हरीश दिवेकर। पहले बदरा बरसे नहीं, अब ऐसे बरसे कि आंखों से आंसू आ गए। सावन में कहीं मौसम खुशगवार है, कहीं सैलाब है तो कहीं सैलानी उमड़ रहे हैं। देश को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिलने जा रही हैं। राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग का जिन्न भी खूब निकला। इसमें एक पक्ष ने कहा कि हॉर्स ट्रेडिंग हुई तो दूसरे पक्ष ने कहा कि अंतरात्मा की आवाज पर वोट पड़े। दिल्ली सरकार के डिप्टी सीएम सीबीआई के घेरे में आए तो मुख्यमंत्री ने बीजेपी को सावरकर की और खुद को भगत सिंह की औैलाद बता डाला। दिल्ली, पंजाब के बाद मध्य प्रदेश में सेंध लगाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अब दिल्ली दरबार से सीधी लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। इधर, मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव में बीजेपी के 9 मेयर कैंडिडेट जीते, 5 कांग्रेस, एक-एक आप और निर्दलीय के खाते में गया। कभी बीजेपी के पास 16 के 16 नगर निगम हुआ करते थे। वक्त का फेर है साहब। कई खबरें अंदरखाने भी पकीं, आप तो सीधे अंदर चले आइए...
नेता बिकता है...बोलो खरीदोगे
बड़े बिकाऊ नेताओं ने छोटों में कूट-कूटकर हिम्मत भर दी है। उतरो बाजार में। लगाओ अपना दाम। काहे खाली हाथ खड़े हो। छोटे भी आज्ञाकारी की तरह गले पर तख्ती लटकाकर चौक पर आ बैठे हैं। जिला पंचायत से लेकर जनपद और छोटे पार्षदों तक के लिए निविदाएं जारी हो गई हैं। जैसा है जहां आधार पर नेता खरीदना है। कड़ी प्रतिस्पर्धा है। टेबल पर लकड़ी का हथौड़ा खुलेआम ठोका जा रहा है। ये पार्षद तीन लाख...पांच लाख...चलो कद्रदान..बोली लगाओ...छह लाख...छह लाख...बोलो...छह लाख एक..दो...छह लाख तीन..। चलिए ये नेताजी, अब उनके हुए। जैसा नेता, जितनी हस्ती..वैसा मोल। जनता उल्लू बनकर देख रही है। जो नेताजी कल तक कस्मों-वादों का टोकरा लिए चरणों में पड़े थे, रातोरात गमछा बदलकर सिर पर सवार हो गए। इस खरीद फरोख्त को राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग कहते हैं साहब। हिंदी में बोले तो घोड़ा खरीदी-बिक्री। आपके पास कोई नया नाम हो तो सुझाएं...। वफादार घोड़ों के सम्मान की खातिर।
हार हमारी, सिर तुम्हारा
अफसर इन दिनों अपने दोनों हाथ सिर पर लिए घूम रहे हैं। पता नहीं कौन सा नेता किस हार का ठीकरा सिर पर फोड़ दे। खासकर वे अफसर जो चुनावी कामकाज से सीधे-सीधे जुड़े थे। ठीकरेबाजी में बीजेपी और कांग्रेस एकमत हैं। कमलनाथ कह रहे हैं, मेरी नजर है कौन-कौन अफसर चुनावों में बीजेपी का बिल्ला लगाकर घूम रहे थे। बीजेपी वाले कैलाश विजयवर्गीय के बोल वचन हो ही चुके हैं कि सीएम ने कार्यकर्ताओं से ज्यादा अफसरों पर भरोसा किया। तीसरे वीडी शर्मा हैं, बीजेपी के मुखिया, जो घटे मतदात की घंटी अफसरों के कान पर बजा रहे हैं। ग्वालियर के एक बीजेपी जिलाध्यक्ष तो इन बड़े नेताओं से ढाई घर आगे निकल कर बोले-अफसरों ने विकास कार्य नहीं किए, इसलिए ग्वालियर में हम मेयर हार गए। कोई नेताजी को समझाओ...