मामाजी को मिला मौका, मंत्री की बिजली गुल, जय को शक्ति का भान

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Atul Tiwari
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मामाजी को मिला मौका, मंत्री की बिजली गुल, जय को शक्ति का भान

हरीश दिवेकर। गर्मी ने आम आदमी की चूलें हिला दी हैं। बाहर से कमरे में घुसने वाला पहली लाइन यही कहता है कि आग बरस रही है। सियासी गलियारों में खासी सरगर्मी है। बीते हफ्ते शीर्ष कोर्ट ने कह दिया कि बिना ओबीसी आरक्षण के मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव करवाएं। अब सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस दोनों खम ठोंक रही हैं कि फैसला उनके पक्ष में आया। मुख्यमंत्री तो विदेश दौरा कैंसिल कर रिव्यू पिटीशन लगाने चले गए। वहीं, NSUI ने महंगाई, बेरोजगारी पर प्रदर्शन किया, जिसमें कांग्रेस के कई दिग्गज नेता शामिल हुए। ये विधानसभा चुनाव से पहले वॉर्मअप होने जैसा है। उधर, यूपी में ज्ञानवापी का सर्वे चल रहा है, ताजमहल को लेकर राजघराने दावे कर रहे हैं तो मुगल प्रिंस दावे को चुनौती दे रहे हैं। कुतुब मीनार को भी विष्णु मंदिर घोषित करने की मांग चल रही है। बहरहाल, खबरें तो कई पकीं और कई की खुशबू बिखरी, आप तो सीधे अंदर उतर आइए...  



अपना भी टाइम आएगा



गुना में पहले शिकारियों ने पुलिस पर और फिर पुलिस ने शिकारियों पर निशाना लगाया। इस निशानेबाजी में दो निशाने और लग गए।  समझने वाले समझ गए...ना समझे वो..। ये निशाना भोपाल से सीधे ग्वालियर जाकर लगा। ना ठायं-ठायं, ना आ-उई... । सिर्फ कलम चली और काम तमाम। शूटर बने शिवराज जी। निशाने पर आ गए आईजी अनिल शर्मा। ये वही शर्माजी हैं, जो ग्वालियर घराने के घरू होने के चक्कर में किसी को कुछ समझ नहीं रहे थे। ग्वालियर आए भी तो मामा की मर्जी के खिलाफ थे। तब मामा यह सोचकर चुप हो गए कि अपना भी टाइम आएगा। अब ग्वालियर में शिकारबाजी हो गई। पुलिस ने तीन जांबाज खो दिए। मामा का टाइम आ गया। ग्वालियर से तत्काल रवाना कर दिए गए शर्मा जी। अब मामला ऐसा है कि महाराज भी क्या कहें। दूसरा निशाना देखा आपने ..नहीं ना। अरे ग्वालियर के लिए घराने से कोई और नाम आता उससे पहले ही अपना नाम आगे बढ़ाकर नए आईजी बैठा दिए कुर्सी पर। अब चुनाव तक तो इन्हें आना-जाना नहीं है। जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लीजिए ।



ये खंभा तो करंट मारता है भाई



मामाजी की सरकार में एक मंत्री हैं। कभी बिजली के खंबे पर चढ़कर, लाइनमैन बनकर, वीडियो वायरल करवाकर, हीरो बनकर, जनता में  छा जाने वाले अब छुप-छुप कर रह रहे हैं। कल तक जिस विभाग की कसमें खाते थे, अब उससे मुक्ति चाह रहे हैं। उनके विभाग का मौसम ऐसा बिगड़ा है कि चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा हो रहा है। इस अंधेरे में उन्हें अपना भविष्य भी अंधकारमय लग रहा है, सो गुपचुप चाहते हैं कि मंत्रालय बदल जाए। अगर मंत्रालय नहीं बदला तो अगले चुनाव में जनता मुझे बदल देगी। जिस खंबे  पर चढ़कर अपना जादू लोगों के सिर चढ़ा दिया था, अब उसे देखते ही करंट जैसे दूर हो जाते हैं। कहने वाले कह रहे हैं, मंत्रालय मिला, तब प्रदेश में खूब रोशनी थी तो साहब ने भी खुशी-खुशी शपथ ले ली। खुद के लिए भी खूब उजाला कर लिया। अब जनता हिसाब मांग रही है और ये वो किताब ढूंढ रहे हैं, जिसमें मंत्रालय बदलने का आवेदन लिखने के कायदे सिखाए गए हों। आपके पास कोई आइडिया हो तो मंत्री जी सुझाएं और पुण्य कमाएं। बहुत परेशान हैं जी..।



