विधायक जी की तेज चाल, भौजी को हराऊं या बीजेपी को जिताऊं, बड़े साहब का ‘याराना’

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The Sootr CG
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विधायक जी की तेज चाल, भौजी को हराऊं या बीजेपी को जिताऊं, बड़े साहब का ‘याराना’

हरीश दिवेकर. मई बीत गया, नौतपा चला गया, लेकिन ताबड़तोड़ गर्मी बदस्तूर जारी है। मौसम विभाग और बादल एक-दूसरे से अठखेलियां खेल रहे हैं। मौसम की तपिश सियासी गलियारों में भी दिखाई दी। पिछले हफ्ते बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मध्य प्रदेश दौरे पर थे। राजधानी भोपाल आए, अपनी ससुराल जबलपुर भी गए। हर नेता ने उनसे अपनी बात रखी। कार्यकर्ताओं में तो धक्कामुक्की तक हो गई। एक कद्दावर नेता तो उन्हें समोसे खिलाते दिखे। मप्र में राज्यसभा चुनाव बिना किसी उठापटक के संपन्न हो गया। बीजेपी के 2 और कांग्रेस का एक कैंडिडेट निर्विरोध उच्च सदन के लिए चुन लिया गया। वहीं, संघ प्रमुख मोहन भागवत ज्ञानवापी पर बड़ी बात कह गए कि हर मस्जिद में शिवलिंग ना देखें। हम राम मंदिर के लिए आंदोलन कर चुके हैं, अब और आंदोलन नहीं करना। इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। इन सबके इतर कई और खबरें भी पकीं। पढ़ने के लिए आप तो सीधे अंदर चले आइए। 





खुद के पिंजरे में 'शेर'





इक विधायक जी होते हैं भोपाल के। मैदान में क्या करते हैं पता नहीं, लेकिन जुबान से कई बार इतना कुछ कर जाते हैं कि खबर दिल्ली तक दौड़ जाती है। शुरू में तो भैया की जुबानी जुमलेबाजी चल गई, लेकिन धीरे-धीरे खबर फैल गई कि भैया खुद पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के लिए ऐसा-वैसा करते रहते हैं, पर इस बार वैसा नहीं कर पाए, जैसा चाह रहे थे। पिछली बार दिल्ली के दो नंबर बॉस को दिल में उतारने के चक्कर में पूरे भोपाल में ‘शेर आया-शेर आया’ के होर्डिंग लगा दिए थे। लगा था शेर खुश हो जाएगा, लेकिन हुआ उल्टा। भोपाली रिंग मास्टरों ने ही ऐसी चाबुक चलाई कि विधायक जी के होर्डिंग लटके कम, अटके ज्यादा। सुना था जख्मी शेर ज्यादा खूंखार हो जाता है, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भोपाल आए तो ये 'शर्मा'-शरमी में ही सही, शेर शांत रहा। कहने वाले कह रहे हैं, चुनाव सामने हैं, पिंजरे में ही रहें तो ठीक है, ज्यादा पंजा चलाया तो न कमल के रहेंगे न पंजे के। 





भाभी तेरा भैया बेगाना





इक तरफ भाभी-भैया दूसरी तरफ बीजेपी। इधर जाऊं कि उधर जाऊं। सागर के बीजेपी विधायक शैलेंद्र जैन सन्नाटे में हैं। सन्नाटा कांग्रेस ने फैलाया है। शैलेंद्र भैया की भाभी को सागर से मेयर का टिकट देने की सुरसुरी चला दी है कांग्रेस ने। अब भैया को समझ नहीं आ रहा है कि भाभी को हराऊं या बीजेपी को जिताऊं। भाभी के साहब जी यानी शैलेंद्र भैया के भाई जी कांग्रेस विधायक रह चुके हैं, उसी कोटे में पंजा का टिकट भौजी को मिल रहा है। सुना है अलग-अलग दलों में होने के बाद भी दोनों भाइयों में खूब प्यार-मोहब्बत है। इसी प्यार का इम्तिहान ले रही है राजनीति। देखते हैं, भैया पार्टी से बेगाने होते हैं या परिवार से।





बुड्डा होगा तेरा....





