BHOPAL: दल बदल लिया लेकिन आत्मा वहीं बस रही, अदृश्य प्रभार पर ‘विश्वास’, चुनावी तीया-पांचा के लिए अपनों के तबादलों की आस

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The Sootr CG
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BHOPAL: दल बदल लिया लेकिन आत्मा वहीं बस रही, अदृश्य प्रभार पर ‘विश्वास’, चुनावी तीया-पांचा के लिए अपनों के तबादलों की आस

हरीश दिवेकर। सावन बीत गया, भादों आ गया। बीतते-बीतते ही सही, सावन कुछ झड़ी लगा ही गया। कुछ इलाकों के लिए मौसम विभाग तो कह रहा है कि बारिश का कोटा हो गया है, लेकिन बदरा हैं कि मानते नहीं। मप्र के कुछ इलाके अब भी बादलों की बाट जोह रहे हैं। फिलहाल पूरा देश आजादी की 75वीं सालगिरह के रंग में रंगा है। प्रधानमंत्री की अपील पर मंत्री-नेता अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रोफाइल बदल रहे हैं। संघ प्रमुख ने भी ट्विटर प्रोफाइल पर तिरंगा लगा लिया तो बरसों से चली आ रही विचारधारा पर सवाल उठ गए।...खैर। इधर, मध्य प्रदेश में एक डैम से पानी का रिसाव हो गया। सीएम तो क्या पीएम तक के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। एक तरफ मौके पर आर्मी पहुंची तो एयरफोर्स भी सतर्क हो गई। उधर, बिहार में नीतीश ने ‘महाराष्ट्र’ रिपीट होने से बचा लिया। मुख्यमंत्री ने कमल (बीजेपी) से तीर (जेडीयू) निकालकर लालटेन (आरजेडी) में लगा दिया। इस बीच, मध्य प्रदेश में कई खबरें अंदरखाने पकीं, आप तो सीधे अंदर चले आइए....  



हम तो ठहरे कांग्रेसी, साथ क्या निभाएंगे...



पुराने कांग्रेसी और नए भाजपाई बने ग्वालियर-चंबल संभाग के कई नेताओं की राजनीति में रह-रहकर कांग्रेस प्रवेश कर जाती है। फिर वो वह सब करने लगते हैं, जिसके लिए कांग्रेस ने खुली छूट दे रखी थी। प्रभुराम चौधरी और इमरती देवी ने हालिया हुआ गांव सरकार के चुनाव में भूतपूर्व कांग्रेसी होने का ऐसा ही मुजाहिरा किया। बीजेपी संगठन को पंजा (ठेंगा) दिखाते हुए पार्टी द्वारा तय उम्मीदवार के खिलाफ दोनों ने अपने क्षेत्र में अपने चाहने वालों को मैदान में उतारकर जितवा दिया और बाद में उन्हें भाजपाई भी बनवा दिया। जिस समय क्रांति की ये मशाल जल रही थी, तब सूबे के गृह मंत्री और दतिया के ही बीजेपी के खेवनहार नरोत्तम मिश्रा के अलावा संगठन वाले भी इस विद्रोह के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे, लेकिन पार्टी ना प्रभु पर पार पा सकी, ना देवी पर। दोनों नेतागण ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के मूल निवासी हैं। इनका आचरण देखकर अब तो भाजपाई भी कहने लगे हैं कि ये पार्टी में प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर आए हैं। जल्दी ही अपने मूल विभाग में लौट जाएंगे। सुन लिजिए वीडी..मुखियाजी और महाराज जी। नाक का सवाल है...।



सबसे बड़ा दान...कन्यादान



सड़क में गड्ढे हों और वो बने रहें तो इसके लिए शादी-ब्याव भी जिम्मेदार हो सकते हैं। ये क्या तुकबंदी हुई। हां, होता है भाई। देखो सूबे की सड़कों के गड्ढे नहीं भरा रहे हैं। विभाग के इंजीनियर परेशान हैं कि ठेकेदार उनकी सुन नहीं रहे हैं, सो उन्हें सुनाने के लिए छोटे अफसरों ने बड़ों को बताया। बड़ों ने ठेकेदारों को बाते सुनाने के लिए जब कॉल किए तो ठेकेदारों ने उन्हें ऐसा सुनाया कि सुनकर साहब लोग भी सन्न रह गए। ठेकेदार ने बड़ी विनम्रता से अपनी आर्थिक स्थिति का ब्योरा यह कहकर दिया कि कन्यादान के लिए मंत्री जी ने पहले ही

इतना ‘दान’ ले लिया है कि अब सड़क को सड़क बनाने के लिए हमें गृहस्थी बेचकर सड़क पर आना पड़ेगा। ये ना हो पाएगा। या तो कन्यादान का चंदा बंद हो तो हम अपना धंधा शुरू करें। बताने वालों ने बताया है कि साहब लोगों ने पूरी कन्यापुराण सूबे के मुखियाजी को बता दी है। अब जासूस लग गए हैं मंत्री और ठेकेदारों के बीच का पूरा वित्तीय लेखा-जोखा जांचने में। वैसे होना-जाना कुछ नहीं है। कन्यादान और दानपुराण की परंपरा मंत्री जी की विधानसभा में उनके राजनीतिक काल से होती आ रही है।



मंत्रीजी आप फिर मंत्री कब बनोगे?



