जाएंगे। खैर... इस समय देश में बंगाल के दो नामों की धूम है- पार्थ चटर्जी और अर्पिता मुखर्जी। इस ‘मधुर’ गठबंधन ने पैसों के पहाड़ के तले दुनिया को दबा दिया है। फिलहाल दोनों सींकचों के पीछे हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल साहब बोल गए कि मुंबई से राजस्थानी-गुजराती हटा लो तो पैसा खत्म। इस पर बवाल हो गया। मुख्यमंत्री पद जाने से खार खाए उद्धव ठाकरे ने तो उन्हें जेल भेजने की मांग कर डाली। इधर, मध्य प्रदेश में जिला पंचायत चुनाव में खासी खींचतान देखने को मिली। इसके इतर भी कई खबरें देक पर पकीं और उनकी खुशबू फैली, आप तो चटखारे लेने के लिए सीधे अंदर उतर आइए...





हवाई मंत्रालय में सड़क की बातें 





महाराज का वो बयान तो याद है ना आपको...मेरी बात नहीं सुनी गई तो जनता के लिए सड़क पर उतर जाऊंगा। फिर सड़क पर ऐसे उतरे कि कमलनाथ की सरकार को ही सड़क पर ले आए। सड़क के आदमी हैं, सड़क पर नजर रखते हैं। पर कभी-कभी इस नजर को नजर लग जाती है। अब देखो ना, हैदरादबाद गए तो वहां कहीं सड़क पर पानी, गड्ढा दिख गया। आ गए फेसबुक पर और चेप दिए हैदराबाद की सड़क की फोटो। साथ में सरकार को लताड़ भी दिए। उम्मीद थी, जवाब में हां, महाराज...बहुत खूब महाराज...सही कहा महाराज पढ़ने को मिलेगा, लेकिन हुआ उल्टा। पूरी फेसबुक वॉल ही सड़क पर ला दी। किसी ने खुद के क्षेत्र की सड़क दिखा दी तो किसी ने मामा की अमेरिका वाली सड़क। हालत यह हो गई कि महाराज के चाहने वाले भी चुप्पी साध गए। महाराज भी क्या करें..कहने को हवाई मंत्रालय लिए हैं, पर वहां सब हवा में उड़ गया। एक सरकारी एयरलाइंस थी, वो भी ‘टा टा’ कर गई, इसलिए सड़क की राजनीति करने लगे। उन्हें लगा होगा कि पिछली बार सड़क की बात करने पर उद्धार हो गया था, सरकार मिल गई थी, इस बार भी कुछ ना कुछ तो मिल ही जाएगा। क्या मिला यह जानने के लिए महाराज की फेसबुक वॉल पर जाइए और सड़क यात्रा का आनंद लीजिए।





आखिर खुल ही गई चेहरों की लड़ाई



 



दो साल से एक रथ के दो पहियों के रूप में गांव से मोहल्ले तक बूथ मजबूत करने में जुटे संगठन और सरकार के बीच अंदर ही अंदर मचा खिंचाव भोपाल सहित कई जिलों में सामने आ ही गया। जब अचानक चेहरे बदल गए और मोर्चा ऐसे लोगों ने संभाल लिया, जो आमतौर पर अपने विधानसभा क्षेत्र तक ही सीमित रखे जाते थे। यहां तक तो ठीक था कि खींचने और पटकने के महारथी बनकर नई टीम और नए चेहरों ने मोर्चा संभाल लिया, लेकिन कार्यकर्ता उन नेताओं को ढूंढते रह गए जो जिले के पर्याय माने जाने लगे थे। सारी गतिविधियां उनके इर्द-गिर्द ही घूमा करती थीं। ढूंढने पर इन लोगों की लोकेशन घर में, वह भी कोप-भवन में मिली। अब लोग इस पूरे मामले की तह तक पहुंचने में जुट गए हैं कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि - भाई साहब - की टीम को अचानक दूर कर पिक्चर के सारे किरदार ही बदल दिए गए। क्या जिले की टीम काबिल नहीं थी? कुर्सी की खींचतान में मोर्चा संभालने वाले सारे चेहरे भाई साहब की बजाए साहब के कोटे के बताए जा रहे हैं। अचानक बदली पिक्चर के इन चेहरों को देख कर पार्टी के देव दुर्लभ कार्यकर्ता अब सूबे की नई संभावित तस्वीर का स्कैच खींचने में भी जुट गए हैं।





काली कमाई के लिए काला जादू....भुड़म-भड़म





मोटर गाड़ी वाले मंत्रालय में मुद्रा छपाई खूब होती है, यह तो सब को पता है। हर अफसर, नेता चाहता है कि गाड़ी वाले इस विभाग की गाड़ी पर सवार हो जाएं भले ही कोई जादू ही क्यों ना करना पड़े। ऐसा ही कोई जादू किसी जादूगर ने विभाग के मंत्रीजी के पीए के साथ कर दिया। पीए साहब के घर एक लिफाफा पहुंचा। साहब ने गुप्त दान समझकर लिफाफा खुशी-खुशी कुबूल कर लिया। बात तो तब बिगड़ी, जब लिफाफा खोला। मुद्रा के बजाए लिफाफे में निकली काली गुड़िया, नीबू और ओम भुड़म..भड़म..जैसा कुछ काले जादू का तंत्र-मंत्र। सकते में आए पीए साहब तुरंत समझ गए कि अपने काले-पीले में घुसपैठ करने के लिए किसी ने काला जादू किया है। काले धन से पूजा-पाठ करवाकर इस काले जादू को बेअसर करने की कोशिश तो पीए साहब ने कर ली है, साथ में उस कलाबाज की तलाश भी शुरू कर दी है, जिसने भुड़म-भड़म किया है। 