रंग दे तो मोहे भगवा



ग्वालियर घराने से लड़-लड़कर और भगवा लहरा-लहराकर नेता बने जयभान सिंह पवैया यूं भले ही ग्वालियर से दूर करने के लिए महाराष्ट्र भेज दिए गए हों लेकिन अब लग रहा है कि पार्टी पर उनका भगवा रंग फिर चढ़ रहा है। ताजा-ताजा हलचल में उनका नाम राज्यसभा के लिए टहल रहा है। इसके पीछे क्या राजनीति है, ये जानने के लिए राज करने वालों की नीति जानना जरूरी है। महाराज ग्वालियर में

एकतरफा सत्ता चला रहे हैं। संतुलन के लिए नरेंद्र तोमर थे, लेकिन वो भी दिल्ली को दिल दे बैठे। मैदान फिर खाली हो गया। ऐसे में संतुलन तो जरूरी है ना। तराजू का एक पलड़ा ज्यादा झुक जाए तो दूसरी तरफ का पलड़ा ज्यादा ऊपर चला जाता है। राजनीति में ना ज्यादा झुकना ठीक, ना किसी को ज्यादा उठाना ठीक। तो फिर क्या करें। कुछ नहीं। एक बांट उठाओ, दूसरी तरफ रख दो। दोनों पलड़े सीध में रहेंगे। यही तो राज करने वालों की नीति है। सबको सीधा रखो। देखते हैं, कौन ऊपर-नीचे होता है। ज्यादा दूर नहीं हैं राज्यसभा चुनाव।



दर्दे दिल जाता नहीं



इंदौर के पुराने नेता बरसों तक ऊंचाई पर रहे पर अब ऊंचाई पर जाने से डरने लगे हैं। ये डर है या दर्द आप जानें, लेकिन जब भी उन्हें कुरेदो, दर्द जुबां पर आ ही जाता है। बीते दिनों एक कार्यक्रम में ये दर्द फिर निकलकर बाहर आ गया। पहले तो उन्होंने अपने को ऊंचाई देने वालों के जो नाम गिनाए, उसमें वो नाम गायब थे, जिन्होंने ऊंचाई दी थी। ना-ना..स्मृति दोष नहीं था। दर्द था भाई। ये भूले-बिसरे नाम वही हैं, जिन्होंने पहले इन नेताजी को ऊंचाई पर बैठाया फिर घर बैठा दिया। अब बुरा तो लगेगा ना। हां, ये जरूर है कि ये नेता अपनी बात इतने सलीके से कहते हैं कि समझने वाले को घर पहुंच जाने के बाद समझ आता है। तब तक तीर कमान से निकल चुका होता है। ये भी एक कला है दर्द बयां करने की। राजनीति के दर्दभरे लोग इनसे ज्ञान प्राप्त करें। फायदा होगा।

 

