अरे! ऐसी भी क्या जल्दी है, कुर्ता खिंचाई चालू है, कैलाश की इंदौरी पॉलिटिक्स

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Atul Tiwari
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अरे! ऐसी भी क्या जल्दी है, कुर्ता खिंचाई चालू है, कैलाश की इंदौरी पॉलिटिक्स

हरीश दिवेकर। एक तरफ मौसम में तपिश बढ़ी हुई है तो राजनीति में सरगर्मियां। भोपाल में दो दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री का दौरा हुआ। स्वागत में पूरी सरकार तैनात रही। इसके अगले ही दिन मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री से मिलने दिल्ली चले गए। अपने कामकाज का ब्योरा रखा। अगले साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, सो ये सब चलता ही रहेगा। महाराष्ट्र में एक निर्दलीय सांसद और उसके निर्दलीय विधायक पति का हनुमान चालीसा को लेकर विवाद हो गया। ये दोनों उद्धव ठाकरे के घर के बाहर पाठ करना चाहते थे। दोनों की गिरफ्तारी हुई और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भी भेज दिया गया। मध्य प्रदेश, गुजरात के बाद दिल्ली में भी बुलडोजर चला, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। इधर, मध्य प्रदेश में भी कई खबरें पकीं, कई चर्चाएं हुईं, आप तो बस सीधे अंदर उतर आइए...



एयरपोर्ट तक पैदल चल देंगे



अमित शाह 22 अप्रैल को भोपाल के दौरे पर थे। केंद्र सरकार में नंबर 2 माने जाने वाले शाह जब तक दिल्ली के लिए नहीं उड़े, तब तक कई कद्दावर नेताओं का बीपी, शुगर लो-हाई होता रहा। बीजेपी मुख्यालय में कोर ग्रुप चर्चा में सूबे के मुखिया ने धीरे से कहा कि भाई साहब अंधेरा हो रहा है, चॉपर उड़ान नहीं भर पाएगा। इस पर शाह ने तिरछी निगाहें कर पूछ लिया कि आपके यहां नाइट विजन नहीं है क्या...? उन्होंने कहा एयरपोर्ट तक जाना है तो पैदल ही चले जाएंगे। शाह की हाजिर जवाबी से कई चेहरों की रंगत उड़ गई। कद्दावर नेताओं को संगठन के साथ कदमताल की नसीहत देने के बाद शाह कार से एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए...। दिल्ली के लिए विमान उड़ने पर नेताओं का बीपी-शुगर नॉर्मल हुआ। असल में यहां के नेताओं को चिंता थी कि कहीं ‘मोटा भाई’ मीटिंग में कुछ ज्यादा ही ना पूछ लें।



टांग नहीं तो कुर्ता ही सही 



राजनीति में किसी को नीचे लाना हो तो जरूरी नहीं कि टांग ही खींची जाए। जो हाथ आए उसे खींचकर भी खींचतान का उद्देश्य पूरा कर सकते हैं। भले ही कुर्ता क्यों न हो। सीएम के तेंदूपत्ता कार्यक्रम में खींचतान के इस नए स्वरूप और औजार का खुला प्रदर्शन हुआ। हुआ यूं कि सीएम बोलने खड़े हुए तो एक मंत्रीजी ताली बजाते हुए उनके सम्मान में कुर्सी से खड़े हो गए। ताली में मशगूल थे सो कुर्ता आजाद रह गया। इसी लहराते कुर्ते को पास वाले मंत्री जी खींचा और ताली वाले मंत्रीजी को कुर्सी पर पदस्थ कर दिया। चंद लम्हों का ये मोहक दृश्य कैमरे में कैद हुआ और देखते-देखते ही सरे-बाजार हो गया। अब इस खींचतान को खींचकर नए-नए मतलब निकाले जा रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं, सरकार के नंबर एक और नंबर दो के बीच मौसम साफ नहीं है। रह-रहकर बादलों की घड़घड़ाहट सुनाई देती है। अब आप बताएं किसी दूसरे का कुर्ता खींचकर किसी तीसरे को संदेश देने का ये तरीका आपको कैसा लगा। 



इशारों-इशारों में दिल बैठाने वाले..



इशारों-इशारों में दिल लेने की अदा तो पुरानी हो गई। अब तो इशारों में दिल बैठा दिया जाता है...उठा दिया जाता है। कम से कम मामाजी उर्फ सीएम तो इस अदा में दक्ष हैं ही। अभी-अभी..प्रशासनिक मुखिया के लिए एक आयोजन में बोल पड़े। ये सचिव से तब से मेरे साथ हैं। अब मुख्य सचिव हैं। जल्दी ही ये रिटायर हो जाएंगे। इसमें कितने दिल उठे-बैठे। दिल मुखियाजी का बैठ गया, जिन्हें लग रहा था कि सेवा में विस्तार मिल जाएगा तो कुछ दिन और सरकार चला लेंगे। अब ना हो पाएगा। मामाजी ने बोल दिया है..रिटायर हो जाएंगे। और दिल उठा किसका। जिन्होंने मुखियाजी की रवानगी की मन्नत के डोरे बांधे थे। अब वे बंधे डोरे खुलेंगे और वहां डाले जाएंगे, जहां से मुखिया की कुर्सी का रास्ता खुलेगा। सुना है कि उस दिन के बाद से ही कई साहिबान ने हाड़तोड़ मेहनत शुरू कर दी है। देखें किसे क्या मिलता है। 