ज्ञान बढ़ाओ...हिम्मत बंधाओं कि भैय्ये...देश में, प्रदेश में सरकार तुम्हारी, पिछला मेयर तुम्हारा..ढेर सारे मंत्री, मंडल अध्यक्ष की टोली ग्वालियर-चंबल संभाग की सड़कों पर वाऊं-वाऊं..सायरन बजाती फिर रही है, फिर भी अफसर तुम्हारी नहीं सुन रहे हैं तो काहे राजनीति कर रहे हो.। गोलगप्पे बेचो। ऐसा हम नहीं, अफसर दबी जुबान में कह रहे है।
नहीं चली ठकुराई
उषा ठाकुर मंत्री कम ठकुराइन ज्यादा है। ये ठसक उनके कामकाज में दिख ही जाती है। बस गड़बड़ ये होती है कि उन्हें पता नहीं होता कि कहां ठकुराई बताना है, कहां दबाना है। अब बोलो..अड़ गईं कि राष्ट्रपति चुनाव में पहला वोट मैं ही डालूंगी। तर्क भी खूब दिया। देश में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने जा रही हैं इसलिए सूबे से पहला वोट भी महिला मंत्री का ही होना चाहिए। वो हम हैं। तो हमें आगे बढ़ने दो। अब मंत्री कुछ भी कहें पर अफसर भी तो कोई बला है कि नहीं। ज्यों ही मतदान शुरू हुआ पहला वोट विधानसभा अध्यक्ष का डलवाया, दूसरा मामाजी ने डाला फिर वोटर्स का आवागमन बना रहा। दीदी ने वोट तो डाला, पर किस नंबर पर डाला याद नहीं। याद रखना भी नहीं चाहती, क्योंकि उन्होंने तो पहले नंबर पर रूमाल डालकर वोट बुक किया था। नहीं हो पाया मन का।
रीवा में पोल-खोल का खेला
रीवा में मेयर का चुनाव हारने के बाद बीजेपी में पोल-खोल का खेला चल रहा है। दिलजले इसके लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक-दूसरे की नस्ल का खुलासा किया जा रहा है। नामकरण संस्कार भी हो रहा है। जयचंद..हरिराम..वगैरह-वगैरह। बीजेपी के नेताओं का नारा था- हमें चाहिए आजादी। निपटाने की आजादी। कसम से इतनी आजादी से काम हुआ कि पार्टी हजारों वोटों से नीचे आ गई। वैसे कहने वाले कह रहे हैं आजादी उत्सव का शुभारंभ तो भोपाल में भाईसाहब ने ही कर दिया था। उन्होंने टिकट के लिए जिन मोहतरमा की तरफदारी की थी, उसे कमेटी ने कूड़ेदान की यात्रा करवा दी। यहीं से जयचंदों का उदय हुआ। रीवा ने बीजेपी को पहली बार कांग्रेस होते देखा। कांग्रेस जैसा करते देखा..। मतलब..आपस में ही एक-दूसरे को ही कड़ी टक्कर दे डाली। नतीजा भी वैसा ही आया जैसा जयचंदजी चाह रहे थे। शायद पूरी कहानी खुले बाजार में आती भी नहीं, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार की जीत के जश्न में जब कुछ सच्चे बीजेपी वालों ने जयचंदों को जश्न मनाते देखा तो हार के जख्म हरे हो गए। खोल डाली पोल..।
यहां काले को सफेद किया जाता है