कमल के खिलाफ नाथ की नई राजनीति





कमलनाथ अपनी बनी सरकार बिगड़ जाने के बाद से सारी बिगड़ी हुई बातों को फिर बनाने में लगे हैं। इसके लिए वे कांग्रेस को परंपरागत पट्ठा संस्कृति से भी मुक्त कर रहे हैं। कम से कम ताजा फैसले से तो ऐसा ही लग रहा है। अनजान विधायक सुनील सर्राफ को विधानसभा में सचेतक बना दिया। सुनील का नाम सुनकर पट्ठावादी तत्व सन्न रह गए। कहीं सूची में ही नहीं थे और सीधे सूची में आ गए, वो भी तब, जब इस कुर्सी के लिए नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह की सूची में अपनों और कमलनाथ के पट्ठों के नाम थे। सर्राफ के सामने सब साफ हो गए। अंदर की कहानी यह है कि नाथ साहब अनूपपूर क्षेत्र में बिसाहू लाल सिंह के सामने नया नेता पैदा करना चाहते है। ठीक वैसे ही जैसे ग्वालियर की प्रयोगशाला में सतीश सिकरवार को पैदा कर बीजेपी की सेहत बिगाड़ रखी है। नाथ भूले नहीं हैं कि चलती सरकार ग्वालियर चंबल-संभाग ने ही बेपटरी की थी..यहीं से सब पटरी पर लाना है। सॉरी पट्ठाजनों..थोड़ा तो त्याग करना पड़ेगा।





कथा के भरोसे नेताजी





जीतू उर्फ जीतेंद्र पटवारी कांग्रेस के पुराने मंत्री हैं, स्वयं-भू तेज-तर्रार विधायक हैं और दिल से प्रदेश के पूर्णकालिक अध्यक्ष या मुख्यमंत्री भी बने हुए हैं। इंदौर की राऊ विधानसभा से दो चुनाव जीते और एक हारे हैं, पर अभी मामला गड़बड़ है। इस बार शुभ संदेश नहीं है। मेयर चुनाव में संजय शुक्ला को यहां तीस हजार की पछाड़ खानी पड़ी। सोचो, जो विधानसभा ही डेढ़-दो लाख की हो, जहां वोट ही लाख-सवा लाख डले हों, वहां तीस हजार से लुढ़क जाओ तो खड़े होने में जान तो लगानी पड़ेगी ना। नेताजी ने संजू की हार से सवा साल आगे विधानसभा चुनाव की इबारत पढ़ ली है और लग गए हैं काम पर। हवा से जमीन पर आ गए हैं। पहले चरण में राऊ विधानसभा में पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा हो रही है। हफ्तेभर चलेगी। उसके बाद हमेशा की तरह गरबा तो होगा ही..। गणेश जी, लक्ष्मीजी, रामजी, नागजी और कृष्णजी के त्योहार भी आ ही रहे हैं चुनाव से पहले। देखते हैं कितने जी को जी से लगाकर अपनी जीत के लिए जी जान लगाते हैं जीतू। ठीक ही तो है, पिछला चुनाव किनारे पर जीते थे, दूध के जले हैं, इसलिए कोल्ड ड्रिंक भी फूंक-फूंक कर पी रहे हैं।





सकते में हैं संजय शुक्ला





इंदौर में कांग्रेस से मेयर का चुनाव पूरी धूमधाम से लड़कर और उतनी ही धूमधाम से हारने के बाद संजय शुक्ला सकते में हैं। सवा लाख से ज्यादा की हार से नहीं, बल्कि अपनी मिल्कियत वाली विधानसभा नंबर एक से बीस हजार से हारने के कारण। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि जिस विधानसभा को चार साल से बेटे की तरह संभाल रहा हूं, वहां से बेदखल कैसे हो गया। बताने वालों ने उन्हें बताया नहीं, लेकिन हम बताएं देते हैं, पिछला चुनाव संजय नहीं जीते थे, बल्कि सुदर्शन गुप्ता हारे थे। उनके अहंकार, बड़बोलेपन, रुखे व्यवहार ने संजू की राह आसान कर दी थी। मेयर चुनाव में कहानी उलट हो गई। संजू आधे झुके तो पुष्यमित्र पुष्प की तरह पूरे ही झुक गए। नतीजा सामने है। सुना है कि संजू ने एक नंबर के अलावा तीन नंबर विधानसभा में भी मेहनत, कथा-कविता करवाने का मन बनाया है। तीन नंबर को कांग्रेस आसान सीट समझती है। अश्विन जोशी यहां से हैट्रिक बना चुके हैं, महेश जोशी भी जीत चुके हैं। संजू के भाई राजेंद्र शुक्ला बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर हार चुके हैं। कांग्रेस का गढ़ होने का इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए उन्हें। कथा-पुराण तो करवा ही दो...जो होगा देखेंगे।





बंधुओं से पीड़ित परदेसी





ध्रुपद गायन वाले गुंदेचा बंधुओं पर गंदी हरकतों के आरोप लगे हैं। आरोप विदेशी महिलाओं ने लगाए हैं। केस भी दर्ज हो गया है। दोनों बंधुओं के सुर-ताल से प्रभावित होकर सरकारों ने उन्हें पद्मश्री से लेकर कई पुरस्कार दिए थे। जब से बंधुओं के खिलाफ परदेसी महिलाओं ने सुर छेड़ा है, तब से बंधुओं के खिलाफ सुर उठने लगे हैं। मामला भले ही विचाराधीन हो, लेकिन कहा जाने लगा है कि बंधु पुरस्कार के काबिल नहीं है, इनसे वापस लिए जाएं। अभी नजर सरकार पर है, सरकार ने सुर नहीं छेड़ा तो कोर्ट-कचहरी करने की तैयारी चल रही है।



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