भोपाल में एक मंत्रीजी आजकल अपने विभाग की कम और भोपाल की नाली-सड़क और ठेकों की समस्याएं सुनने में ज्यादा व्यस्त हैं। जनता को भी मेयर से ज्यादा मंत्रीजी पर पूरा 'विश्वास' है। ठेकेदार भी मंत्रीजी के यहीं यस सर..यस सर..कर रहे हैं। कहानी कुल जमा यह है कि मेयर का टिकट मंत्री जी कोटे से आया था, संगठन ने जिताने की सुपारी भी मंत्रीजी को दी थी, मंत्रीजी उस पर खरे उतरे। अब पार्टी उन्हें तो खरी-खरी सुना नहीं पा रही, लेकिन मेयर को कह दिया है कि मेयर बनो...। अंतिम समाचार मिलने तक मंत्रीजी ही मेयर का काम कर रहे हैं और मेयर वही कर रही हैं जो मंत्रीजी चाह रहे हैं। उस उलटफेर से पार्टी के वो नेता दुखी हैं जिनके सितारे मंत्रीजी से नहीं मिलते हैं और वे अपने इलाके में नगर निगम से कोई काम करवाना चाह रहे हैं। पीड़ितों की नजर संगठन पर है कि कब मंत्रीजी से मेयर का अदृश्य प्रभार वापस लेकर उन्हें केवल मंत्री बनाया जाता है। 



तबादले से ही बदलेगी फिजा



मॉनसून में बादलों बिना चल जाए, लेकिन मंत्रालयों में तबादलों बिना बिलकुल नहीं चलेगा। ये ही तो वो विधा है, जिससे राजनीति को नई दिशा मिलती है, अर्थव्यवस्था में सुधार आता है, तबादलों के मौसम का इंतजार अफसरों से लेकर मंत्री जी तक को रहता है। पंद्रह महीने बाद चुनाव हैं। तबादलों की झड़ी के बिना राजनीति हरी-भरी नहीं होगी। जब तक अपने जिले में अपना बंदा स्थापित नहीं होगा, चुनावी चालबाजी कैसे होगी। अभी मास्टरों के लिए मैदान खोला गया है, लेकिन बाकी विभाग में बाड़बंदी है। हमारे जनप्रतिनिधि तबादलों की गांठ खुलने के लिए टुकुर-टुकुर मुखियाजी की तरफ देख रहे हैं। एक मंत्री जी तो इतने आतुर हो गए कि केबिनेट की बैठक में ही खुलेआम बोल दिए- अगला पूरा साल तबादलों के लिए फ्री फॉर ऑल कर दीजिए। इस सलाह से दूसरे मंत्रियों के चेहरे पर भी स्वप्निल मुस्कान आ गई। सुना है कि मुखियाजी ने इस सलाह को अनसुना कर दिया है। इंतजार और अभी।



आ जाओ या तैयार हो जाओ



ग्वालियर-चंबल संभाग में बीजेपी के एक पुरातन नेता हैं, जो कांग्रेस में गए तो ऐसे चले कि कई भाजपाइयों को चलता कर दिया। पहले बीजेपी नेता से विधायकी छीनी, फिर मेयर की कुर्सी। भी ले उड़े। सुना है कि उनकी रफ्तार देखकर भाजपाई सकते में हैं। विधानसभा  और फिर लोकसभा में कहीं पार्टी को गहरे में नहीं उतार दें, इसलिए उनकी आवभगत की तैयारी शुरू हो गई है। पार्टी उन्हें ऐसे दो-राहे पर लाकर खड़ा करने की तैयारी कर रही है कि उन्हें कोई एक राह चुनने की मजबूरी हो जाए। या तो पुनः गृह प्रवेश करो या गृह मंत्रालय की फाइलों में उलझ जाओ। दस्तावेजीकरण शुरू हो गया और कोशिशें भी। चुनाव में पंद्रह महीने हैं। इस बीच विधायक जी राजनीतिक शल्य क्रिया होगी, यह तय है। देखना यह है कि विधायकजी कौन सा मार्ग चुनते हैं।



हम हैं तैयार...हम भी हैं तैयार



पक्ष-विपक्ष दोनों एक ही नारा लगा रहे हैं। हम हैं तैयार...हम भी हैं तैयार। पक्ष के पास तैयारी के लिए अफसर हैं और विपक्ष के पास अपनी सेना। दोनों ने 2023 के लिए ऑयल-पानी की तैयारी कर ली है। सत्ता वाले तो प्रशासन और पुलिस के मुखियाओं को यहां-वहां बैठाएंगे। वहीं, जिन इलाकों में शहर और गांव सरकार के लिए सत्ता के लिए सताने वाले नतीजे आए हैं, वहां भी कुर्सियां खिसकाई जाएंगी। विपक्ष अपनी टीम को चाक-चौबंद करने में लगा है। उनके पास यह सूचना है कि सरकार का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और अगर संगठन में माकूल बदलाव कर अच्छी टीम बैठा दी तो फिर से सरकार में आया जा सकता है। अभी दोनों तरफ से- देखो और इंतजार करो- की नीति चल रही है। ज्योंही चुनावी मौसम बनेगा, दोनों तरफ भागमभाग शुरू हो जाएगी।


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