अफसरों, नेताओं के काले धन का बोझ हल्का करने के लिए एक पुण्यात्मा मंत्रालयों और सचिवालयों में सतत विचरण कर रही है। भोपाल के ईदगाह हिल्स में पाई जाने वाली इस आत्मा का सीधा संबंध काले कर्मों को सफेद करने से है। जिन नेताजी और अफसर जी ने काला धन कमा लिया है और उसे संभालने और सफेद करने की तमीज नहीं है, वे इनसे मिल रहे हैं, पीड़ा बता रहे हैं और हाथों-हाथ निदान भी करवा रहे हैं। इन साहब का नेटवर्क टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों से भी ज्यादा तगड़ा है, भोपाल में काला धन दो और विश्व के किसी भी कोने में उसे चकाचक सफेदी के साथ प्राप्त कर लो। काले-सफेद वाले बंदे की इस दिव्यशक्ति का ही प्रताप है कि अफसर उन्हें जेल भेजने के बजाय जेब खोलकर दिखा रहे हैं। सुना तो यह भी है खाकी को भी संकेत मिले हैं कि गांधीजी के तीन बंदर के अलावा चौथा बंदर भी है,..उसका बुरा मत करो। वो हमारा भला कर रहा है। किसी ने कुछ दिन पहले ही कहा था ना..गाड़ दूंगा..प्रदेश छोड़ दो...जीने नहीं दूंगा..। क्या हुआ उसका। सब अफवाह थी क्या.....। बाकी आप लोग समझदार हैं समझ ही गए होंगे।
बिल साहब का, करंट लगा पीए को
अपर मुख्य सचिव स्तर के अफसर को जालसाजों ने उल्लू बना दिया, चरखा चला दिया। बस इसमें बेचारे पीए को 34 हजार का करंट लग गया। किस्सा यह है कि साहबजी के मोबाइल पर एक संदेसा आया कि आपका 34 हजार का बिल बाकी है, भर दो नहीं तो बंगले में अंधेरा कर देंगे। साहब ने बिल भरने जैसा व्यसन कभी पाला ही नहीं, सो बिना वक्त गवाएं संदेसा दौड़ा दिया पीए साहब को। उन्होंने भी साहब के संदेसे को खुदा का हुक्म मान बताए गए नंबर पर कॉल कर दिया। नंबर जालसाजी का था। इधर से हैलो हुआ उधर खाते से 34 हजार गायब। पीए अपनी लक्ष्मी के पुनर्आगमन के लिए साहब की तरफ देख रहे हैं और साहब ने बिजली कंपनी से लेकर कमिश्नर तक को ट्रिन-ट्रिन कर दिया है। सुना है रिपोटा-रिपोटी भी हो गई है, लेकिन 34 हजार नहीं लौटे हैं। फिलहाल साहब नेताओं की तरह अपने पीए को आश्वासन दे रहे हैं कि आपकी समस्या का निदान जरूर होगा। पीए भी..जी सर.. बोलकर चुप हैं।
ये मार्शल लॉ भी बड़ा अनुपम है
कानून अपना काम करेगा..ऐसा ही बोलते हैं ना अफसर। पर उनके साथ ऐसा ही हो तो दिल टूट जाता है। महामहिम चुनावों की वोटिंग में ऐसी दिल तोड़ने वाली घटना हो गई। मतदान के कामकाज में शामिल होने के लिए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन विधानसभा में जाने लगे तो मार्शल ने दरवाजे पर हाथ अड़ाकर रोक दिया। आईडी दिखाइए। साहब अपने आप में आईडी हैं, किसी को क्यो दिखाएं। नहीं दिखाई। अड़ गए। मार्शल भी अड़ गए, अपना लॉ लागू करने के लिए। खेल खराब हो रहा था, तभी राजन ने विधानसभा में अपने अफसरों को बाहर से फोन लगाया कि कानून से छुटकारा दिलाओ। अंदर से मार्शल को घंटी आई- आने दीजिए, अपने ही हैं। तब जाकर उन्हें प्रवेश मिला। थोड़ी देर बाद एक और अफसर पहुंचे। नाम राजेश कौल। उन्हें भी उसी लॉ का सामना करना पड़ा। पूरा एक घंटा। दरवाजे पर बैठे रहे। बात फैली तो उनके लिए भी अंदर से बुलावा आया कि आ जाइए...। बिफर गए। अब कहीं नहीं जाऊंगा। यहीं बैठूंगा। मान-मनौव्वल हुई, तब जाकर कौल साहब ने अंदर से आए कॉल का सम्मान कर प्रवेश किया।