सच का सामना



लिया-दिया का पुराना वीडियो वायरल कर एक पुराने साहब का ‘मधु’ पी चुके सत्यवचन धारी ने नौकरी के सारे बैरियर तोड़कर बैरियर की असलियत कागजों पर उतारी और उन्हें वहां-वहां रवाना कर दिया, जहां-जहां कमाई पर बैरियर लगाया जा सकता था। कुछ चिट्ठियां तो गंतव्य पर पहुंच भी गईं, जबकि कुछ का प्रस्थान प्रयासों से स्थगित करवा दिया गया। खैर, चिट्ठियां भले ही ठहर गई हो, लेकिन चर्चा है कि ठहर ही नहीं रही है। काले धन की काली-काली बातें सफेद कागजों पर उतारकर प्रकाश फैलाने वाले सत्य के पीछे के असली महावीर कौन हैं, इसकी पड़ताल में खुफिया ब्रिगेड लग गई है। मानने वाले मान रहे हैं और जानने वाले भी जान रहे हैं कि अकेले सत्य की हिम्मत नहीं कि इतनी रोशनी फैला दे। कोई तो है जो इसकी लौ को ईंधन दे रहा है। आपने सुना है ना, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। ..तो जो भी करो फूंक-फूंककर ही करना । कभी सत्य ने सच का सामना करा दिया तो जो दबा-छुपा रह गया है, वो भी खुला-खुला हो जाएगा। बी केयरफुल...। 



शेर आया..शोर मचा..



एक विधायक जी हैं। कुछ नहीं करते, बस ऐसा कुछ करते हैं जिससे सब उनकी ही बात करते हैं। अब बात करते हैं या बात बनाते हैं ये इस किस्से से समझो। सरकार के नंबर दो राष्ट्रीय मुखिया राजधानी पधारे। विधायक जी उत्साह से इतने भर गए कि शेर के माफिक होर्डिंग बनकर लटक गए। अरे खुद नहीं जी..बड़े मुखिया को शेर बताकर होर्डिंग लगा दिए, साथ में शेर का मुखौटा भी लगा दिया। पहले तो किसी को कुछ समझ नहीं आया। लेकिन जैसे-जैसे होर्डिंग टंगते गए, वैसे-वैसे दूसरी टांगे चलने लगीं। ये क्या तमाशा है..ये क्या लगा दिया..से चली बात को कुछ इस तरह फैलाया कि विधायक जिसका लब्बोलुआब यह था कि दिल्ली वाले नेताजी के नाम का इस्तेमाल कर अपनी झांकी जमा रहे हैं। बात चली तो दूर तक चली गई। इतनी दूर तक कि लटके-लटकाए होर्डिंग टपाटप गिरने लगे। आखिर में समेट लिए गए। कोई कह रहा है राजनीति हो गई। विधायक जी महफिल ना लूट लें, इसलिए उल्टी-सीधी बातें फैलाई गईं। कोई कह रहा है विधायकजी ना लुट जाएं इसलिए बचा लिया। होर्डिंग टंगे या निकले। बात तो विधायकजी के बारे में हो ही गईं ना। वही तो हम कहे हैं। अपनी बात करवा लेते हैं वो। 



शाह के अमिट तर्क



देश के दो नंबर मुखिया ने पुलिस को शाही अंदाज में ये ज्ञान वितरित कर दिया कि खाकी को कब क्या करना चाहिए, कब नहीं। मामला खरगोन दंगों का था। पुलिस ने दंगों के उद्घाटन में जिस तरह दर्शक बनकर ताली बजाई और जब बात ज्यादा बिगड़ गई तो जिस तरह लाठी बजाई वो दोनों की अदाएं मुखियाजी को कम पसंद आईं। नसीहत यह रही कि जैसे ही किसी शहर का मौसम बिगड़े, तुरंत सुधार दो। पहले बिगड़ने देते हो, फिर इतना ज्यादा सुधार देते हो कि समझ ही नहीं आता कि शहर का असली मौसम क्या था। ये अमिट तर्क किसके लिए दिए गए ये फैसला आप करिए। हम बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है। 



उमाजी..शिवजी



दारू पर चल रहे द्वंद्व में कैलाश विजयवर्गीय ने भी प्रवेश कर लिया है। पर बोले ऐसा हैं कि आप समझ ही ना पाएं कि दारू बंदी के लिए बोले हैं या खुली दारू के लिए। वे कह दिए उमाजी भी नहीं चाहती कि पूर्ण शराबबंदी हो। वे चाहती हैं कि कानून ऐसा बने कि लोग दारू पीना कम कर दें। आपको लग रहा है। फिर बोले पूरी दारू बंदी संभव भी नहीं है। सूबे में बड़ा आदिवासी वर्ग है, जहां दारू की पूजा तक की जाती है..। उनका क्या करेंगे। हम तो समझे नहीं भाई। आप समझ गए हों तो ऊपर बता देना कि कैलाशजी दीदी की तरफ हैं मामाजी की।


शिवराज सिंह चौहान Kailash Vijayvargiya कैलाश विजयवर्गीय BOL HARI BOL Uma Bharti SHIVRAJ SINGH CHOUHAN बोल हरि बोल उमा भारती भोपाल Bhopal Amit Shah अमित शाह द सूत्र Narottam Mishra नरोत्तम मिश्रा The Sootr