सुनील शर्मा, भिंड. चम्बल इलाके की पहचान आज भी बीहड़ और बंदूक से होती है। पुरुषों के हाथों में रायफल यहां आम बात है। लेकिन आत्मरक्षा के लिए अब अंचल की महिलाएं भी बन्दूकें थामने लगी हैं। जो महिलाएं परिवार संभालती थी, वे अब चूल्हा चौका वाली छवि को दरकिनार कर परिवार की रक्षा का जिम्मा उठा रही हैं। चम्बल के भिंड (Bhind) जिले में बीते कुछ वर्षों में कई महिलाओं ने आर्म्स लाइसेंस (Arms licence) लिए हैं, साथ ही बंदूके भी।
पति के देहांत के बाद नीरज जोशी ने लिया लाइसेंस: अटेर क्षेत्र में रहने वाली नीरज जोशी हाल ही में कंधे पर बंदूक टांगे कलेक्ट्रेट में नजर आईं। इस तरह की तस्वीर दिखना किसी भी जिले में आम बात नहीं है। नीरज जोशी ने बताया कि चार साल पहले उनके पति का देहांत हो गया था, घर मे बुज़ुर्ग सास ससुर और तीन बच्चे हैं, वे चम्बल के उस बीहड़ी इलाके से हैं जहां कभी डकैतों का मूवमेंट हुआ करता था। समय के साथ बदलाव तो हुआ है, लेकिन आज भी उनके गांव में लड़ाई झगड़े विवाद की स्थिति कभी भी बन जाती हैं। इसके अलावा गुंडे बदमाशों का भी डर बना रहता है। पति के इस दुनिया मे न होने से अब बच्चों और सास ससुर की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी खुद नीरज जोशी उठा रहीं है, इसी के चलते उन्होंने इसी साल आर्म लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। लाइसेंस बनवाने के बाद लाइसेंसी बंदूक और एम्युनिशन भी खरीदे है, जिससे जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल अपनो को सुरक्षित रखने के लिए किया जा सके।
इतने लाइसेंस दर्ज: जिले में नीरज अकेली महिला नहीं हैं जिनके पास आर्म लाइसेंस है। इनके अलावा भी 4-5 महिलाओं ने आर्म लाइसेंस के लिए आवेदन किया है। ये लाइसेंस अभी प्रोसेस में हैं, यानी आने वाले दिनों में इन महिलाओं के हाथों में भी बंदूक देखी जा सकती है। जिले में आर्म शाखा प्रभारी और अपर कलेक्टर प्रवीण कुमार फुलपगारे ने बताया कि वर्तमान में भिंड जिले में करीब 23 हजार 500 आर्म लाइसेंस आवंटित हैं। इनमें रायफल, पिस्टल आदि शामिल हैं, ज्यादातर लाइसेंसधारी समूह पुरुष वर्ग का है, लेकिन इनमें 140 आर्म लाइसेंस महिलाओं के नाम दर्ज हैं। कहने को यह आंकड़ा कुल संख्या के आगे बहुत छोटा लगता है लेकिन आज के इस माहौल में महिलाओं के आत्मविश्वास को दर्शाता है।