मेरी मोटर, मेरा ड्राइवर



मोटर-गाड़ी विभाग के बड़े साहब और घराने के बीच इतनी भीषण टक्कर हो रही थी कि गाड़ी बार-बार पटरी से उतर रही थी। साहब थे कि न तो मंत्री को ड्राइविंग सीट पर बैठने दे रहे थे और न मंत्री के बड़े अफसर को। खुदई दौड़ाए जा रहे थे पूरा विभाग। अब जो पूरी सरकार की ही ड्राइविंग सीट पर बैठे हों, उन्हें अपने ही विभाग के साहब कह दें कि पीछे बैठिए स्टेपनी के पास। ये तो बहुत नाइंसाफी है ना..। इंसाफ तो बनता है भाई। लो बन गया। भोपाल से नहीं हुआ तो दिल्ली से हो गया। महाराज जी ने वहीं से घंटी बजवाई। फिर हुआ ये कि जो साहब ड्राइविंग सीट पर डटे थे वो गाड़ी से ही उतार दिए गए। ना रहेगी गाड़ी, ना पकड़ोगे स्टेयरिंग। सुना है नए साहब मंत्रालय की गाड़ी की गति वैसी ही रखेंगे जैसा महाराज चाहेंगे। अच्छा है, दुर्घटना से देर भली ।



आया राम-गया राम



जी, आया राम-गया राम केवल राजनीति में ही नहीं होते, अफसरी में भी होते हैं। कुछ मन से, कुछ तिकड़म से इधर-उधर हो जाते हैं, कुछ कर दिए जाते हैं । ये आवागमन मई-जून या चुनावी मौसम में कुछ ज्यादा ही गति पकड़ लेता है। अभी मई-जून भी है और चुनावी मौसम भी सो बड़े साहबों, मंत्रियों की टेबल पर जिले के बड़े साहबों की सूची फड़फड़ा रही है। किसे कहां भेजना है, कहां से रवाना कर कहां बैठाना है। जैसा हर बार होता है, वैसा इस बार भी हो रहा है। लेकिन हर बार कुछ और भी होता है। साहब भी आखिर साहब हैं। वे भी हर बार की तरह इस बार भी अपने रिश्ते-नाते, प्यार-मोहब्बत सब दांव पर लगाकर मन की बात..बोले तो मन की कुर्सी पाने के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करने लग गए हैं। हां, ये जरूर है कि इस आवागमन में प्रदेश के मुखिया का मिजाज कुछ ठहर सा गया है। कहानी यह कही जा रही है कि चुनाव करीब हैं इसलिए कुर्सी वितरण में नेताओं की चिट्ठियों को वजन दिया जाएगा। अब जिले में नेता की मर्जी अफसर आएगा तो काम भी नेता की मर्जी का ही होगा ना। अभी बड़े मुखिया हर जिले में अपने पत्ते जमाते हैं और चालें चलते हैं। इंतजार करिए नई चाल का। किसकी चाल सही बैठती है। मुखियाजी की या नेताजी की। 



हे भगवान, करो कल्याण...



पुलिस के नए बड़े साहब जब से कुर्सी पर विराजे हैं, तब से प्रदेश में कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है कि लग रहा है कुर्सी का वास्तु गड़बड़ा गया है। उनके पदस्थ होते ही सबसे पहले खरगोन दंगे ने ऐसी सलामी दी मामला राष्ट्रव्यापी होते हुए विश्वव्यापी हो गया। अभी-अभी गुना में शिकारियों के हाथों महकमे के 3 जांबाज शहीद हो गए। धार में महिला बरामद करने गई पुलिस पर गांव वालों ने हमला कर दिया, राइफल छीन ली...। कुल मिलाकर अच्छा कम और कम अच्छा ज्यादा हो रहा है। ये अलग बात है कि पुलिस के मुखिया सब जगह तो डंडा, बंदूक चलाने से रहे। काम तो मैदानी टीम को ही करना पड़ेगा ना। पर...पर..., ये बात जरूर अलग नहीं है कि मुखिया दफ्तर से डंडा चलाएंगे तो मैदानी अफसर मैदान में रहेंगे और सब ठीक-ठाक रहेगा। बाकी पूजा-पाठ की जो चर्चा महकमे वाले कर रहे हैं, करवा लीजिए...कल्याण होगा।

 


शिवराज सिंह चौहान BOL HARI BOL SHIVRAJ SINGH CHOUHAN बोल हरि बोल CONGRESS कांग्रेस BJP बीजेपी Jyotiraditya Scindia ज्योतिरादित्य सिंधिया द सूत्र प्रद्युम्न सिंह तोमर The Sootr जयभान सिंह पवैया Jaibhan Singh Pavaiya Praduman Singh Tomar