एसीएस साहब रिटायरमेंट के करीब हैं। इस समय एक बड़े विभाग की कुर्सी पर विराजमान हैं। वे तो कुर्सी पर हैं, लेकिन उनका दिल जो है ना वो कमबख्त इधर-उधर भटक रहा है। अभी एक मोहतरमा पर अटक गया है। वे भी अफसरी कर रही हैं और साहब उनकी अफसरी  का खूब ख्याल रख रहे हैं। वैसे साहब का अभी तक का नौकरी का खाता-पन्ना साफ-सुथरा रहा है, लेकिन इस बार मायाजाल से बच नहीं पाए। उनके ख्याल की खबरें सचिवालय की दीवारों से टकरा-टकराकर कानों से भी टकरा रही हैं। अब पता नहीं ये खबरें अपने आप ऊपर गईं या मैडम के उज्ज्वल भविष्य की कामना रखने वाले किसी हरिराम ने पहुंचा दीं, हुआ यूं कि इधर एसीएस साहब छुट्टी पर गए उधर मोहतरमा से वो सारे अधिकार ऊपर वालों ने वापस ले लिए, जो शुभ-लाभ का कारण बने हुए थे। कहा गया है कि आपका आर्थिक चाल-चलन ठीक नहीं है। एसीएस साहब छुट्टी से लौट आए हैं और मिशन मैडम पर लग गए हैं, उन्हें पूर्वावस्था में लाने के लिए शुभकामनाएं। दिल से।





साहब की कुंडली में महिला दोष 





जी, कुंडली में केवल कालसर्प दोष ही नहीं होता, अफसरी करो तो कभी-कभी महिला दोष भी हो जाता है। एक युवा अफसर उर्फ कविराज इन दिनों इसी महिला दोष निवारण के लिए यहां-वहां भटक रहे हैं। दोष भी एक-दो नहीं पूरी चौकड़ी फैली है साहब की कुंडली में। चार-चार महिला अफसरों ने अलग-अलग विभागों में साहब की कुंडली (फाइलें) खोल रखी हैं। ये वो विभाग हैं जहां साहब कालांतर में कभी विराजित रहे हैं। चारों महिला अफसर सीनियर हैं और साहब नए-नए हैं। अब 4-4 महिला अफसरों ने कुंडली खोली है तो कुछ तो बात होगी। आखिर यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। पता करिए। कोई न कोई हरिराम मिल ही जाएगा माजरा बताने के लिए। 





नींद उड़ाने वाली...निशा





निशा (रात ) नींद के लिए होती है नींद उड़ाने के लिए नहीं, पर ये निशा (बांगरे) तो...बाबा रे बाबा...। हैं तो डिप्टी कलेक्टर। भोपाल में ही हैं, लेकिन दिलो-दिमाग में बैतूल जिले का आमला विधानसभा क्षेत्र उतरा हुआ है। निशा आमला, बैतूल और शाहपुर में रह चुकी हैं, काम ऐसे और इतने किए हैं कि लोगों के दिल में उतर चुकी हैं। अब दिल का रास्ता कभी-कभी राजनीति की तरफ भी मुड़ जाता है, ऐसा हम नहीं कह रहे, वो नेता कह रहे हैं, जो आमला को अपनी जागीर मानते हैं और निशा की आमला में बार-बार आमद से परेशान हैं। अभी मुट्ठी बंद है। राजनीति के राज खुले नहीं हैं। वे जाएंगी भी या नहीं, पता नहीं। जाएंगी तो किधर जाएंगी। छिंदवाड़ा में पली-बढ़ी हैं तो कमल (नाथ) से जुड़ी हो सकती हैं। जमीनीं अफसर हैं, जमीन की सच्चाई जानती हैं कि कमलनाथ ठीक रहेंगे या कमल। इंतजार करिए। चुनाव ज्यादा दूर नहीं है। तब तक शुभ निशा। 





रोग पुराना, दर्द नया





कुलीनों के क्लब के चुनाव तीन-हफ्ते दूर हैं, लेकिन एक पुराना रोग फिर चर्चा में आ गया है। ना जी ना...पैनल तो वही दो लड़ रहे हैं, जो लड़ते आ रही हैं...लड़ते जा रही हैं...लड़ती जाएंगी। चर्चा यह है कि 10 साल पहले जब चुनाव हुए थे तो चैयरमेन तो पम्मी छाबड़ा बन गए थे। लेकिन सचिव सामने वाली पैनल के सुनील बजाज बन गए थे। उसके बाद कमेटी क्लब में कम और कोर्ट-कचहरी में ज्यादा नजर आने लगी थी। अलग-अलग दल और दिल का मामला था। खूब आरोप-प्रत्यारोप होते रहे। बड़े लोगों ने थाने की भी शरण ली। पूरे दो साल यही चलता रहा। अब दर्द की बात सुनो। इस बार मुकाबले में बजाज तो नहीं हैं, लेकिन उनके यार नरेंद्र गोरानी पम्मी पैनल के सामने खड़े हुए हैं। क्लब के सदस्यों पर बजाज की बातों का असर हो गया और गोरानी जीत गए तो दस साल पुरान रोग, दर्द सब उबर आएगा ऐसा क्लब वाले  कह रहे हैं। दुआ भी कर रहे हैं कोई भी जीते, बस चैयरमेन और सचिव एक ही पैनल के जीत जाएं। देखते हैं, दुआ काम करती है या फिर दो साल ये दवा ले लेकर काम चलाना पड़ेगा।



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